सरकार अपनी नवरत्न कंपनियों का विनिवेश धन जुटाने के लिए कर रही है। आज शेयर बाजार मं खुशहाली का माहौल है। बाजार के सूचकांक ऊपर चढ़ रहे हैं। विदेशी निवेशकों की दिलवस्पी भी इधर बाजार में कुछ ज्यादा ही बढ़ी हुई है। अमीर देशों की अर्थव्यवस्था से ज्यादा भरोसा उसे भारत जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाओं में हो रहा है। यही कारण है कि वे अपना ज्यादा पैसा अब इन देशों में लगा रहे हैं।

ऐसे समय में भारत सरकार कंपनियों के विनिवेश कर ज्यादा से ज्यादा धन जुटा सकती है। कोल इंडिया लिमिटेड के शेयरों के आइपीओ का मिली जबर्दस्त सफलता से सरकार सीख ले सकती है। और अपनी कंपनियों के शेयरों की सही कीमत रख राजकोष के लिए धन जुटाने के अपने उद्देश्य का बेहतर ढंग से पूरा कर सकती है। उसे कम कीमतों पर अपनी कंपनियों के शेयरों को बेचने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाना चाहिए।

बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध कोल इंडिया के शेयरों के लिए मिले आवेदन कुल उपलब्ध शेयरो से 15 गुना से भी ज्यादा दर्ज किए गए थें। यह कहना गलत होगा कि इसकी उम्मीद नहीं थी, क्यांेकि कोल इंडिया कोई साधारण कंपनी नहीं है। केन्द्र सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र की नवरत्न कंपनियों में इसका शुमार होता है और यह भारत की ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन और उत्पादन करने वाली कंपनी है। शेयर की कीमत का रेंज 225 रुपए से 245 रुपए रखा गया था। यह इस कंपनी की प्रतिष्ठा को देखते हुए बहुत ही कम कीमत थी। इस आकर्षक कीमत पर ज्यादा से ज्यादा आवेदक आने ही थे।

कोल इंडिया कोयले के भंडार का दुनिया भर में सबसे बड़ा मालिक है। यह देश के लोगों को रोजगार देने वाली सबसे बड़ी कार्पोरेट कंपनी भी है। साढ़े चार लाख लोग इसके कर्मचारी हैं। यह कंपनी भारी मुनाफे में भी चल रही है। इसलिए इस कंपनी के शेयर कौन नहीं खरीदना चाहेगा। लिहाजा देश के निजी निवेशक ही नहीं, बल्कि विदेशों की संस्थागत निवेशक कंपनियों को भी इसकी खरीद के लिए बाजार में आना ही था।

वैसे बाजार में पहले से ही निवेश की बहार है। पिछले 6 महीने मे शेयर सूचकांकों ने 50 फीसदी की बढ़त हासिल कर ली है। शेयर बाजार में बहुत रुपया है। जिस तेजी से बाजार बढ़ रहा है, उसने इसके और भी बढ़ने की उम्मीदें जगा दी हैं। शेयर बाजार में विदेशी पैसे तो हैं, लेकिन देशी पैसा भी कम नहीं है। इसलिए ऐसे माहौल में बाजार को देखते हुए भी यह कहा जा सकता है कि कोल इंडिया के शेयरों की कीमत का रेज कम रखा गया था। यदि दुगना भी रखा जाता, तब भी बाजार के लिए उपलब्ध शेयरों की अपेक्षा बहुत ज्यादा आवेदन आते।

जाहिर है खुद कोल इंडिया और इसके अंडरराइटर्स ने बाजार का सही अनुमान नहीं लगाया और काले सोने को मिट्टी की कीमत में बेचने का फैसला कर डाला। नतीजा सामने है। जितना शेयर कोल इंडिया को बेचना है, उससे 15 गुना ज्यादा शेयर के खरीददार उसके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। सभी को तो शेयर नहीं दिए जा सकते। हां, अब एक शेयर की कीमत 245 रुपए रखी जाएगी और इस कीमत पर जो किस्मत वाले होंगे, उन्हें शेयर मिल जाएंगे।

कोल इंडिया के आइपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफर) को सफल माना जाए या विफल? जो इसके शेयरों के लिए आवेदन की संख्या पर नजर डालेंगे, वे तो यही कहेंगे की यह एक बहुत ही सफल आइपीओ है। कोई कंपनी इस तरह से बाजार में आकर अपने शेयरोे की शुरुआती बिक्री करे और इतना ज्यादा ग्राहक उसके पास आ जाए, तो इससे उस कंपनी की प्रतिष्ठा में चार चांद लग जाता है। लेकिन कोल इंडिया की गिनती तो पहले से ही प्रतिष्ठित नवरत्नों में हो रही थी। इसलिए इसके कारण उसकी प्रतिष्ठा बढ़ने का सवाल कहा पैदा होता? हां, जो यह देखेंगे कि यदि इस कंपनी ने अपने शेयरो के ऑफर की कीमत यदि दुगनी रखती, तो उतने शेयर बेचकर ही वह दुगनी कमाई कर सकती थी। यानी वैसे लोग यह कहेंगे कि कंपनी ने अपने शेयरों की प्राइसिंग गलत तरीके से की और कराई, जिससे उसे वह नहीं मिला जिसकी वह हकदार थी।

कोल इंडिया एक सरकारी कंपनी है। इसमें देश के लोगों का पैसा लगा हुआ है। इसकी संपत्ति राष्ट्रीय संपत्ति है। इस सार्वजनिक संपत्ति को कम कीमत पर निजी हाथों में बेचने की कुछ क्षेत्रों में आलाचना भी की जाएगी। कोई निजी कंपनी आइपीओ इसलिए जारी करती है, ताकि वह बाजार से पैसा उगाहकर उसे अपने विस्तार में लगाए। आइपीओ के बाद उस कंपनी के शेयर स्टॉब बाजार में लिस्टेड भी हो जाते हैं। उसके बाद वह शेयर बाजार का हिस्सा हो जाता है और उसकी हलचलों के अनुसार उसके शेयरों की कमतें घटती और बढ़ती रहती है और उसका मार्केठ कैपिटलाइजेशन भी कम और ज्यादा होता रहता है। आइपीओ के बाद कोल इेडिया भी शेयर बाजार में लिस्टेड हो जाएगी। अब तक यह पूरी तरह सरकारी कंपनी है। निजी हाथों में इसके शेयर जाने के बाद इसका आंशिक तौर पर निजीकरण भी शुरू हो जाएगा। सरकार के मौजूदा फैसले के अनुसार कोल इंडिया का 90 फीसदी शेयर सरकारी हाथ में ही रहेगंा। यानी निजी हाथों में कुछ शेयर जाने के बावजुद यह पुरी तरह सरकारी नियंत्रण में ही रहेगी।

यहां दिलचस्प बात यह है कि एक कंपनी के रूप में कोल इंडिया को अपने शेयर बेचकर अपने विस्तार के लिए बाजार से धन उगाहने की जरूरत नहीं थी, बल्कि सरकार इस आइपीओ के द्वारा अपने लिए धन की उगाही कर रही है। उसने सरकारी कंपनियों का विनिवेश कर अपना राजकोषीय घाटा कम करने का निर्णय किया है। उसे कोल इंडिया ही नहीं, बल्कि कुछ और सरकारी कंपनियों के शेयर बेचने हैं। कोल इंडिया से तो उसने शुरुआत की है। सरकारी शेयरों के लिए लोगों में कैसी ललक है, इसका पता इस आइपीओ से अब उसे हो गया होगा। जाहिर है, इसके बाद अब अन्य कंपनियों के आइपीओ जारी करने में उसका उत्साह बढ़ जाएगा। सवाल उठता है कि कोल इंडिया के आइपीओ से सरकार सबक ले पाएगी? उसके लिए पहला सबक तो शेयरों की कमतों से ही संबंध रखता है। उसके लिए सबक यही होना चाहिए कि सरकारी नवरत्न कंपनियों के शेयर उतने सस्ते नहीं होते जितना सरकार समझती है। (संवाद)