आखिर भारत में ओबामा की लोकप्रियता के इतना नीचे गिरने का राज क्या है? क्या इसके लिए ओबामा की नीतियां तो जिम्मेदार नहीं है? यदि ऐसा है तो इसका बराक ओबामा की भारत यात्रा पर क्या आर पड़ेगा? वे अगले नवंबर में भारत आ रहे हैं। यह सच है कि भारत और अमेरिका के संबंध लगातार मजबूत होते जा रहे हैं। लेकिन भारत की अमेरिका से अभी बहुत उम्मीदें हैं।
ओबामा की यात्रा उनके पूर्ववर्ती क्लिंटन और बुश की भारत यात्रा से इस मायने में अलग है कि उन दोनों ने भारत की अपनी यात्राएं अपने कार्यकाल के दूसरे दौर में की थी, जबकि ओबामा अपने पहले कार्यकाल में ही भारत की यात्रा कर रहे हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने सबसे पहले भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ही पहला राजकीय अतिथि के रूप में मेजबानी की थी।
भारत की विदेश सचिव निरुपमा राव असी सप्ताह अमेरिका जा रही हैं। उसके दौरान वे ओबामा की भारत यात्रा की पृष्ठ भूमि तैयार करेंगी। भारत चाहेगा कि यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों के इतिहास में मील का पत्थर साबित हो। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसे एक ऐतिहासिक यात्रा बनाना चाहेगे।
लेकिन इस यात्रा के ऐतिहासिक बनने के रास्ते में कुछ बाधाएं भी हैं। दोनों देश एक दूसरे की अपेक्षाओं को किस हद तक पूरा करेंगे यह अनेक मामलों पर निर्भर करता है। भारत की विदेश सचिव निरुपमा राव ने भारत की चिंताओं से अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को अवगत करा दिया है। दूसरी तरफ अमेरिका ने भी भारत को अपनी चिंताओं से अवगत करा दिया है।
भारत में यह राय बन रही है कि ओबामा के पूर्ववर्ती जार्ज बुश की चिंताओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील थे, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति में उस तरह की संवेदनशीलता का अभाव है। सीमा सुरक्षा विधेयक इसका एक उदाहरण है। इसके तहत कुछ वीजा शुल्कों को बढ़ाने का प्रावधान है। इसके कारण भारत की अधिकांश कंपनियों को नुकसान होगा।
आउटसोर्सिंग पर ओबामा प्रशासन कर रवैया भी चिंता का कारण है। भारत की बीपीओ सेक्टर अमेरिका और यूरोपीय देशों के आउटसोर्सिंग पर बहुत हद तक निर्भर है। ओबामा अपनी नीतियों से अमेरिका से हो रहे आउटसोर्सिंग पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने घोषणा की है कि उन कंपनियो को कर रियायत दी जाएगी, जो आउटसोर्सिंग नहीं करते। इसके कारण भले ही अमेरिकी नागरिकों को ज्यादा रोजगार मिलता हो, लेकिन भारत की बीपीओ कंपनियों को तो इससे भारी नुकसान होगा।
जाहिर है अमेरिका संरक्षणवाद की ओर बढ़ रहा है और अपनी अर्थव्यवस्था को बंद करने की कोशिश कर रहा है। भारत यह पता करने की कोशिश कर रहा है कि अमेरिका का यह संरक्षणवाद डब्ल्यू टी ओ के प्रावधानों के खिलाफ तो नहीं है। वह इसे इस संगठन में इस मामले को उठा सकता है।
भारत की एक चिंता हाई टेक ट्रांसफर को लेकर भी है। पोखरण के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत को हाई टेक ट्रांसफर पर रोक लगा रखी है। हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के रिश्ते बेहतर होने के साथ रोक में थोड़ी शिथिलता भी आई है, लेकिन भारत चाहता है कि यह रोक पूरी तरह हटा दी जानी चाहिए।
पाकिस्तान के साथ भारत का रिश्ता भी अमेरिका से बेहतर रिश्ता बनाने में एक बाधा बन रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत करता रहे, लेकिन हाल ही में पाकिस्तान ने कश्मीर को लेकर एक ऐसा बयान दिया है, जिससे भारत के साथ उसकी बातचीत फिर से ठप हो सकती है। पाकिस्तान अपने किए गए वायदों के अनुसार मंुबई हमले में शामिल पाकिस्तानियों के खिलाफ कोई संतोषजनक कार्रवाई भी नहीं कर रहा है। पाकिस्तान की अफगानिस्तान में भूमिका भी अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते को प्रभावित कर रहा है।
भारत सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता चाहता है और इसके लिए उसे अमेरिका का समर्थन मिलना जरूरी है। अमेरिका भारत के दावे का विरोध तो नहीं करता, लेकिन वह इसका साफ साफ शब्दों में समर्थन भी नहीं कर रहा है। भारत चाहेगा कि अमेरिका अपनी झिझक त्याग कर भारत की स्थाई सदस्ता का समर्थन करे।
दूसरी ओर अमेरिका को भारत द्वारा बनाए गए परमाणु देयता कानून को लेकर आपत्ति है। उसे लग रहा है कि इस कानून के प्रावधानों के कारण अमेरिका के साथ भारत के परमाणु रिश्ते प्रगाढ़ नहीं बन सकते, इसलिए वह इस कानून में फेरबदल चाहता है। उसका कहना है कि यह कानून अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है, जबकि भारत का कहना है कि यह पूरी तरह से उन मानकों के अनुरूप है।
ओबामा की यात्रा के दौरान दोनों पक्षों की ओर से अपनी अपनी चिंताओं के अनुरूप बातचीत होगी। दोनों के बीच कुछ समझौते भी होंगे, लेकिन यह यात्रा ओबामा की भारत में गिरी रेटिंग से जरूर प्रभावित होगी। (संवाद)
भारत में ओबामा की रेटिंग गिरी
उनकी भारत यात्रा पर पड़ेगा इसका असर
कल्याणी शंकर - 2010-09-24 13:56
ताजा गैलप पोल के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की लोकप्रियता का ग्राफ भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तेजी से गिरा है। आज वे इन तीनों देशों में अपनी लोकप्रियता के सबसे निचले पायदान पर हैं।