इससे यह भी पता चलता है कि अशिक्षा, गरीबी, भ्रष्टाचार व अन्य खामियों के बावजूद भारत अपने आपको एक राष्ट्र के रूप में देखता है और अनेक गड़बड़ियों के बावजूद यह दुनिया के सामने अपने बेहतर प्रदर्शन से सबको मुग्ध कर सकता है। सच तो यह है कि आयोजकों को भी उद्घाटन समारोह की सफलता की वह उम्मीद नहीं रही होगी, जिस सफलता से उन्होंने 3 सितंबर को जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में उनकी आंखें चार हुईं।

दिल्ली में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों की तुलना बिजिंग में 2008 में हुए ओलंपियाड से करना उचित नहीं होगा। दोनों में कोई तुलना ही नहीं है, लेकिन जिस तरह की गर्मजोशी 3 सितंबर को नेहरु स्टेडियम में देखने को मिली, वह भारत में ही शायद संभव है। भारत ने अरबों रुपए राष्ट्रमंडल खेलों पर खर्च कर डाले। लग रहा था कि वह सारा पैसा पानी में चला जाएगा, लेकिन अंतिम क्षणों में आखिरकार सब कुछ संभल गया।

चीन में 2008 में हुए बिजिंग ओलंपिक खेल और दिल्ली में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों के बीच बहुत अंतर है। चीन में सबकुछ सही तरीके से हुए और वहां का अनुशासन भी देखने लायक था। चीन दुनिया की खेल महाशक्ति बन चुका है। उस ओलंपिक खेलों की पदक तालिका में चीन सबसे ऊपर रहा। उसके खिलाड़ियों ने 50 स्वर्ण पदक जीते और उनके द्वारा जीते गए कुल पदकों की संख्या 100 थी, जबकि भारत अबतक कुल मिलाकर 7 ओलंपिक पदक जीत पाया है। बिजिंग में भारत के किसी खिलाड़ी को पहली बार एक स्वर्ण पदक मिला, हालांकि हॉकी के बेहतर दिनों में भारत कई बार हॉकी का स्वर्ण पदक जीत चुका है। चीन ने बिजिंग में हुए ओलंपिक खेलों के द्वारा यह साबित कर दिखाया कि वे किसी भी मोर्च पर पश्चिमी अमीर देशों की बराबरी कर सकता है, लेकिन भारत ने यह दिखाया कि वह अभी इस मामले में बहुत पीछे हैं।

चीन में भारत जैसी आजादी नहीं है। मानवाघिकारों को लेकर वहां भारत जैसी सजगता भी नहीं है। यही कारण है कि वह अपनी किसी योजना को कड़ाई के साथ अमल में ला सकता है। भ्रष्टाचार के मामले तो वहां भी सामने आते हैं, लेकिन भारत और उसमें एक बड़ा अंतर यह है कि हम काम को समय पर निबटा नहीं पाते, जबकि वहां सबकुछ समय पर हो जाता है।

खेलों में भारत को पदक मिल रहे हैं। कई स्वर्ण पदक भी मिल चुके हैं। आने वाले दिनों में और भी पदक मिलने की संभावना है। खेल भी ठीकठाक ढ़ंग से हो रहा है। लेकिन इसका मतलग यह नहीं है कि खेल समापत होने के बाद हम अपनी पीठ ठोंकते हुए वे सारी चीजें भूल जाएं, जिनसे हमारी दुनिया भी में मजाक उड़ रहा था।

राष्ट्रमंडल खेलों में हजारों करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। उसमें हजारों करोड़ त्पए के घपले भी हुए। जहां सौ रुपए खर्च होने थे, वहां हजारों का खर्च दिखाया गया। देश के खजाने को लूटा गया। खेल समाप्त होने के बाद सरकार द्वारा लोगों को खर्च किए गए एक एक रुपए का हिसाब दिया जाना चाहिए। हिसाब देते समय उन लोगों का नाम भी बताया जाना चाहिए, जो लोग खजाने की लूट में शामिल थे और उन्हें दंडित भी किया जाना चाहिए। (संवाद)