हाल के विघान सभा चुनाव पर आये सर्वेक्षणों को यकीनी माने तो यह लगभग सच है कि मूल रूप से मुसलमानों ने वंशवाली कांग्रेस और राजद को वोट दिया क्योंकि कई कारणों से जिनमें मुस्लिम तुष्टीकरण के अलावा हिन्दू विरोधी भाषणों से वे खुश किये जाते रहे। यह एक खतरनाक खेल है जिसे अधिसंख्य जनता ने नकार दिया।

सर्वेक्षण को हालांकि पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता क्योंकि अनेक मुस्लिम मतदाताओं नें भी विकास के पक्ष में वोट डालने की बातें कही हैं।

ऐसा लगता है कि बिहार के चुनाव के नतीजों ने विकास के वास्ते बदलाव का बिगुल बजा दिया है।

लालू प्रसाद यादव को वंशवादी कांग्रेस के विरूद्ध सता में लाने के बाद जब जब जनता ने देखा कि लालू भी परिवार तंत्र का राज करने लगे हैं तो कांग्रेस के साथ वह भी आज हाशिये पर चले गये।

किसी तंत्र के प्रशासन सफलता जनता के स्वीकारने पर है। यही सच है। फिर नेताओं की बिसात क्या है। जनता के हित में काम करने के लिए अगर चुना है तो उसे जिम्मेदारी से करना होगा। वर्ना अंजाम के कई उदाहरणों से दुनिया के इतिहास भरे है।

नीतिश की सरकार को बहुमत मिल गया है और वह अब ज्याद बेहतर तरीके से प्रशासनिक जिम्मेदारियां बिना कोई बड़े राजनीतिक दबाव के निभा सकते हैं। उन्हें जनता की भावनाओं का ख्याल रखते हुए बिहार को एक नयी ऊंचाई तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। उन्हें जातिवाद, साम्प्रदायिकता और तुष्टीकरण से ऊपर उठकर काम करने का मिसाल कायम करना होगा।