केन्द्र सरकार अभी 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून पर माथापच्ची कर रही है। वह इस पर कोई नया कानून बनाए उसके पहले ही राजस्थान सरकार ने अपने भूमि हदबंदी कानून में बदलाव कर वह सबकुछ संभव बना दिया है, जिससे उद्योगपति अपने उ़द्योगों के लिए किसानो ंसे जमीन खरीद सकेंगे।

भूमि हदबंदी कानून में बदलाव करके राजस्थान सरकार ने अब यह संभव अना दिया है कि किसान और उद्यमी आपस में तय की गई दर पर जमीन की खरीद बिक्री कर सकेंगे। उसके कारण किसानों को अपने मन के मुताबिक अपनी जमीन की कीमत मिल जाएगी और उन्हें किसी से यह शिकायत नहीं रहेगी कि उसकी जमीन को कम कीमत पर जबर्दस्ती खरीदी गई है।

अभी सरकार को उद्योगों के लिए जमीन किसानों से अधिग्रहण करना पड़ता था। अधिगृहित जमीन को वे उद्योगपतियों को दे देती थी। वह अधिग्रहण 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत करती थी। कानूनी बदलाव के अमल में आने के बाद उद्योगांे के लिए जमीन उपलब्ध करवाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं होगी।

दिलचस्प बात यह है कि भूमि हदबंदी कानून में वह बदलाव सर्वसम्मति से हुआ। बदलाव के लिए पेश किए गए विधेयक पर किसी प्रकार की बहस करने की जरूरत भी नहीं समझी गई।

पुराने भूमि हदबंदी कानून के तहत जमीन के मालिकाना हक की सीमा तय की गई थी। उसके कारण एक सीमा से ऊपर कोई व्यक्ति जमीन ख्रीद ही नहीं सकता था। इस तरह के कानून भूमि सुधार के तहत देश के लगभग सभी राज्यों में बने हुए हैं। उद्योगपति अपने उद्योगों के लिए भी जमीन इसी सीमा के अंदर ही खरीद सकतें हैं। इस सीमा के कारण वे किसानों से पर्याप्त क्षेत्रफल की जमीन नहीं खरीद पाते थे और उन्हें राज्य सरकार के आबंटन पर निर्भर होना पड़ता था।

राज्य सरकार उद्योगों के लिए जब जमीन हासिल करना चाहती थी, तो किसानों की ओर से उसका विरोध होता था। किसानों की शिकायत होती थी कि उन्हें उनकी जमीन का उचित मुआवजा नहीं मिल रहा है। उनका कहना होता था कि सबको अपनी संपत्ति यदि अपनी शर्तों पर बेचने का अघिकार है, तो फिर उनकी संपत्ति (खेत) को सरकार औने पौने दामों पर अधिसूचना के द्वारा कैसे खरीद सकती है।

अब हदबंदी कानून में बदलाव कर सीमा समाप्त करने के बाद उद्योगपति तो अपने उद्योगों के लिए किसी इलाके में अपने मन मुताबिक पैमाने पर किसानों से परस्पर सहमत दर पर जमीन तो खरीदेंगे ही, इसका लाभ उन्हें भी मिलेगा, जो हाउसिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं। यानी निजी बिल्डर और कोलोनाइजर्स भी हदबंदी कानून में किए गए बदलाव का फायदा उठा सकेंगे।

इस कानून में बदलाव के अपने खतरे भी हैं। अपनी जमीन की ज्यादा कीमत मिलने के लोभ में किसान अपनी जमीन को बेचकर करोड़पति बनना चाहेगे, लेकिन इसके कारण खेती योग्य जमीन के लगातार घटते जाने का खतरा है। राजस्थान में वैसे भी खेती योग्य जमीन ज्यादा नहीं है और राज्य का बहुत बड़ा भाग्य बंजर है। जो थोड़ी बहुत जमीन है, वह यदि उद्योगों के सुपूर्द हो गई, तो इससे अनाज के उत्पादन में कमी हो जाएगी। उद्योगपति वही जमीन खरीदना चाहेगे, जिमा लोकेशन बसे बसाए इलाके के पास है। कहने की जरूरत नहीं कि उनका निशाना वही जमीन होगी, जहां खेती होती है। इस तरह राज्य में खेती पर संकट पैदा हो सकता है।

एक और खतरा लैड माफिया की ओर से हो सकता है। लैड माफिया जमीन की खरीद में जोर जबर्दस्ती भी कर सकते हैं और पुलिस के साथ नापाक गठबंधन बनाकर अनिच्छुक किसानों को भी जमीन बेचने के लिए बाध्य कर सकते है। इसके अलावे सट्टेबाजी को भी बढ़ावा मिल सकता है। सट्टेबाज जमीन खरीदकर उसे ऊंचे मूल्य पर बेचने के लिए उसे कुछ समय तक फंसाकर भी रख सकते हैं। (संवाद)