2006 से ही कांग्रेस पर ओबामा की पार्टी का कब्जा था। 435 सदस्यों वाली कांग्रेस पर उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी की संख्या 255 थी, जबकि प्रतिद्वंद्वी रिपब्लिकन की सदस्य संख्या 178 थी। कांग्रेस में अपने बहुमत के बूते ओबामा अपने ऐतिहासिक सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में सफल हो रहे थे।

दो साल पहले ही ओबामा भारी मतों से राष्ट्रपति का चुनाव जीते थे। लेकिन अब अमेरिका का राजनैतिक परिदृश्य बदल चुका है। इस बदले परिदृश्य में उनके फिर से दुबारा राष्ट्पति के रूप में जीतकर आने की संभावना क्षीण हो गई है। गौरतलब है कि 2012 में राष्ट्रपति का चुनाव होना है। चुनाव अभियान के दौरान रिपब्लिकन ने ओबामा प्रशासन पर चौतरफा विफलता का आरोप लगाया था। उनकी आर्थिक नीतियों की आलोचना की गई थी। मध्य वर्ग की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को मुख्य मुद्दा बनाया गया था। अर्थव्यस्था को पटरी पर लाने और रोजगार अवसरों को पैदा करने में ओबामा प्रशासन की विफलता को खासकर रेखांकित किया गया था।

मतदान के पहले ही ओबामा ने पिछले सप्ताह के अंत में रिपब्लिकन से आग्रह करते हुए कहा था कि मघ्यावधि चुनावों के नतीजे चाहे जो हों, उन्हें प्रशासन के साथ सहयोग करना चाहिए, ताकि अमेरिका के अर्थसंकट का हल निकाला जा सके।

नतीजे अप्रत्याशित नहीं हैं। लोगों को ओबामा की पार्टी की हार साफ दिखाई दे रही थी। इस हार के बाद अमेरिका की सरकार अब विभाजित हो गई है। पहले भी ओबामा लगातार कोशिश करते रहते थे कि विपक्ष के साथ सहमति बनाकर चलें, लेकिन सहमति के उनके सारे प्रस्तावों को अबतक रिपब्लिकन ठुकराते आ रहे थे। आने वाले दिनों मे वे ओबामा की नीतियो से सहमत होने लगेंगे, इसके बारे मे कोई सोच भी नहीं सकता। जाहिर है अब ओबामा को अपनी नीतियों से समझौता करके चलना होगा। बजट घाटे पर नियंत्रण करना अब उनकी पहली प्राथमिकता होगी।

यह सच है कि ओबामा उन सारे कानूनों के खिलाफ अपने वीटो पावर का इस्तेमाल करेेगे, जो उनके स्वास्थ्य सेक्टर के रेगुलेशन और वित्तीय सुधारों के खिलाफ होंगे। हालांकि कहीं कहीं वे तालमेल से भी काम चला सकते हैं और विपक्षी राय को भी कुछ तरजीह देने के लिए बाघ्य हो सकते हैं।

इस हार ने डेमोक्रेटिक पार्टी की सांगठनिक विफलता को उजागर कर दिया है। इससे यह साबित हो गया है कि ओबामा की 2008 में जीत संगठन के बूते नहीं, बल्कि उनके अपने करिश्मे के कारण हुई थी। (संवाद)