लेकिन राजनीति की अपनी एक अलग खल होती है। इसकी खींचतान इसे अपने हिसाब से दिशा देती है। और यही कारण है कि एक व्यक्तिगत रूप से एक ईमानदार प्रधानमंत्री भी अपनी सरकार में हो रहे भ्रष्टाचार को रोकने में अपने आपको लाचार पाता है। मनमोहन सिंह के साथ यही हो रहा है। व्यक्तिगत रूप से ईमानदार होने के बाद भी वे आज सवालों के घेरे में आ गए हैं और एक प्रधानमंत्री के रूप में उनकी छवि को धक्का लग रहा है।
उनकी सरकार के 16 महीने बीत गए हैं और इतने दिनों में उनकी सरकार अबतक की सबसे भ्रष्ट सरकार के रूप में लोगों के सामने आ रही है। एक के बाद एक घपले सामने आ रहे हैं और सरकार के पास उन पर सफाई देने के लिए भी कुछ नहीं है। और वह सब हो रहा है उस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में जिसकी ईमानदारी पर किसी को संदेह नहीं है। 2006 में जब समर्थक वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस लिया था, तो प्रधानमंत्री ने तब कहा था कि वे अपने आपको मुक्त महसूस कर रहे हैं। वामपंथी समर्थक सरकार की उदारवादी नीतियों में अड़चने डाला करते थे और उसके कारण सरकार को अपने कदम आर आर पीछे करने पड़ते थे। सरकार से उनके समर्थन वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री को लगा था कि वे अब बेझिझक निर्णय ले पाएंगे।
पर वैसा हुआ नहीं। प्रधानमंत्री के अनेक उदारवादी कार्यक्रम ममता बनर्जी के विरोध का शिकार हो गए। कुछ तो करुणानीधि के कारण संभव नहीं हो सके। वाम समर्थन के युग में वेसी अराजकता नहीं दिखती थी, जैसी आज मनमोहन सरकार के अंदर देखी जा सकती है। सरकार के मंत्री आजादी के साथ एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर देते हैं और प्रधानमंत्री कुछ नहीं कर पाते। पहले तो वामपंथी सरकार के सामने सवाल खड़े करते थे। अब तो उस तरह के सवाल कांग्रेस पार्टी के अंदर से ही खुलेआम कर दिए जाते हैं। अन्य घटक दलों के नेता भी कोई पीछे नहीं रहते।
ताजा उदाहरण कॉमनवेल्थ गेम्स से है। कांग्रेस के एक सांसद मणिशंकर अय्यर इस खेल के आयोजित करने को एक दुर्भागयपूर्ण घटना बता रहे हैं। वे आंकड़े देकर बता रहे हैं कि देश की जिस संपत्ति का इस्तेमाल देश के बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए करना चाहिए था, उस संपत्ति को खेल के आयोजन पर पानी की तरह बहा दिया गया। सरकार दावा कर रही है कि खेल का आयोजन सफल रहा है, तो दूसरी ओर श्री अय्यर कह रहे हैं कि इससे देश की छवि विदेशों में खराब हुई है और हम आज इसके कारण मजाक का पात्र बन गए हैं।
मणिशंकर अय्यर की टिप्पणियों को हम एक विक्षुब्ध सांसद की भड़ास कह कर हल्का नहीं कर सकते, क्योंकि कांग्रेस के अंदर इस तरह के असंतोष का कोई इतिहास नहीं रहा हैं। सरकार की बार बार इतनी आलोचना करने वाला कोई कांग्रेसी सांसद अनुशासनहीनता का दंड भुगते बिना नहीं रह सकता। श्री अय्रूा अकेले ऐसे कांग्रेसी नेता नहीं हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी केन्द्र सरकार के मंत्रियों के खिलाफ बोलने मे कभी कंजूसी नहीं दिखाते। गृहमंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ बोलने की उन्होने विशेषज्ञा हासिल कर ली है। इतना ही नहीं, एक मंत्री किसी दूसरे मंत्री के खिलाफ बोलने में भी कोई संकोच नहीं करता। सरकार एक साथ कई स्वरों में बात करती दिखाई पड़ती है।
भ्रष्टाचार के तो सारे रिकार्ड ही टूट रहे हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के बड़े बड़े मामले सामने आ रहे हैं। 35 हजार करोड़ रुपए इन खेलों में खर्च होने का अनुमान है। कुछ लोग तो कहते हैं कि 70 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। खर्च की गई इस रा्िरश का एक बड़ा भाग भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा है। जाहिर है घोटाला हजारों करोड़ रुपए का हुआ है और प्रधानमंत्री ने जांच की पहल भी कर दी है, लेकिन दोषी पकड़े भी जाएंगे, इसे लेकर अभी से संदेह व्यक्त किया जा रहा है। इसका एक कारण मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति है, जिसके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चल रहा है। प्रधानमंत्री ने वैसे व्यक्ति को उस पद पर क्यों नियुक्त किया, यह किसी को अभी तक समझ नहीं आ रहा है।
2 जी स्पेकट्रम घोटाले को भारत का अबतक का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है। इसमें करीब डैढ़ लाख करोड़ रुपए की राशि का चूना केन्द्र सरकार के खजाने को लगा है। प्रधानमंत्री इस मामले मे कोई ऐसी कार्रवाई करते दिखाई नहीं देते, जिससे लगता हो कि इस भ्रष्टाचार की कोई उन्हें फिक्र भी हो।
उसी तरह केन्द्र सरकार के खाद्य मंत्रालय से जुड़े घोटाले पर भी प्रधानमंत्री लाचार नजर आ रहे हैं। वहां हो रहे घोटालों का कीमतों पर असर पड़ रहा है और महंगाई बढ़ाने में उन घोटालों का बड़ा हाथ है। गैस की कीमतों के निर्धारण में भी घोटाला सामने आया है। उसके कारण भी देश के खजाने को नुकसान हो रहा है और महंगाई को पंख लग रहा है और इस घोटाले का लाभ एक निजी कंपनी को मिल रहा है।
प्रधानमंत्री की छवि जिस तेजी से खराब हो रही है, वह निश्चय ही चिता का कारण होना चाहिए। खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से बाहर रहना अच्छी बात है, लेकिन सरकार के भ्रष्टमंत्रियों का नेत्त्व करना भी छवि को नुकसान पहुचाता है। इस छवि को बचाने के लिए प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करना ही होगा और इसके खिलाफ कार्रवाई करनी ही होगी। अन्यथा वे खुद भी सवालों के घेरे में खड़े दिखाई देते रहेंगे। (संवाद)
प्रधानमंत्री खुद आ गए हैं सवालों के घेरे में
भ्रष्टाचार ने धूमिल कर दी है प्रधानमंत्री की छवि
विशेष संवाददाता - 2010-10-18 14:13
नई दिल्लीः पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री के पुरष्कार से नवाजा गया। उनके बड़े से बड़े आलोचक भी उनकी विद्वता का लोहा मानते हैं और उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर सवाल नहीं खड़ा करते। इन्दिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के बाद सबसे ज्यादा समय तक देश का प्रधानमंत्री पद पर रहने का भी उन्होंने रिकार्ड बना लिया है। यही कारण है कि जब 2009 में प्रधानमंत्री के पद पर उनकी दुबारा वापसी हुई, तो राष्ट्र ने उनकी सराहना की। लोगों को लगा कि उनकी पार्टी और गठबंधन को मिली ज्यादा सीटों के बदौलत वे पहले की अपेक्षा और भी बेहतर काम कर पाएंगे।