हाल में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने अल कायदा को आतंकवाद का सिंडिकेट बताते हुए कहा था कि इसका वैश्विक नेटवर्क व्यापक है तथा अनेक छोटे-छोटे समूहों ने विश्व भर में स्वयं को अलकायदा का अंगभूत घटक घोषित कर दिया है। यह स्वीकारोक्ति और इस प्रकार के अनेक तथ्य स्वयं अमेरिकी आकलन पर प्रश्न खड़ा करते हैं ताथ इससे हम सबके अंतर्मन में भयावह चिंता उतपन्न होना बिल्कुल स्वाभाविक है। 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले के एक महीने बाद से आतंकवाद विरोधी युद्ध नौ वर्ष पूरा कर चुका है, किंतु अभी तक के हालात को देखते हुए कोई यह उम्मीद प्रकट नहीं कर सकता कि इस राक्षस का कभी समूल विनाश हो जाएगा।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता पी. जे. क्राउले ने अल कायदा संबंधी आकलन की जानकारी देते हुए 22 अक्टूबर को कहा कि अल कायदा का मुख्य गुट कमजोर हुआ है। यहां मुख्य गुट शब्द का प्रयोग महत्वपूर्ण है। मुख्य गुट से उनका तात्पर्य केवल अल कायदा से है, न कि उससे जुड़े या स्वयं को उसका अंग मान कर खून और विध्वंस मचाने वाले अन्य जेहादी आतंकवादी समूहों से। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमला करने वाला संगठन अल कायदा है या अन्य कोई, दुनिया के सामने जो कुछ साक्षात है वह है हमला एवं उससे उत्पन्न भय। इसलिए केवल अल कायदा का मुख्य गुट कमजोर हो जाए उसका तब तक महत्व नहीं है, जब तक उसको अपना प्रेरक मानने वाले संगठनों की ताकत कमजोर न हो जाए। हमारे लिए और स्वयं अमेरिका के लिए आतंकवादी समूहों का कमजोर होना महत्वपूर्ण है, न कि केवल अल कायदा का। मान लीजिए, अल कायदा नामक संगठन बिल्कुुल समाप्त हो जाए और उससे प्रेरणा लेकर कार्य करने वाले संगठनों के हमले की ताकत और भौगोलिक विस्तार बढ़ जाए तो अल कायदा के होने और न होने का अर्थ क्या रह जाएगा। जहां तक मुख्य गुट का भी प्रश्न है तो स्वयं अमेरिका मानता है कि तंजानिया, युगांडा और केन्या सहित कई देशों ही नहीं, हाल में अमेरिका पर हमलों या हमलों की साजिश रचने के पीछे अल कायदा का मुख्य गुट ही जिम्मेवार है। इस आकलन के सामने आने के एक सप्ताह के भीतर ही वाशिंगटन के मेट्रो स्टेशन को उड़ाने की साजिश के आरोप में 27 अक्टूबर को एक पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक फारुक अहमद को पकड़ा गया है, जिसके बारे में कहा गया कि वह अल कायदा के मिशन पर था। अगर उस पर लगे आरोप सच है तो इसका अर्थ स्पष्ट है। इसी प्रकार अमेरिका को ही लक्ष्य बनाकर जो जो पार्सल एक इंगलैड एवं दूसरा दुबई में पकड़ा गया। ये दोनों घटनाएं अमेरिका द्वारा आकलन दिए जाने के सप्ताह के अंदर ही घटित हुई।

अमेरिका ने अपने आकलन में यह संदेश देने की कोशिश की कि आतंकवादी संगठन का जहां-जहां अस्तित्व है उन सब देशों के साथ सहयोग और समन्वय स्थापित करके उनके अंत की समन्वित कोशिश हो रही है। यह कहना कुछ हद तक सही है कि समन्वय और सहयोग के कारण जहां भी अल कायदा है वहां कुछ सफलताएं मिलीं हैं। मसलन, इराक में अल कायदा है और वहां कुछ सफलताएं मिलीं हैं। समूचे अरब प्रायद्वीप में अल कायदा की उपस्थिति के तथ्य हैं और अमेरिका उन देशों के साथ मिलकर इसके विनाश की कार्रवाई कर रहा है। यमन को अल कायदा का सबसे प्रमुख गढ़ माना जाता है और वहां की सरकार के साथ मिलकर कार्रवाई चल रही है। रुस जैसे देश के साथ भी अमेरिका ने आतंकवाद विरोधी युद्ध के मुद्दे पर सहयोग स्थापित किया है। हमारे देश के साथ भी है और आतंकवाद के मुख्य केन्द्र पाकिस्तान के साथ भी वह साझेदारी स्थापित कर चुका है। इसके आधार पर विचार करें तो आतंकवाद के विरुद्ध एक सशक्त वैश्विक सहयोग की तस्वीर उभरती है और इससे यह उम्मीद भी पैदा होती है कि सभी देश मिलकर एक न एक दिन इस आतंकवाद के दैत्य का समूल नाश कर ही देंगे।

किंतु जरा तस्वीर के दूसरे पहलू पर नजर दौड़ाइए। क्या कोई यह मान सकता है कि इराक से अल कायदा एवं उसके समर्थक गुटों के खिलाफ अपेक्षित सफलताएं मिलीं हैं? यमन से लेकर सोमालिया, केन्या, युगांडा ....में स्थिति या तो बिगड़ी है या पहले के समान ही खतरनाक हैं। अफगानिस्तान की दशा हमारे सामने है। और पाकिस्तान के बारे में अमेरिका क्या कहता है। अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा आकलन प्रस्तुत करने के तीन दिनों पूर्व ही अफगानिस्तान में तैनात नाटो के एक शीर्ष सैन्य अधिकारी के हवाले से सीएनएन ने एक रिपोर्ट प्रसारित किया। इसमें कहा गया कि अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन और उसके सहायक अयमन अल जवाहिरी पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में हैं और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का उन्हें संरक्षण मिला हुआ है। अगर इस अधिकारी की बात मानी जाए तो ओसामा एवं जवाहिरी न तो गुफा में छिपे हैं, न किसी कठिनाई में हैं। वे स्थानीय लोगों तथा आईएसआई के सहयोग एवं संरक्षण में ऐशो आराम से रह रहे हैं। उसके अनुसार ओसामा को चीनी सीमा के पास पहाड़ी चित्राल इलाके से लेकर अफगानिस्तान के तोरा-बोरा से लगे कुर्रम घाटी में घूमते हुए देखा गया है। इस अधिकारी ने तो इस बात की भी पुष्टि की कि तालिबान का प्रमुख मुल्ला उमर हाल के दिनों में पाकिस्तान के क्वेटा एवं कराची शहर भी गया था। अधिकारी के इन दावों पर अमेरिका चुप्पी बनाए हुए है। संभव है ऐशो आराम जैसे षब्द थोड़े अतिरंजित हों, पर अमेरिका सहित नाटो के सारे देश यह मान रहे हैं कि अल कायदा के दोनों प्रमुख नेताओं तथा मुल्ला उमर को पाकिस्तान में सहयोग एवं संरक्षण प्राप्त है। जेहादी आतंकवाद पर नजर रखने वाले इस बात से कतई असहमत नहीं हांेगे कि ओसामा का सशरीर दिखना ही नहीं, उसका संकेत तक मिलना दुनिया भर के जेहादी आतंकवादी समूहों को हिसंक हमलों के लिए उत्प्रेरित करने के लिए काफी है। इसमें अल कायदा का मुख्य गुट कितना कमजोर हुआ या नहीं हुआ कोई मायने नहीं रखता।

यहीं पर आतंकवाद विरोधी युद्ध में देशों के साथ साझेदारी, सहयोग एवं समन्वय प्रश्नों के घेरे में आ जाता है। पाकिस्तान इस युद्ध में अमेरिका का प्रमुख साझेदार है और यह बात जगजाहिर है कि पाकिस्तान ही वह जगह है जहां से अल कायदा या उससे प्रेरित संगठनों के अंत का आधार बन सकता है। अपने आकलन में क्राउले कहते हैं कि पाकिस्तान के साथ हम काम करते रहेंगे। जरुर करिए, किंतु यह अवश्य साफ करिए कि वह अल कायदा का केन्द्र है और जब तक वहां वह दुर्बल नहीं होता, मुख्य गुट को दुर्बल नहीं माना जा सकता। उल्टे वहां इनके बने रहने से पाकिस्तान, अफगानिस्तान सहित दुनिया भर के आतंकवादी समूह और मजबूत होंगे। हाल ही में अमेरिका एवं पाकिस्तान के बीच रणनीतिक बातचीत संपन्न हुई। इससे आने वाली खबरों की पुष्टि नहीं हो रही है। एक जगह कहा गया कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बातचीत में करीब पचास मिनट की अपनी उपस्थिति के दौरान सेना प्रमुख जनरल अशफाक कयानी सहित नेताओं को दो टूक शब्दों में कहा कि वह अपनी सीमाओं में मौजूद सभी आतंकवादी समूहों पर लगाम कसे। विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के बारे में खबर आई जिसमें उन्होंने कहा है कि आतंकी समूहों से लड़ने में पाक की अनिच्छा को देखते हुए अमेरिका का धैर्य अब जवाब दे रहा है। पता नहीं इन्होंने क्या कहा और पाकिस्तान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों एवं शीर्ष नेताओं ने क्या जवाब दिया, परंतु हम इस प्रकार की बातें कई वर्षो से सुनते आ रहे हैं और स्थिति में मौलिक बदलाव नहीं आया है। साफ है कि अमेरिका भले समय-समय पर आतंकवादी समूहांे के कमजोर होने और युद्ध की सफल्ता की ठोस उम्मीद की तस्वीर पेश करे, सच पहले के समान ही भयावह है। (संवाद)