इस समय ममता बनर्जी की पार्टी के हाथों में दो जिला परिषद हैं। इसके अलावा अनेकों पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों पर भी उनकी पार्टी का कब्जा है। नगर निगमों और नगरपालिकाओं में से अधिकांश में उन्हीं की पार्टी का नियंत्रण है। चुनावों में तृणमूल वाम मोर्चा के नेताओं के भ्रष्टावार को मुख्य मुद्दा बनाती रही है। यदि स्थानीय निकायों का नेतृत्व कर रहे तृणमूल कांग्रेस के नेता खुद ही भारी संख्या में भ्रष्टाचार के आरोपों के दायरे में आने लगे, तो फिर अगले चुनाव में ममता की पार्टी किस मुह से वाम नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज निकाल पाएगी?

पंचायत चुनावों में सबसे महत्वपूर्ण जीत तृणमूल को सिंगूर में हुई थी। वहां चले आंदोलन में टाटा की कार परियोजना को वहां से हटवा दिया गया था। राजनैतिक पंडित कह रहे थे कि उसके कारण ममता की पार्टी को नुकसान होगा, क्योंकि टाटा परियोजना के वहां से हटने से हजारों लोगों के सपने मारे गए। लेकिन हुआ उसका बिलकुल उलटा। ममता की पार्टी सिंगूर में भी जीत गई और वहां की पंचायत समिति पर उसी का कब्जा है।

लेकिन अब सिंगूर का परिदृश्य फिर बदल रहा है। सिंगूर पंचायत समिति की चेयरपर्सन सुलेखा मलिक को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। तृणमूल की उस नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे और उसके कारण ही उन्हें अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। तृणमूल नेता बेचाराम मन्ना ने उनके खिलाफ अभियान ही चला दिया। गौरतलब है कि श्री मन्ना सिंगूर के खिलाफ आंदोलन कर रहे मुख्य स्थानीय नेता थे। पंचायत समिति की चेयरपर्सन पर उन्होंने गरीबों के लिए खरीदी जाने वाली जमीन में घोटाला करने का आरोप लगाया।

जमीन खरीद योजना के अनुसार सरकार गरीबों को जमीन मुफ्त बांटती है। जमीन बांटने के लिए वह उसकी खरीद भी करती है। जमीन खरीदने के लिए पंचायत समितियों को धन उपलब्ध कराया गया है। उस पैसे से समिति जमीन खरीदती है। घोटाला खरीद में ही हुआ है। जमीन को बाजार की कीमत से बहुत ज्यादा दर पर खरीदा गया और उसमें अपने लोगों का चेयरपर्सन द्वारा उपकृत किया गया। उसमें लाखों की दलाली खाने के आरोप भी लगे हैं। ज्यादा पैसे में कम जमीन की खरीद होने से लाभान्वितों की संख्या भी कम हो गई। आरोप है कि इस खरीद में 30 लाख रुपए का घपला हुआ है व 4 या 5 लोगों ने मिलकर उस रकम का बंदरबांट किया।

नसीबपुर ग्रामपंचायत ने गोविंदपुर मौजा में दो एकड़ जमीन के लिए 70 लाख रुपए का भुगतान किया, जबकि वहां 2 एकड़ जमीन की कीमत 27 लाख रुपए से ज्यादा नहीं है। जाहिर है उसके बाद स्थानीय लोगों ने सवाल पूछले शुरू कर दिए और प्रशासन के पास उसका कोई जवाब नहीं था। इसके अलावा सरकार द्वारा चलाई जा रही अन्य योजनाओं में भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं।

उसी तरह पूर्वी मिदनापुर जिले के बृंदावनचक ग्राम पंचायत के ऊपर नरेगा के अंतर्गत 24 लाख रुपए के दुरुपयोग का मामला है। सड़क के निर्माण में की गई गड़बड़ी का यहां आरोप है। कहा जा रहा है कि ठेकेदार ने ज्यादा खर्च दिखाया और उसका भुगतान कर दिया गया। नादिया जिले के हकशाली में तो नरेगा के काम में भ्रष्टाचार के मसले पर गिरफ्तारियां भी हुई हैं। 5 गिरफ्तार लोगों में तृणमूल का ग्राम प्रधान भी शामिल है। ये तो कुछ उदाहरण है। सच तो यह है कि इस तरह के अनेक भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। ममता बनर्जी का पलड़ा अभी भी भारी हैख् लेकिन उनकी पार्टी के स्थानीय नेताओं के भ्रष्टाचार के बढ़ते मामले उसे उनकी चुनावी फिजा खराब भी हो सकती है। (संवाद)