ग्रामीण व्यवसाय केन्द्र देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सहभागी विकास मॉडल की भूमिका निभाता है। इस प्रकार यह सार्वजनिक-निजी-पंचायत-भागीदारी के चतुष्पदी मंच का निर्माण करता है। ग्रामीण कारोबार केंद्र स्थापित करने के लिए आवश्यक संसाधनों को केंद्रीय राज्य स्कीमों के आपसी सहयोग के जरिए तथा साझीदारी संस्थाओं के माध्यम से उपयोग में लाया जा सकता है, हालांकि पंचायती राज मंत्रालय के बजट से कुछ धनराशि उपलब्ध करने की व्यवस्था है।
ग्रामीण व्यवसाय केंद्र की पहल 4-पी (पब्लिक-प्राइवेट-पंचायत-पार्टनरशिप) का मॉडल रही है जिसमें हर भागीदारी की भूमिकायें और जिम्मेदारियां स्पष्ट रूप से निर्धारित होती है और प्रत्येक भागीदारी दक्षता की पहचान, लोगों के अवदान तथा प्राकृतिक संसाधनों एवं स्थानीय निवासियों की चिन्ताओं को दूर करने और समुदाय के संपर्कों को मजबूत बनाने और सक्षम व्यवसाय पहल करने जिससे ग्रामीण लोगों को लाभ पहुंच सके तथा बाद में ग्रामीण कारोबार केंद्र से उभरते हुए आर्थिक विकास योजना को विकेन्द्रीकृत करते हुए पहल की जा सके। कारोबार के साझीदार ऐसे स्थानीय कौशलों उत्पादों की पहचान करेगें और कारोबार योजनाएं तैयार करेंगे जो स्थानीय रोजगार को टिकाऊ बनायेंगे। केंद्रीय राज्य सरकारें उपयुक्त नीति व्यवस्था के माध्यम से, सरकारी को सुनिश्चित करके तथा बुनियादी ढांचों आदि में प्रमुख अंतरालों को कम करके आवश्यक कार्रवाई करेगीं।
वर्तमान स्थिति
राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श करके ऐसे 35 जिलों की पहचान कर ली गई है जिनमें ग्रामीण व्यवसाय केंद्र (आर.बी.एच.) हस्तक्षेप कर सकता है। प्रसिध्द संगठनों की सेवा है लेने के लिए उनकी सूची बना ली गई है जैसे आर.बी.एच. और उनकी गतिविधियों की पहचान के लिए गेटवे एजेंसियों की सूची तैयार कर ली गई है। छब्बीस जिलों में आर.बी.एच. कार्यशालायें आयोजित की गई और सर्वोत्ताम उत्पादों की पहचान की गई।
13 अगस्त, 2009 को संशोधित मार्ग निर्देश जारी किए गए जिसमें उप-जिलास्तर पर आर.बी.एच. कार्यशालाएं आयोजित करने की अनुमति दे दी गई। मार्ग-निर्देशों के अनुसार, पंचायती मंत्रालय के पिछड़े क्षेत्र अनुदान कोष स्कीम के अंतर्गत आने वाले सभी 250 जिलों और पूर्वोत्तार के सभी जिलों में आर.बी.एच स्थापित करने के लिए धनराशि उपलब्ध कराई जा सकती है।
आर.बी.एच. स्कीम के तहत अब तक 57 परियोजनाओं के लिए वित्ताीय सहायता दी जा चुकी है।
योजना की अनोखी विशेषताएं
1. यह बाजार साझीदारी के जरिए अपेक्षाकृत व्यापक बाजार के साथ ग्रामीण उत्पादक का सम्पर्क जोड़ती है और इसे समेकित कारोबार के रूप में विकसित करती है जिससे दोनों पक्षों को लाभ होता है, इसलिए यह टिकाऊ होता है।
2. सबसे निचले स्तर की ग्रामीण लोकतांत्रिक संस्थायें पंचायतें स्थानीय स्वायत्ता सरकारें आर्थिक विकास के लिए योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन में मुख्य भूमिका निभाती है, जिसमें स्थानीय संसाधन प्रदायगियों पर आधारित हैं, लोगों की आवश्यकताएं तथा सापेक्ष खपत की क्षमता की जरूरतें महसूस करती है।
3. परियोजना ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है और यह आर्थिक कार्य-कलाप पर आधारित है। यह ग्रामीण रोजगार तथा आजीविका के अवसर उपलब्ध कराती है।
4. यह स्कीम मांग पर आधारित है तथा राज्यवार कोई आबंटन नहीं है।
भविष्य की योजनाएं - स्कीम को लोकप्रिय बनाने तथा इसके क्षितिज को व्यापक बनाने के लिए भारतीय उद्यमशीलता विकास संस्थान, गुजरात इस समय आर.बी.एच. का मूल्यांकन एवं पुनर्सरंचना अध्ययन कर रहा है।
भारत में ग्रामीण व्यवसाय केन्द्र
विशेष संवाददाता - 2010-08-31 12:59
हमारे देश में पंचायतें सबसे निचले स्तर की संस्थायें हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में समाजिक तथा आर्थिक विकास में प्रगति लाने के मामले में इन्हें संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। ग्रामीण व्यवसाय केन्द्र की पहल का मुख्य उद्देश्य मात्र आजीविका सहयोग से आगे बढ़कर ग्रामीण समृध्दि को प्रोत्साहन देना, गैर-कृषि आमदनी को बढ़ाना और ग्रामीण रोजगार की वृध्दि करना है। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भारत के त्वरित आर्थिक विकास का विस्तार करना है।