श्री कलमाड़ी को उस पद से हटाया जाना अपने आपमें गलत नही है। भ्रष्टाचार के छीेटे उनके दामन पर पड़े हैं, लेकिन घोटाला सिर्फ खेलों के आयोजन में ही नहीं हुआ है। खेलों के आयोजन पर 16 अरब रुपए खर्च हुए हैं। यह खर्च खेलों के नाम पर हुए खर्च का दो से ढाई प्रतिशत ही है। इसके अलावा कम से कम 700 अरब रुपए भी इन खेलों की तैयारी पर खर्च किए गए है। और ये खर्च कलमाड़ी ने नहीं, बल्कि अन्य लोगों ने किए हैं। कलमाड़ी को तो कांग्रेस के संसदीय सचिव के पद से हटा दिया गया है, लेकिन अन्य लोग अपने पदों पर बने हुए हैं।

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम भी भ्रष्टाचार के मामले में उछलकर सामने आया है। एक अनुमान के अनुसार सबसे ज्यादा खर्च खेल की तैयारियों के नाम पर दिल्ली सरकार ने ही किया है। दिल्ली सरकार ने यह खर्च दिल्ली के लोगों से उगाहे गए राजस्व और केन्द्र सरकार द्वारा मिली वित्तीय सहायता के बल पर किया है।

उस खर्च में दिल्ली सरकार के अनेक विभाग शामिल रहे हैं। उनमें कुछ विधायक तो सीधे शीला दीक्षित के हाथों में ही हैं और जो उनके हाथों में सीधे नहीं हैं, वहां भी उन्हीं का सिक्का चलता है। अब जांच एजेंसियां उनके विभागों द्वारा किए गए खर्च की जांच रही हैं, लेकिन वे अपने पद से नहीं हटाई गई हैं। इसके कारण उनकी सरकार के खिला1 चल रही जांच की निष्प्पाक्षता पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं।

शीला दीक्षित की सरकार के खिलाफ बीआरटी कारीडोर से लेकर डीटीसी बस खरीद मामले तक में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। गौरतलब है कि इन मदों में खर्च राष्ट्रमंडल खेलों का हवाला देते हुए ही किया गया था। कलमाड़ी की आयोजन समिति में हुए कथित घोटाले से कई गुना बड़ा घोटाला तो दिल्ली सरकार द्वारा बसों की हुई खरीद में ही किए जाने के आरोप लगे हैं, लेकिन शीला दीक्षि तो दिल्ली की मुख्यमंत्री के पद से अब तक हटाने की जरूरत नहीं समझी गई है।

आखिर घोटाले की जांच के समय किसी का इस्तीफा क्यों लिया जाता है अथवा किसी को उसके पद से क्यों हटाया जाता है? इसका मुख्य कारण यह है कि आरोपी के अपने पद पर बने रहने से वह जांच को प्रभावित कर सकता है। श्री कलमाड़ी के कांग्रेस के संसदीय सचिव पद पर बने रहने से उनके खिलाफ हो रही जांच प्रभावित नहीं हो सकते थे, क्योंकि उनकी आयोजन समिति में भ्रष्टाचार का कारण उनका कांग्रेस के संसदीय सचिव के पद पर होना नहीं था, बल्कि एक खेल संगठन के पद पर होना था। और वे उस संगठन के पद पर अभी भी बने हुए हैं।

जांच एजेंसियों ने जांच के दौरान जो खबरें मीडिया को लीक की हैख् उससे भी यही पता चलता है कि उसका जोर खेल आयोजन समिति, जिसके अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी हैं, उसके निर्णयों की जांच पर ज्यादा केन्द्रित हो रहा है। अन्य जगहों पर हुए भारी पैमाने पर भ्रष्टाचार की जांच एजेंसियां भी उपेक्षा कर रही हैं। भ्रष्टाचार के मुख्य खलनायक सरकारी तंत्र पर काबिज लोग हैं, लेकिन छापे भ्रष्टाचार में शामिल निजी ठेकेदारों तक ही सीमित हैं। इसके कारण भी जांच की दिशा और दशा को लेकर तरह तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। (संवाद)