तेलंगना की लड़ाई में गदर एक नई भूमिका में आ गए है। गौरतलब है कि गदर तेलंगना क्षेत्र के बहुत ही लोकप्रिय कवि हैं। वे लोकगीत लिखते हैं और उसे गाते भी है। उनकी प्रसिद्धि एक लोकप्रिय लोकगायक की है। नक्सलवादियों से भी उनकी सहानुभूति रही है। वे अलग तेलंगाना राज्य के लिए भी गीत लिखते और गाते रहे है। अब उन्होेने एक मोर्चा बनाकर तेलंगना राज्य की लड़ाई लड़ने का फैसला किया है। उन्होंने अपने मार्चे का नाम रखा है तेलंगना प्रजा मोर्चा। कुछ लोग कह सकते हैं कि गदर एक चूके हुए कारतूस हैं, लेकिन उनकी लोगों के बीच अपनी एक अपील है और अपने मोर्चे की सहायता से वे तेलंगना के राजनैतिक परिदृश्य को बदल देने की क्षमता रखते हैं। वे दलितों, पिछड़ों, वकीलों और युवाओं को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

सबसे बड़ा खतरा यह है कि इस मोर्चे के बैनर तले माओवादी शोषित लोगों को इकट्ठा करके अपनी लड़ाई को एक नया आयाम दे सकते हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि गदर कोर्इ्र राजनैतिक संगठन नहीं, बल्कि एक राजनैतिक आंदोलन चलाने की बात कर रहे हैं। उनकी उम्र ज्यादा हो गई है, लेकिन फिर भी वे तेलंगना को लेकर काफी उत्साहित हैं। वे पिछले कई सालों से तेलंगना की लड़ाई लड़ रहे हैं। माओवादियों से उनका रिश्ता किसी से छिपा हुआ नहीं है और वे कई बार उनकी ओर से संवाद करते रहे हैं। उनके मोर्चे की आड़ में माओवादियों का एक बार फिर राजनैतिक रूप से सक्रिय होना प्रशासन के लिए चिंता की बात है।

गदर का मानना है कि उनका मोर्चा एक मात्र ऐसा मोर्चा है, जो अलग तेलंगना राज्य के लिए ईमानदारी से प्रयासरत है। टीआरएस में उनका विश्वास नहीं है। पंचायत में होने वाले चुनावों में उनकी लोकप्रियता की परीक्षा हो जाएगी। यदि पंचायत चुनावों में उनके मोर्चे से जुड़े लोग भारी संख्या में जातते हैं, तो माना जाएगा कि उनका आंदोलन सफल हो रहा है।

जहां तक अन्य पार्टियों का सवाल है, तो कांग्रेस की हालत इस मसले पर अच्छी नहीं है। उसे पता नहीं चल पा रहा है कि इस संवेदनशील मसले पर वह कौन सा रुख अपनाए। गृहमंत्री पी चिदंबरम ने मध्यरात्रि को निर्णय लेकर घोषणा कर दी थी कि केन्द्र सरकार अलग तेलंगना राज्य बनाने के लिए कदम उठाएगी। उसके बाद ऐसा तूफान उठा था, जिसकी खुद श्री चिदंगरम ने कल्पना भी नहीं की होगी। उस मसले पर आंध्र प्रदेश के कांग्रेसियो के बीच ही फूट पड़ गई थी। तेलंगना के सांसद और विधायक तो अलग राज्य के पक्ष में थे, लेकिन शेष भाग से आने वाले सांसद और विधायक राज्य के विभाजन के सक्ष्त खिलाफ थे। दुतरफा आंदोलन के भंवर में पूरा राज्य फंस गया था और कांग्रेस अपने सांसदों और विधायको को अपने अनुशासन में रखने में विफल हो रही थी।

वह स्थिति वहां फिर दुबारा पैदा हो सकती हैख् यह कांग्रेस आलाकमान को पता है। आंध्र कांगेस की समस्या यह भी है कि वहां के मुख्यमंत्री रोसैय्या कमजोर है। वहां यह समस्या ही इसीलिए पैदा हुई कि कांग्रेस के मजबूत मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी एक दुर्घटना मे मारे गए। अलग राज्य का आंदोलन भी उसके बाद ही तेज हुआ और उस आंदोलन से श्री रौसय्या सही तरीके से निबट नहीं पाए और केन्द्र सरकार ने आंदोलन के दबाव में आकर अलग राज्य के गठन की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा कर दी। अब तक पूर्व मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन मोहन भी बगावत करने पर उतारू हैं। उनके कारण राज्य में कांग्रेस की दुविधा और भी बढ़ गई है। जमीन पर कांग्रेस की हालत वहां क्या है उसका अंदाज इसीसे लगाया जा सकता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यध की एक उपचुनाव में जमानत तक जब्त हो गई।

श्रीकृष्ण आयोग यदि अलग तेलंगना का मार्ग प्रशस्त करता है ,तो इसकी प्रतिक्रिया में रायलसीमा और तटीय आंध्र में भारी हिंसा होगी। इन दोनों इलाके के लोग राज्य के बंटवारे का विरोध कर रहे हैं। यदि तेलंगना बनती दिखाई पड़ी तो रायलसीमा के लोग अपने लिए एक अलग राज्य की मांग करने लगेंगे। यानी तब आंध्रप्रदेश के तीन पाट होने का खतरा पैदा हो जाएगा। (संवाद)