आप देखिए, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया... कई देशों ने अपने नागरिकों के लिए पर्यटन चेतावनी सलाह जारी कर दी है। बाहरी देशों के लिए तो चिंता का कारण इसलिए भी हैं, क्योंकि हमला उस बस पर हुआ जिसमंे विदेशी पर्यटक सवार थे और घायल होने वाले दोनों विदशी ( ताईवानी) थे। इसके पूर्व 13 फरवरी को पुणे में हुए हमले का निशाना भी मूलतः विदेशी ही थे एवं 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले में भी आतंकवादियों ने विदेशियों को मुख्य तौर पर निशाने पर लिया था। वास्तव में इस घटना के मूल्यांकन के लिए हम दो प्रश्नों को आधार बना सकते हैं। एक, कौन हो सकते हैं हमलावर एवं दो, भारत के एक नागरिक के रूप में इस पर हमारी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए?
इस मायने में हमलावरों की यह सफलता है कि वे भय व आशंका का आतंकी संदेश देने में एक हद तक सफल रहे। ऐसे समय, जबकि राष्ट्रमंडल खेलों को भारत सरकार ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है, भारी संख्या में विदेशी खिलाड़ी एवं दर्शकों के रूप में पर्यटकों के आने की संभावना है, राजधानी में ही इस प्रकार का हमला साधारण धक्का नहीं है। यह तो संयोग कहिए कि न कोई मरा और न गंभीर रुप से घायल हुआ, अन्यथा भारत के लिए और ज्यादा चिंता की स्थिति बन चुकी होती। जाहिर, है ऐसे परिणाम की चाहत रखने वाले साधारण अपराधी नहीं हो सकते। साधारण अपराधी वैसे भी जामा मस्जिद के शाही इमाम के घर से 100 मीटर की दूरी पर गेट नं 3 के सामने विदेशी पर्यटकों वाली बस पर क्यों हमला करेंगे? फिर कार में विस्फोट का क्या प्रयोजन हो सकता है? कार में प्रेशर कूकर मेें विस्फोट हुआ जिसमें से सर्किट मिला है। यानी उसमें टाइम बम का प्रयोग हुआ है। ऐसा विस्फोट इसके पूर्व वाराणसी के संकटमोचन मंदिर में हो चुका है। तो कौन हो सकते हैं हमलवार?
गोलीबारी के दो घंटे बाद इंडियन मुजाहीद्दीन के नाम से ईमेल सामने आ गया। उसने इस हमले की जिम्मेवारी ली है। इसे स्वीकार कर लिया जाए तो यह वारदात इंडियन मुजाहीद्दीन नामक संगठन का है। ईमेल में बार-बार कुरान शरीफ और अल्लाह का हवाला दिया गया है। इंडियन मुजाहीद्दीन ने पहले भी जितने हमलांे की जिम्मेवारी ली सबकी भाषा लगभग ऐसी ही थी। ईमेल पता में अल-अरबी शब्द का प्रयोग है। 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद पर हुए आतंकी हमलों के बाद आए ईमेल मेें यह शब्द प्रयोग हुआ था। इसके आधार पर शक की सूई इंडियन मुजाहीद्दीन की ओर जाती है। अब जरा ईमेल के अंश को देखिए। उसमें कहा गया है कि सावधान, यह अल्लाह के शेरांे की पहल है। हम आपको चुनौती देते हैं कि यदि दम है तो राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन करके दिखाइए। हमें पता है कि खेलों की तैयारियां जोरों पर है। हम भी आश्चर्यचकित कर देने के लिए पूरी तरह तैयारी कर रहे हैं। कहा गया कि अल्लाह के नाम पर यह हमला बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए आतिफ अमीन व मोहम्मद साजिद को समर्पित है। ध्यान रखने की बात है कि दो वर्ष पहले 19 सितंबर को ही दिल्ली के बाटला हाउस में ही ये दोनों पुलिस गोलीबारी में मारे गए थे।
इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम से भेजे गए मेल पहले भी सच साबित हुए हैं। बाटला हाउस के उल्लेख से आशंका की सीधे इंडियन मुजाहिद्दीन के उन सदस्यों की ओर जाती है जो फरार हैं। बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए युवक आजमगढ़ के संजरपुर गांव के थे जिन पर इंडियन मुजाहीद्दीन का सदस्य होने का आरोप था। उस गांव का एक युवक मोहम्मद सैफ गिरफ्तार है तथा पांच फरार हैं। इन पर पुलिस ने पांच- पांच लाख रुपए का इनाम रखा है। हालांकि इसके पूर्व इंडियन मुजाहीद्दीन ने हाथ में हथियार लेकर हमला नहीं किया था। 26 नवंबर के मुंबई हमले में अवश्य आतंकवादियों ने विस्फोटकांे के साथ हाथ से चलाने वाले हथियारों का प्रयोग किया था, किंतु वे सारे पाकिस्तानी थे एवं उनका संबंध लश्कर-ए-तैयबा से था। इंडियन मुजाहीद्दीन केवल विस्फोटकों का प्रयोग करता रहा है। 1980 के दशक में खालिस्तान के नाम पर आतंकवादी हमले करने वाले सिख अतिवादी अवश्य ऐसे हमले करते थे। इस समय पाकिस्तान की लश्कर-ए-झांगवी थाईलैंड के जेहादी आतंकवादी अवश्य हमले का यह तरीका अपनाते हैं। पाकिस्तान में इसी कारण मोटरसाइकिल पर पीछे की सवारी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि लश्कर-ए-झांगवी इलियास कश्मीरी से जुड़ा है जिसने कुछ महीने पूर्व राष्ट्रमंडल खेलों में बाधा डालने की धमकी दी थी। इंडियन मुजाहिद्दीन के ईमेल में कहा ही गया है कि अगर आप राष्ट्रमंडल खेलों का अयोजन करते हैं तो जो कुछ होगा उसकी जिम्मेवारी आपकी होगी।
ईमेल में कश्मीर से लेकर, मुंबई के आतंक विरोधी दस्ते द्वारा की गई गिरफ्तारियों आदि को भी प्रतिशोध का कारण बताया गया है, पर मुख्य जोर बाटला हाउस मुठभेड़ एवं राष्ट्रमंडल खेलों पर ही है। जेहादी आतंकवादी इस अवसर पर खून और विध्वंस का कारनामा कर सकते हैं, यह आशंका थी। राष्ट्रमंडल खेलों की गई सुरक्षा के जितने विवरण सामने आए हैं, उनसे सामान्य निष्कर्ष यही निकलता था कि उसे भेद पाना नामुमकिन है। कितु दिल्ली पुलिस एवं गृह मंत्रालय संभवतः बाटला हाउस मुठभेड़ दिवस को भूल चुके थे। यह कहना मुश्किल है कि इसे याद रखकर सतर्कता बरती जाती तो जो घटना हुई वह नहीं होती, लेकिन जामा मस्जिद सहित आतंकवादियों के प्रतिशोध की दृष्टि वाले स्थानों पर सुरक्षा ज्यादा सख्त होती। प्रत्येक स्थान को सुरक्षा घेरे में लाना संभव नहीं, किंतु यह समझ से परे है कि विदेशी पर्यटकों से भरी कोई बस ऐसे समय बिना सुरक्षा के चलती रहे। इसे सुरक्षा चूक मानने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। यह तो गनीमत कहिए कि मोटरसाइकिल पर पीछे सवार हमलावर का निशाना ठीक से नहीं लगा तथा एक रिक्शेवाले की बहादूरी एवं बिना हथियार के सिपाही की दिलेरी ने उन्हें गिरा हथियार छोड़कर जाने को मजबूर किया, अन्यथा वहां कुछ की तो जानें जा हीं सकतीं थीं। इसी तरह कार विस्फोट में भी संयोग से ही कोई नहीं मरा।
किंतु भारत के एक नागरिक के नाते हमें इससे कतई घबराना नहीं चाहिए। अगर हम घबराते हैं या भयभीत होकर अतिवादी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं तो इससे आतंकवादियों का लक्ष्य ही सधेगा। मीडिया का जो वर्ग इसका अतिवादी प्रचार कर रहा है वह निंदनीय है। यह घटना चिंताजनक है तथा सुरक्षा चूक का पहलू भी इससे जुड़ा है, पर यह बिल्कुल अनपेक्षित नहीं है। हम इसे इस रूप में भी ले सकते हैं कि आतंकवादी तो किसी बड़े विनाश का तांडव कायम करना चाहते थे, पर मजबूर होकर वे एक छोटी घटना को अंजाम देकर भाग निकले। राष्ट्रमंडल खेलों के हम विरोधी हो सकते हैं, पर घबराहट से हम अपनी क्षति ज्यादा करेंगे और देश का सम्मान भी गिराएंगे। हमें यह याद रखना चाहिए कि बीजिंग में 2008 में ओलम्पिक के पूर्व आतंकवादियों ने कई हमले किए और चीन में पहली बार सुरक्षा बल हताहत हुआ। उसकी क्षति हमसे ज्यादा थी, किंतु चीन के नेतृत्व ने अपने सख्त रवैये से असुरक्षा का संदेश नहीं निकलने दिया एवं ओलम्पिक का सुरक्षित आयोजन किया। ऐसा ही हमारे देश में भी होना चाहिए। (संवाद)
हमला आतंकवादी है, पर इससे घबराकर हम उनका ही लक्ष्य साधेंगे
बीजिंग में भी 2008 में ओलम्पिक के पूर्व आतंकवादियों ने कई हमले किए थे
अवधेश कुमार - 2010-09-27 12:20
जामा मस्जिद के सामने पर्यटक बस पर हुए हमले तथा एक कार विस्फोट से संबंधित जितनी जानकारियां सामने आईं हैं वे सब इसे एक आतंकवादी हमला साबित करती हैं। हमला चाहे आतंकवादी करें, या अन्य हताहतों की संख्या एवं क्षति की मात्रा चाहे जितनी हो, नागरिकों के लिए परिणाम समान है, अंतर्मन में भय पैदा होना। देश के बाहर भी यही संदेश गया कि भारत की राजधानी आतंकवादी हमलों से महफूज नहीं है।