महात्मा गांधी गांवों में गृह उद्योगों की दुर्दशा से चिंतित थे। स्वदेशी आंदोलन-विदेशी बहिष्कार और खादी को प्रोत्साहन देना उनके जीवन के आदर्श थे जिनको आधार बनाकर उन्होंने देशभर के करोड़ों लोगों को आजादी की लड़ाई के साथ जोड़ा। उन्होंने कहा कि खादी का मूल उद्देश्य प्रत्येक गांव को अपने भोजन एवं कपड़े में स्वावलंबी बनाना है।
‘मेरे सपनों का भारत’ में महात्मा गांधी के विभिन्न विषयों पर लिखे विचारों को प्रस्तुत किया गया है। महात्मा गांधी ने समय-समय पर यंग-इंडिया, हरिजन, हरिजन सेवक के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपने विचार व्यक्त किये थे। इन विचारों का स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के साथ गहरा संबंध रहा है क्योंकि इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर लाखों नर-नारी किसी न किसी रूप में आजादी की लड़ाई में शामिल होते चले गये।
गांधी जी ने ‘मेरे सपनों का भारत’ में लिखा है – “भारत की हर चीज मुझे आकर्षित करती है। सर्वोच्च आकांक्षाएं रखने वाले किसी व्यक्ति को अपने विकास के लिए जो कुछ चाहिए, वह सब उसे भारत में मिल सकता है।” उनका स्पष्ट रूप से यह मानना था कि भारत अपने मूल स्वरूप में कर्मभूमि है, भोगभूमि नहीं।
‘स्वराज्य’ के अर्थ को परिभाषित करते हुए गांधी जी ने लिखा – “स्वराज्य एक पवित्र शब्द है, वह एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ आत्मशासन और आत्म संयम है। अंग्रेजी शब्द ‘इंडिपेंडेस’ अकसर सब प्रकार की मर्यादाओं से मुक्त निरंकुश आजादी का, या स्वच्छंदता का अर्थ देता है, वह अर्थ स्वराज्य शब्द में नहीं है।”
गांधी जी ने स्वराज्य की जो कल्पना की थी या स्वराज्य के बारे में उनकी जो अवधारणा थी वह स्वतंत्रता के बाद कई क्षेत्रों में साकार हुई है। स्त्री समानता और बालिग मताधिकार के बारे में उनका मत था – “स्वराज्य से मेरा अभिप्राय है लोक सम्मति के अनुसार होने वाला भारतवर्ष का शासना। लोक-सम्मति का निश्चय देश के बालिग लोगों की बड़ी से बड़ी तादाद के मत के जरिये हो, फिर वे चाहे स्त्रियां हों या पुरुष, इसी देश के हों या इस देश में आकर बस गये हों। वे लोग ऐसे हों जिन्होंने अपने शारीरिक श्रम के द्वारा राज्य की कुछ सेवा की हो और जिन्होंने मतदाताओं की सूची में अपना नाम लिखवा लिया है।”
इसे आगे स्पष्ट करते हुए वे कहते है – “मेरे... हमारे... सपनों के स्वराज्य में जाति (रेस) या धर्म के भेदों का कोई स्थान नहीं हो सकता। भारत के संविधान में जो सेक्यूलर राज्य की परिकल्पना की गई है वह वास्तव में गांधी के विचारों को ही प्रतिपादित करती है। गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ में 16 अप्रैल 1931 को ही यह स्पष्ट कर दिया था – “कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि भारतीय स्वराज्य तो ज्यादा संख्या वाले समाज का यानी हिंदुओं का ही राज्य होगा। इस मान्यता से ज्यादा बड़ी कोई दूसरी गलती नहीं हो सकती। अगर यह सही सिद्ध हो तो अपने लिए मैं ऐसा कह सकता हूं कि मैं उसे स्वराज्य मानने से इन्कार कर दूंगा और अपनी सारी शक्ति लगाकर उसका विरोध करूंगा। मेरे लिए हिन्द स्वराज्य का अर्थ सब लोगों का राज्य, न्याय का राज्य है।”
भारत में स्वतंत्रता के बाद संसदीय लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है। भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां अनेक जातियों, धर्मों और भाषाओं के बावजूद सबको बराबरी का हक मिला है। जहां स्त्री पुरुषों के बीच कोई असमानता नहीं है बल्कि भारत में महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में शीर्ष पर पहुंची हैं और हर क्षेत्र में वे अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने में सफल रही हैं।
भारतीय लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी सफलता रही है कि यहां संवैधानिक पदों पर हर जाति, धर्म और भाषा के लोगों को बिना किसी लिंगभेद के पदासीन होने के अवसर मिले हैं। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सबको बढ़ने के और अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने के समान अवसर मिले हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी को गांधी जी ने सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महिलाओं के संघर्ष को राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष के साथ जोड़ा। अस्पृश्यता के अभिशाप को दूर करने में महिलाओं के सहयोग पर बल दिया। महिलाओं को घर में रहकर भी जिस तरह से गांधी जी ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा उसने आंदोलन को और सुदृढ़ किया।
गांधी जी महिलाओं के प्रति किसी भी प्रकार के क्रूर व्यवहार के विरोधी थे और महिला अधिकारों के प्रति संवेदनशील थे। वे ऐसे शोषण मुक्त समाज के पक्षधर थे, जहां सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समानता हो। महिला सशक्तिकरण के लिए उनके प्रयास का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि बिना सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के उन्होंने देश की लाखों शिक्षित-अशिक्षित महिलाओं तक अपनी आवाज पहुंचायी और उनमें चेतना जगायी।
‘भारतीय स्त्रियों का पुनरुत्थान’ लेख में गांधी जी ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते हुए लिखा –
अहिंसा की नींव पर रचे गये जीवन की रचना में जितना और जैसा अधिकार पुरुष को अपने भविष्य की रचना का है, उतना और वैसा ही अधिकार स्त्री को भी अपने भविष्य तय करने का है।”
ग्रामीण महिलाओं के बारे में उन्होंने लिखा – “मैं भली भंति जानता हूं कि गांवों में औरतें अपने मर्दों के साथ बराबरी से टक्कर लेती हैं। कुछ मामलों में उनसे बढ़ी-चढ़ी हैं और हुकूमत भी चलाती हैं। लेकिन हमें बाहर से देखने वाला कोई भी तटस्थ आदमी यह कहेगा कि हमारे समूचे समाज में कानून और रूढ़ी की रू से औरतों को जो दर्जा मिला है, उसमें कई खामियां हैं और उन्हें जड़मूल से सुधारने की जरूरत है।”
स्त्रियों के अधिकारों के बारे में गांधी जी के विचार इस प्रकार थे – “स्त्रियों के अधिकारों के सवाल पर मैं किसी तरह का समझौता स्वीकार नहीं कर सकता। मेरी राय में उन पर ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए जो पुरुषों पर न लगाया गया हो। पुत्रों और कन्याओं में किसी तरह का कोई भेद नहीं होना चाहिए। उनके साथ पूरी समानता का व्यवहार होना चाहिए।”
दहेजप्रथा का गांधी जी ने न केवल घोर विरोध किया बल्कि उनका विचार था कि यह प्रथा नष्ट होनी चाहिए। गांधी जी ने दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए जाति-बंधन को तोड़ने पर जोर दिया। उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को उचित ठहराते हुए कहा कि अगर इस पावित्र्य की और हिंदू धर्म की रक्षा करना चाहते हैं, तो इस जबर्दस्ती लादे जाने वाले वैधव्य के विष से हमें मुक्त होना ही होगा। इस सुधार की शुरुआत उन लोगों को करनी चाहिए, जिनके यहां बाल-विधवाएं हों। उन्होंने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि बाल-विधवाओं के इस विवाह को मैं पुनर्विवाह का नाम नहीं देना चाहता, क्योंकि मैं जानता हूं कि उनका विवाह हुआ ही नहीं।
महिला शिक्षा के वे प्रबल समर्थक थे और उन्होंने अपने इस विचार को रेखांकित करते हुए कहा कि मैं स्त्रियों की समुचित शिक्षा का हिमायती हूं, लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि स्त्री दुनिया की प्रगति में अपना योग पुरुष की नकल करके या उसकी प्रतिस्पर्धा करके नहीं दे सकती। गांधी जी का यह स्पष्ट मत रहा है कि स्त्री को पुरुष की पूरक बनना चाहिए।
भारत सरकार ने संविधान का 73वां संशोधन विधेयक पारित कर ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था को लागू कर महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देकर गांधी जी के सपनों को साकार करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाया है। कई राज्यों में तो महिलाओं को 50 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जा चुका है। लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिला आरक्षण उसी दिशा में अगला कदम होगा। राज्यसभा इस विधेयक को पारित कर चुकी है और लोकसभा में भी पारित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इस विधेयक के पारित हो जाने से महिला सशक्तिकरण का एक शानदार अध्याय शुरू होगा।
गांधी जी ने पंचायत राज के बारे में जो सपना देखा था वह साकार हो चुका है। गांधी जी ने ‘मेरे सपनों का भारत’ में पंचायत राज के बारे में जो विचार व्यक्त किये हैं वे आज वास्तविकता के धरातल पर साकार हो चुके है क्योंकि देश में समान तीन-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था लागू हो चुकी है जिसमें हर एक गांव को अपने पांव पर खड़े होने का अवसर मिल रहा है। गांधी जी ने कहा था – “अगर हिंदुस्तान के हर एक गांव में कभी पंचायती राज कायम हुआ, तो मैं अपनी इस तस्वीर की सच्चाई साबित कर सकूंगा, जिसमें सबसे पहला और सबसे आखिरी दोनों बराबर होंगे या यों कहिए कि न तो कोई पहला होगा, न आखिरी।” इस बारे में उनके विचार बहुत स्पष्ट थे। उनका मानना था कि जब पंचायत राज स्थापित हो जायेगा तब लोकमत ऐसे भी अनेक काम कर दिखायेगा, जो हिंसा कभी भी नहीं कर सकती।
गांधी के सपनों का भारत
देवेंद्र उपाध्याय - 2010-10-01 10:29
महात्मा गांधी ने अपने सपनों के भारत में जिस दृष्टि की कल्पना की थी उसमें व्यापकता थी। यही कारण है कि उनके उसी दृष्टिकोण या उन्हीं विचारों को गांधीवाद की संज्ञा दी गई। ग्रामीण विकास की तरफ गांधी जी की दृष्टि हमेशा सजग ही रही। ग्रामीण विकास के लिए जिन बुनियादी चीजों को वे जरूरी समझते थे, उनमें ग्राम स्वराज, पंचायतराज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांवों की सफाई, गांवों का आरोग्य और समग्र ग्राम विकास आदि प्रमुख हैं।