सभी पार्टियों में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव ही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने इस फैसले की खुलकर आलोचना की और कहा कि इसके कारण देश के मुसलमान अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि फैसला लिखते समय न्यायाधीशों ने कानूनी साक्ष्यों को नजरअंदाज किय और आस्था व विश्वास को महत्व दिया। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि सुप्रीम कोर्ट कानून के दायरे में इस विवाद पर कोई फैसला देगी।
मुलायम सिंह यादव को इस फैसले ने फिर से मुसलमानों का समर्थन हासिल करने का मौका दिया है। उनकी राजनीति के मुख्य आधार मुसलमान ही हुआ करते थे, लेकिन पिछले कुछ चुनावों से मुसलमान उनका साथ छोड़ने लगे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने कल्याण सिंह से हाथ मिला लिया था। उसके बाद तो मुसलमानों ने उन्हें और भी ज्यादा संख्या में त्यागा।
यह फैसला मुलायम सिंह यादव को एक मौका दे रहा है कि वह एक बार फिर मुसलमानों को अपनी ओर खींचने में कामयाब हो जाएं। यही कारण है कि उन्होंने मुसलमानों के लिए अपने आंसू बहाने शुरू कर दिए हैं। कुछ महीने पहले वे मुसलमानों से कल्याण सिंह से जुड़ने के लिए माफी भी मांग चुके हैं। गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद जब टूटी थी, तो राज्य में कल्याण सिंह ही मुख्यमंत्री थे।
जहां मुलायम सिंह यादव मुसलमानों के मसीहा की छवि चमकाने में लगे हुए हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी इस फैसले की आड़ मे ंएक बार फिर राज्य की राजनीति के केन्द्र में आने की कोशिश कर रही है। गौरतलब है कि कुछ साल पहले राज्य की सबसे बड़ी राजनैतिक ताकत रही भाजपा अब चौथे नंबर पर पहुंच गई है। भाजपा इस फैसले को अपनी जीत के रूप में पेश कर रही है। उसका कहना है कि अयोध्या मसले पर उसकी राय सही साबित हुई है। वह कह रही है कि उसकी तरह ही अदालत ने भी बाबरी मस्जिद की जगह को राम की जन्मभूमि मान ली है।
अब भाजपा कह रही है कि केन्द्र की सरकार को विवादित बिन्दु पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर देना चाहिए। वह भी 2012 के उत्तर प्रदेश चुनाव में इस फैसले को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाएगी। भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे इस्तेमाल करने की कोशिश करेगी। फिलहाल बिहार में विधानसभा का चुनाव हो रहा है और वह उसमें इसे आजमाएगी।
मुख्यमंत्री मायावती भी इस मसले पर राजनीति करने में लगी हुई है। वे बार बार कह रही हैं कि अयोध्या में यथास्थिति बनाए रखना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है, क्योकि विवादित भूभाग के आसपास की करीब 64 एकड़ जमीन केन्द्र सरकार ने ही अधिगृहित कर रखी है। मायावती ने हार्इ्र कोर्ट के फैसले को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी भी केन्द्र सरकार के पाले में डाल दी है। वह कह रही है कि अदालत के फैसले के अनुसार तीनों पक्षों के बीच बराबर बराबर जमीन के बंटवारे की जिम्मेदारी भी केन्द्र सरकार की ही है।
मायावती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास चिट्ठी लिख लिख कर उनसे अयोध्या मसले पर किसी न किसी प्रकार की मांग करती रही हैं। कुछ दिन पहले वह केन्द्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए सुरखा बलों की संख्या को नाकाफी बता रही थीं और कानून व्यवस्था की किसी भी विफलता पर केन्द्र सरकार को जिम्मा लेने के लिए कह रही थीं। फैसले के बाद राज्य में शांति व्यवस्था बहाल रखने का श्रेय भी मायावती खुद ले रही हैं। यानी अगर कोई गड़बड़ी हो तो उसके लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार और सबकुछ ठीकठाक रहे तो उसका श्रेय मायावती सरकार को।
मायावती मुसलमानों को लगातार संकेत दे रही है कि उनके प्रशासन में अल्पसंख्यक पूरी तरह सुरक्षित हैं। ऐसा करके वे 2012 के होने वाले चुनावों में मुसलमानों का समर्थन पाने की राजनीति कर रही हैं। पिछले लोकसभा चुनावों मे मुसलमानों का रूझान कांग्रेस की ओर था। मायावती उन्हें अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही है।
इस फैसले के बाद सबसे खराब स्थिति काग्रेस की है। उसने हालांकि फैसले का समर्थन किया है और इसके साथ ही यह भी कहा है कि असंतुष्ट पक्ष को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए। इसके अलावा यह विवाद के सभी पक्षों को आपस में बातचीत करने की भी सलाह दे रही है। सच तो यह है कि बाबरी मस्जिद और राममंदिर विवाद को सही तरीके से नहीं हैंडिल कर पाने के कारण इसको भारी राजनैतिक नुकसान उठाना पड़ा है। इसके कारण इसने न केवल मुसलमानों का समर्थन खोया, बल्कि हिंदुओं की अगड़ी जातियों का भी समर्थन गंवा दिया था। अब ये दोनों वर्ग उनकी ओर फिर से वापस आते दिखाई पड़ रहे हैं। वैसी हालत में यह नहीं चाहती कि अयोध्या विवाद में उसके गलत कदम पड़े। इसलिए वह इस मसले पर फूक फूक कर कदम रख रही है।(संवाद)
अयोध्या फैसला और उसके बाद
सभी पार्टियों की नजर अपनी अपनी राजनीति पर
प्रदीप कपूर - 2010-10-07 13:56
लखनऊः राज्य की सभी पार्टियां अपने अपने नजरिए से अयोध्या विवाद पर आए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को देख परख रही हैं। 2012 में विधानसभा के आमचुनाव होने वाले हैं। उन चुनावों के मद्दे नजर सभी पार्टियां इस फैसले को अपने अनुरूप भुनाने की रणनीति बना रही हैं। फैसले के एक एक पैराग्राफ को वे सभी पढ़ने में लगी हुई हैं और यह समझने की कोशिश कर रही हैं कि कौन सा पैराग्राफ उनको सूट करेगा और कौन उसके खिलाफ जाएगा।