2005 और 2009 के विधानसभा के चुनावों के अनुभवों के आधार पर दोनों प्रमुख दल अभी से अपनी राजनैतिक पासे फेंक रहे हैं। गौरतलब है कि इन दोनों चुनावों के बाद वहां कांग्रेस की सरकार बनी। 2005 के चुनाव के पहले वहां ओमप्रकाश चौटाला के इंडियन नेशनल लोकदल की सरकार थी। चुनाव में चौटाला के दल का सफाया हो गया था। उसे मात्र 9 सीटें ही हासिल हुई थीं और विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल की हैसियत पाने से भी वह वंचित रह गया था।

सत्ता में आने के बाद भूपेन्दर सिंह हुड्डा ने अपने जाट समर्थकों को अपने साथ जोड़ कर रखने की बहुत कोशिश की थी। चौटाला समर्थक जाटों को भी लुभाने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। जाट खेतिहर समुदाय है। उनकी सरकार ने खेतिहर किसानों के लिए बहुत कुछ किया। सरकार का खजाना उनके लिए खोल दिया गया था।

अपने कामों के आधार पर श्री हुड्डा एक बार फिर हरियाणा में भारी सफलता की उम्मीद कर रहे थे। उन्हें लग रहा था कि चौटाला की पार्टी का सूफड़ा 2005 की तरह 2009 में एक बार फिर साफ हो जाएगा। लेकिन वैसा हुआ नहीं। चौटाला की पार्टी को 31 सीटें मिल गईं, जबकि हुड्डा की कांग्रेस को मात्र 40 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। यानी कांग्रेस को साधारण बहुमत तक हासिल नहीं हो सका था।

यह दूसरी बात है कि 7 निर्दलीयों की सहायता से श्री हुड्डी ने अपनी सरकार का गठन कर लिया और उसके बाद भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस के विधायकों का विलय अपनी पार्टी में करवाकर कांग्रेस को साधारण बहुमत की हद तक भी पहुचा दिया, लेकिन चुनाव में बहुमत हासिल न करने का मलाल तो उन्हें रहा ही।

दूसरी ओर ओम प्रकाश चौटाला पांच साल से सत्ता से बाहर रहने के बाद भी दुबारा सत्ता में नहीं आ सके, हालांकि विधानसभा में पार्टी की बढ़ी ताकत से उन्हें खुशी अवश्य हुई। उनका दल मुख्य रूप से जाटों के समर्थन पर आधारित रहा है। और श्री हुड्डा उसी आधार को उनसे खींचने में लगे हुए हैं। जाहिर है अब श्री चौटाला अपने आधार को और भी विस्तार प्रदान करने में लगे हुए हैं। इसी क्रम में उन्होंने आरक्षण पर अपना मत बदल दिया है। वे अब आरक्षण का आघार जाति को बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि इसका आघार आर्थिक होना चाहिए।

दूसरी तरफ कांग्रेस जाटों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए कोई भी कसर नहीं उठा रही है। राज्य सरकार ने जमीन अधिग्रहण की दर को दुगना कर दिया है। हालांकि श्री चौटाला इस दर को भी नाकाफी बता रहे हैं। उनका कहना है कि यह दर दुगनी होने के बावजूद बाजार दर से कम है। लेकिन उनकी यह बात लोगों को नहीं पच रही है। इसका कारण यह है कि उनकी सरकार के कार्यकाल में जमीन की अधिग्रहण दर बहुत ही कम थी और इसके कारण उच्च न्यायालय ने अनेक बार सरकार के खिलाफ आदेश जारी किए थे।

पिछले चुनावों में कांग्रेस ने शहरी मतदाताओं और गैर जाट समुदायों के एक वर्ग का समर्थन खो दिया था। वे भजनलाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ चले गए थे। अब कांग्रेस उस आधार को फिर से वापस पाने की कोशिश कर रही है और उसमें सफल भी हो रही है। शहरी निकायों के चुनावों मे उसकी जीत इसका संकेत दे रहा है।

इसका कारण यह है कि भजनलाल की पार्टी राजनैतिक रूप से सक्रिय नहीं हैं। खुद भजनलाल अब पहले की तरह राजनैतिक रूप से सक्रिय नहीं रहे और उनके अलावा कोई और नेता उनकी पार्टी को लोगों के बीच प्रभावी बने में सक्षम नहीं हैं। इसका सीधा लाभ कांग्रेस को लिए रहा है। आरक्षण पर अपना रुख बदलकर श्री चौटाला उस आघार को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं। (संवाद)