हालांकि हमारे देश में कुछ लोग एवं संगठन ऐसे हैं जिनको इतने मात्र से संतोष नहीं हो सकता है, क्योंकि ऐसे ही मामलों पर उनको सुर्खियां मिलतीं हैं। दुर्भाग्य से सलमान खान की छवि कई कारणों से विवादास्पद बनी रही है और इसका लाभ ऐसे लोग उठाते है। यह बात अलग है कि सलमान को निकट से जानने वाले या उन पर ईमानदार नजर रखने वाले जानते हैं कि व्यक्ति के तौर पर वे एक शालीन, संवेदनशील, विचारों के स्तर पर उदार एवं अपने नजरिए से सबका सम्मान करने वाले व्यक्ति हैं। बहरहाल, समग्र रुप से देश के लिए यह मामला अब समाप्तप्राय है, किंतु कई प्रश्न अनुत्तरित है। मसलन, आखिर सलमान के बयान पर इतने बावेला का औचित्य क्या था? क्या सलमान ने वाकई ऐसा कुछ कहा था जिससे भारत विरोध एवं पाकिस्तान के समर्थन की बू आती थी और वह भी खासकर आतंकवाद के मामले पर? क्या उनकी बातंें ऐसीं थीं जिनसे मुंबई हमले के पीड़ितों की भावनाओं को चोट पहुंचती थी? क्या मुंबई हमले के खिलाफ देशवासियों के अंदर जो भावनाएं पैदा हुईं, जो प्रतिक्रियाएं सामनें आईं, सलमान की बातें उनका उपहास उड़ाने वाली या गलत साबित करने वालीं थीं?

26 नवंबर 2008 का हमला भारत पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था। हमले में होने वाली क्षति कम हो या ज्यादा, हताहतों की संख्या चाहे जितनी है, भारत के नागरिक के नाते हम सबके अंदर समान पीड़ा व उबाल पैदा होनी चाहिए। आतंकवादी हमलों में हमारी प्रतिक्रिया हताहतों या क्षति पाने वाले वर्ग के अनुसार नही होना चाहिए। किंतु क्या यह गलत है कि हमले दर हमले होते रहे, पर इसके पहले इतना आक्रामक प्रदर्शन एवं सरकार के लिए बाध्यकारी प्रतिक्रयाएं नहीं आई थी। सलमान ने यही तो कहा कि होटल ताज, ओबेराय... आदि पर हमले से सीधे एलिट वर्ग प्रभावित हुआ, इसलिए यह इतना बड़ा मुद्दा बन गया। सलमान ऐसा कहने वाले अकेले नहीं हैं, न जाने कितने लोगों ने बार-बार यही बात कही है। यह ठीक है कि शिवाजी टर्मिनल रेल स्टेशन पर भी हमला हुआ, पर आतंकवादियों का मुख्य फोकस ये स्थल ही थे। जिन लोगांे ने मुंबई हमले के बाद उभरी प्रतिक्रियाओं और हो रहे प्रदर्शनों पर ऐसा मत व्यक्त किया, वे न तो संवेदनहीन थे, न इलिट वर्ग को निशाना बनाने पर प्रसन्न थे, बल्कि उन सबका यह नजरिया था कि यदि ताज, ओबेराय आदि पर हमला नहीं होता तो इसके विरुद्ध इतनी संगठित प्रतिक्रिया सामने नहीं आती। किसी का इससे मतभेद हो सकता था, किंतु अपना नजरिया प्रकट करने के अधिकार से किसी को जबरन वंचित नहीं किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि सलमान जैसे सेलिब्रिटी यदि ऐसा नहीं बोलते तो अच्छा होता। यानी उन्हें इस प्रकार बोलना नहीं चाहिए था। इस प्रकार के मत का भी समर्थन नहीं किया जा सकता। देश में किसी को अपना मत व्यक्त करने का अधिकार है तो सलमान को भी है। वह भी उन्होंने पाकिस्तानी पत्रकार द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में ऐसा कहा।

यह भी साफ है कि उस हमले के सूत्र पाकिस्तान में थे और भारत ही नहीं, अमेरिका, इजरायल एवं ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां भी यह सत्यापित कर चुकीं हैं कि हमले के दौरान हमलावरों को पाकिस्तान से लगातार निर्देश आ रहे थे और उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा था। यानी कुल मिलाकर पाकिस्तान की भूमिका बिल्कुल स्पष्ट है और पाकिस्तान की सरकार ने भी आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करके इसे सही साबित कर दिया है। यह बात अलग है कि हम जिस प्रकार, जिनके खिलाफ और जैसी कानूनी परिणति चाहते हैं वैसा वहां नहीं हो रहा और इसे लेकर दोनों देशों की सरकारें बयानवाजी करतीं रहतीं हैं। सलमान खान ने पाकिस्तानी टेलीविजन चैनल को दिए साक्षात्कार में इन तथ्यों को गलत करार नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि सब जानते हैं कि उस हमले के पीछे पाकिस्तान सरकार का हाथ नहीं था। मुंबई हमले के आरोप पत्र में भी सीधे पाकिस्तान सरकार की संलिप्तता स्वीकार नहीं की गई है। इसलिए सलमान खान का कथन उसी सच का प्रकटीकरण था जिसे भारत की सुरक्षा एजेंसियां बता चुकी हैं। इसलिए इसके आधार पर सलमान को कठघरे में खड़ा करना अन्यायपूर्ण है। इसे कोई पाकिस्तान का समर्थन या भारत के एक नागरिक द्वारा भारत विरोधी वक्तव्य कहे तो उसकी बुद्धि पर केवल तरस आ सकती है।

सलमान खान का इरादा न पाकिस्तान को बेदाग साबित करना था, न यह संदेश देना था कि भारत बेवजह पाकिस्तान को बदनाम कर रहा है और न ही आतंकवादियों द्वारा संपन्न वर्ग की नृशंस हत्या को वे उचित ठहराना चाहते थे। पाकिस्तानी टेलीविजन से बातचीत में वे निश्चय ही यह संदेश देना चाहते थे कि दोनों देशों को आतंकवाद के साथ अन्य तनावकारक मुद्दों के रहते हुए भी आपसी रिश्ते सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसी सदीच्छा व्यक्त करने वाले सलमान अकेले नहीं है। उनके अनुसार चुूंकि पाकिस्तान सरकार का इसमंे हाथ नहीं था, इसलिए रिश्ते सुधारने मंे सरकार को भी समस्या नहीं होनी चाहिए। देश मंें ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो यह मानते हैं कि तमाम विवादों के बावजूद कम से कम दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक .... मामलों में संबंध बेहतर करने की लगातार कोशिश होनी चाहिए। जिस तरह सलमान दोनों देशों के नागरिकों के बीच आदान-प्रदान और भाईचारे के समर्थक हैं वैसे ही दूसरे भी हैं। हां, हम यह कह सकते हैं कि सलमान शायद जो कहना चाहते थे शब्दों से वही भाव व्यक्त नहीं कर सके। वर्तमान सामाजिक ढांचे में सलमान जैसी सेलिब्रिटी के शब्दों को मीडिया सहित कई संगठन उड़ा लेने के चक्कर में रहते हैं और समाज पर उसका सीधा असर होता है। इस माहौल में प्रत्येक सलिब्रिटी के लिए जरुरी है कि वे अपनी प्रतिक्रियाएं ज्यादा सोच-समझकर व्यक्त करें, किंतु यदि ऐसा कुछ बोल भी दिया जाए तो देश के माहौल में इतनी उदारता तथा हमारे अंदर इतना धैर्य होना चाहिए कि हम शब्दों की जगह उसके पीछे के भाव को भी देख सकें।

वास्तव में भारत के लिए चिंता का विषय तो सामान्य बयान का इतना विवादास्पद बन जाना तथा एक वर्ग द्वारा इसके आधार पर समाज के अंदर विरोधी उबाल पैदा करने में प्राप्त क्षणिक व आंशिक सफलता मिलना है। यदि देश के अंदर किसी के बयान या मत पर गंभीरता से विचार करने का धैर्य निःशेष हो जाए, किसी बयान के पीछे निहित इरादे को समझे बगैर हगामा पैदा करने की फितरत बन जाए तो फिर वहां गंभीर विमर्श ही नहीं, आवश्यक कठोर फैसले का माद्दा भी धीरे-धीरे मर जाता है। दुर्भाग्य से भारत इसी दिशा की ओर अग्रसर है और सलमान प्रकरण इसका अभी सबसे अंतिम प्रमाण है। (संवाद)