हालांकि वाम लोकतांत्रिक मोर्चे के नेताओं को पूरा विश्वास है कि इन चुनावों के परिणाम उनके पक्ष में जाएंगे, लेकिन सच यह भी है कि इस बार उसे पहले वाली सफलता नहीं मिलने वाली है।

सफलता नहीं दुहरा पाने के अनेक कारण हैं। इसका एक कारण तो यह है कि 2005 में कांग्रेस काफी कमजोर था। करुणाकरण गुट कांग्रेस से बाहर हो गया था। उन्होंने डेमोक्रेटिक इन्दिरा कांग्रेस का गठन किया था। खुद तो चुनाव लड़ा नहीं, उल्टे वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के उम्मीदवारों के समर्थन की घोषणा कर दी थी। अब करुणाकरण एक बार फिर से कांग्रेस में हैं। इसलिए अब लोकतांत्रिक वाम मोर्चा को मिला वह लाभ समाप्त हो गया है।

इसके अलावा लोवामो के साथ रही दो पार्टियां अब उससे अलग हो गई हैं और वे दोनों कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा का भाग बन गई हैं। पहली पार्टी है इंडिसन नेशनल लीग और दूसरी पार्टी है वीरेन्द्र कुमार का जनता दल गुट। मोर्च के कुछ नेताओं का मानना है कि उनके मोर्चे से बाहर जाने का कोई असर नहीं होगा, लेकिन यह सच नहीं है। कुछ नेता अब यह मान रहे हैं कि उन दोनों को मोर्चा में बनाए रखने की कोशिश की जानी चाहिए थी।

यह भी एक धारणा बन रही है कि इस बार सत्ताधारी मोर्चा को अल्पसंख्यकों का वह समर्थन नहीं मिलेगा, जो उसे 2005 में मिल रहा था। उस समय जमात ए इस्लामी लावामो के साथ था, लेकिन अब वह इसका कड़ा विरोध कर रहा है। अब्दुल नासर मदनी के पीडीपी का समर्थन भी अब सत्तारूढ़ मोर्चे के साथ पहले की तरह नहीं रहा। यदि इंडियन नेशनल लीग को अपने साथ रखने में मोर्चा सफल हो जाता, तो मुसलमानों के एक हिस्से का समर्थन पाने की उम्मीद वह कर सकता था।

इसके अलावा केरल कांग्रेस का जोसफ गुट अब केरल कांग्रेस के मणि गुट के साथ मिल गया है। विलय के पहले वह वाम मोर्चा का घटक था। विलय के बाद वह कांग्रेस के खेमे में चला गया है। इसके कारण केरल कांग्रेस के वोटरों के एक हिस्से से सीपीएम के नेतृत्व वाले मोर्चे को वंचित होना पड़ रहा है।

लेकिन सत्तारूढ़ मोर्चे के नेता कह रहे हैं कि इसके कारण उनकी चुनावी स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उनका मानना है कि केरल कांग्रेस के जोसफ गुट और इंडियन नेशनल लीग के जाने से मतों का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई भी हो जाएगी। उनका कहना है कि ये दोनों दल सांप्रदायिक छवि वाले रहे हैं। उनके मोर्चे से बाहर होने से मोर्चे की सेक्युलर छवि मजबूत हुई है और इसके कारण सेक्युलर मतदाताओं का उसकी तरफ रुझान बढ़ा है।

अभिषेक मनु सिंघवी प्रकरण का लाभ भी सत्तारूढ़ पक्ष को मिल रहा है। कांग्रेस ने लॉटरी घोटाले को एक बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बना रखा था। वह आरोप लगा रही थी कि लाटरी किंग मार्टिन को राज्य सरकार का संरक्षण प्राप्त है। उसके कारण सीपीएम को रक्षात्मक तेवर अपनाना पड़ रहा था। इसी बीच लाटरी किंग मार्टिन के खिलाफ अदालत में चल रहे मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी मार्टिन की पैरवी करते दिखाई पड़ गए। उसके बाद तो सीपीएम ने बाजी ही पलट डाली। लॉटरी किंग मार्टिन के संरक्षण का दोष कांग्रेस के ऊपर ही आ गया और कांग्रेस द्वारा तैयार किया गया मुद्दा उसी के खिलाफ जा रहा है। (संवाद)