दूसरी घटना एक मेडिकल कॉलेज के निर्माण से संबंधित है। मुख्यमंत्री उस मडिकल कॉलेज के निर्माण में अतिरिक्त दिलचस्पी ले रहे थे। उससे संबंधित एक कैबिनेट निर्णय भी लेना चाहते थे। पर कैबिनेट के उनके कुछ वरिष्ठ सहयोगियो ने उनके इरादे पर पानी फर दिया और उससे संबंघित आवश्यक निर्णय वे कैबिनेट से करवा नहीं सके।
मिंटो हाउस भोपाल के एक बहुत ही महत्वपूर्ण इलाके में स्थित है। उसकी कीमत अरबों रुपए की है। लेकिन मुख्यमंत्री उसे निजी क्षेत्र के लोगों को होटल बनाने के लिए देना चाह रहे थे। वह भी मु्फ्त में। एक रुपए प्रति महीने के किराए पर ऐतिहासिक मिंटों हाउस और उससे जुड़ी अनेक एकड़ में फेली जमीन को निजी हाथों के हाथों में देने का अनेक लोग विरोध कर रहे थे। उस विरोध के बावजूद राज्य सरकार ने राजभवन के पास स्थित उस हाउस को होटल के लिए उपलब्ध कराने का फैसला कर लिया था।
पर कुछ लोग सरकार के उस फैसले के खिलाफ अदालत में चले गए और अदालत ने उस फैसले के खिलाफ आदेश जारी कर दिया। दरअसल मिंटो हाउस से संबंधित मुख्यमंत्री की वह जिद लोगों का समझ में नहीं आ रही थी। इसका एक कारण यह भी है कि कुछ दिन पहले ही मिंटों हाउस के पास की एक कोलॉनी के लोगों ने तीसरी और चौथी मंजिल बनाने की इजाजत मांगी थी, तो उनकी अर्जी को यह कहते हुए ठुकरा दिया गया था कि वह सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाका है, क्योंकि वहां राजभव है, जिसमें राज्यपाल रहते हैं। राज्यपाल से मिलने के लिए अति विशिष्ट आते हैं और राष्ट्रपति वे प्रधानमंत्री जैसे विशिष्ट लोग तो भोपाल यात्रा के दौरान वहीं ठहरते भी हैं। इसलिए आसपास के मकान को ऊंची करने की इजाजत नहीं दी गई।
यही कारण है कि लोगों को मिंटो हाउस होटल के निर्माण के लिए दिया जाना अटपटा लग रहा है। होटल के कारण भी तो राजभवन को असुरक्षित हो जाना का खतरा था। उसके अलावा वह जमीन निजी हाथ में मुफ्त में दी जा रही थी। इतना ही नहीं, मिंटो हाउस भोपाल की एक ऐतिहासिक घरोहर भी है। उस ऐतिहासिक धरोहर की वह गति लोगों का समझ में नहीं आ रही थी।
उसी तरह जैन मेडिकल कॉलेज के निर्माण में भी मुख्यमंत्री कुछ ज्यादा ही उत्साह दिखा रहे हैं। कॉलेज का इसके लिए बेशकीमती जमीन मु्फ्त में तो दी ही गई है, मुख्यमंत्री चाह रहे थे कि एक रुपए के किराए पर ली गई उस जमीन को बंधकर बनाकर बैकों से कर्ज लेने की अनुमति भी कॉलेज प्रबंधन को दे दी जाय। इसके लिए जिला प्रशासन ने अनुमति दे भी दी थी। कैबिनेट का फैसला होना बाकी था। जब वह मामला कैबिनेट के सामने आया, तो अनेक वरिष्ठ मंत्रियों ने उसका विरोध किया। दरअसल कॉलेज की उस जमीन पर मालिकाना हक राज्य का ही रहने वाला है। कॉलेज प्रबंधन को वह जमीन एक रुपए प्रति महीने के किराए पर दी गई है। अब यदि कॉलेज प्रबंधन बैंको से लिए गए कर्ज को वापस करने से इनकार कर दे, तो बैक उस जमीन को निलाम कर अपनी पैसा वापस पा सकता है। इसलिए मंत्रियो ने कहा कि सरकार अपनी जमीन को बंधक बनाकर किसी और को कर्ज लेने की इजाजत कैसे दे सकती। लिहाजा मुख्यमंत्री की मंशा पूरी नहीं हो सकी।
इन दो घटनाओं ने मुख्यमंत्री चौहान की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई है। आने वाले दिनो में भी जैन मेडिकल कॉलेज का मामला उनके लिए प्रतिष्ठा का विषय बना रहेगा, क्योंकि वह चाहते हैं कि उनकी पार्टी के विधायक अपने विकास कोष से 5 लाख रुपए उस कॉलेज को दे, लेकिन इसके लिए भी कई मंत्री तैयार नहीं हैं। (संवाद)
भारत: मध्य प्रदेश
मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर
कई मंत्री बगावती मुद्रा में
एल एस हरदेनिया - 2010-08-28 11:36
भोपालः पिछले एक सप्ताह में ऐसी दो घ्टनाएं घटी हैं, जिनसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिष्ठा को झटका लगा है। एक घटना का संबंध ऐतिहासिक मिंटो हाउस से है। मिंटो हाउस 4 दशकों तक राज्य की विधानसभा भवन के रूप में काम कर चुका है। उससे संबंधित एक सरकारी फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय ने आदेश जारी किए।