आज सभी प्रमुख दल चाटुकारो के दम पर राजनीति चलाने वाले सीटें जीतने के गणित को ढं़ग से समझे हुए है। जाति धर्म के नाम पर कलह बैर पैदा करवा कर वोट बटोरना। पंसदीदा प्रत्याशी का अर्थ किसी मायने में पसंद किसर जा सके चाहे वह दायित्व बोध ना रखता हो। अपराधी हो या गद्दार फर्क नहीं पड़ता। और तो और राज चलाने के लिए बहुमत का जुगाड़ करना खूब किया है और कर रहें हैं।

आजादी के बाद के साठ सालों में कांग्रेस और कांग्रेस समर्थक सरकारों के नेतृत्व ने केन्द्र में बैठ कर बनाई नीतियों का परिणाम था कि आम आदमी वोट से शासक चयन का अर्थ मात्र ब्रेड बटर की व्यवस्था करना वाला मालिक बनाये जाना समझता रहा। आम जुमला था आजादी से अच्छी गुलामी थी। इससे तो अच्छा अग्रेंजों का शासन था। आजादी के अर्थ तक से अनजान आम आदमी को आखिर मतदान का मतलब क्या समझ आता। पहले नेहरू और पुत्री इंदिरा और फिर फिरोज खान के बेटे राजीव ने सत्ता संभाली और अब परोक्ष रूप से इटालीयन मुल की सोनीया संभाल रही है। तब तक के लिये जब तक कि फिरोज खान के पोते और स्टालीन माइनों के नाती जनाब युवराज राहुल सत्तासीन ना हो जाए। इनके शासन का तरीका यह है कि पहले ही निर्णय ले लिये जाते है। संसद में बहस नहीं चर्चा नहीं और कानून पास होते है। लगभग सभी नौकरशाह ने नेहरू-फिरोज खान के वारिसों के साथ लोकतंत्र का मुखैटा लगा जनता और देश को खूब लूटा। सभी नीतियां इसी तर्ज पर बनाई जाति कि बिना वीआईपी के कोई काम ना हो। जनता का काम रूके रहे और पूरी निरंकुशता से राज काज चलाया जाए।

अब धीमे धीमें सब समझ आ रहा है। बिहार का आज का वोटर निर्णय ले रहा है। आसमान के ऊपर वाले की सदियों से आये दिन बाढ़ और सूखे की मार से त्रस्त वो अधमरा हो कर जमीन के ऊपर वालों की खार खा कर अल्प विकास और अव्यवस्था से जुझता बिहारी सारे देश में दो वक्त की रोटी के लिए दर दर की ठोकरें खाता रहा।

आजादी के बाद के पहले 45 साल कांग्रेस फिर 15 साल लालू राज ने बिहारी को देश के बाकि हिस्सों के लिए लल्लू बना डाला। कांग्रेस, राजद, पासवान, मुलायम, मायावती हरेक से छला जाता रहा है। शरद यादव की वैचारिक राजनीति ने धीरे धीरे बिहारी को राजनैतिक गंभीरता से अवगत करा दिया है। बिहार जाग रहा है। देश के साथ आगे आना चाहता है। गुजरात का विकास अब उसके आखों में है। बाम्बे, बंगाल, बंगलौर, पंजाब की चकाचौंध वो पटना में देखना चाहता है। वो समझ रहा है दारू के लिए वोट नहीं देना। अब पहले रोड जरूरी है। वो जान रहा है रोटी उसे खुद कमानी है और विकास उसे सम्मान के साथ रोटी घर में ही देगा। विकास से अछूता और चरमराई व्यवस्था में जीता बिहार को कोई सुख देने में नाकाम रही कांग्रेस सरकार ने गरीब हटाना और मंहगाई बढ़ाना बदस्तूर जारी रखा। फिर एक बार हिम्मत की तो पाँच सालों में ज्यादा कुछ नहीं तो विकास और व्यवस्था की एक लौ बिहार की जनता को दिखने लगी है। यही कारण हे कि दिखता है जनता दल के तीर ने खिले कमल के साथ फिर लक्ष्य भेदना है।