सबसे मजेदार बात तो यह है कि 2 जी स्पेक्ट्रम के संचार घोटाले के केन्द्र में डीएमके के ए राजा दिखाई पड़ रहे हैं और खुद उनकी अपनी पार्टी डीएमके भी इसकी संयुक्त संसदीय समिति से जांच करवाए जाने के खिलाफ नहीं है, फिर भी कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है।
एक तरफ केन्द्र सरकार घोटालों की संसदीय जांच करने से कतरा रही है और इसके लिए संसद के बार बार स्थगन को भी स्वीकार कर रही है और दूसरी ओर उसने तेजी दिखाते हुए रतन टाटा द्वारा दायर सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका के बाद राडिया टेप की लीक के मामले की जांच के आदेश भी जारी कर दिए। सरकार ने कितनी तेजी दिखाई है इसका पता इसीसे चलता है कि जिस दिन रतन टाटा ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर की उसी दिन केन्द्र सरकार ने ये जांच जारी कर दिए। यानी टाटा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह केन्द्र सरकार को आदेश दे कि उनसे संबंधित टेप की लीक की जांच हो। कोर्ट में अभी सुनवाई भी नहीं हुई। कोर्ट ने इससे संबंधित कोई आदेश भी केन्द्र सरकार को नहीं दिए अथवा इस पर उस समय तक केन्द्र सरकार को किसी तरह का नोटिस भी नहीं जारी किया गया था, फिर भी केन्द्र सरकार ने अपनी तरफ से ही उन टेपों की लीक की जांच के आदेश दे दिए।
संसदीय जांच करवाने से कतराने और टेप लीक की जांच करवाने में तेजी दिखाने के केन्द्र सरकार के इस निर्णय का क्या अर्थ लगाया जाए? इससे उसकी प्राथमिकताओं क बारे में क्या संदेश जाता है? एक तरफ एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए के सरकारी राजस्व का नुकसान है, तो दूसरी ओर नाडिया टेप के लीक होने से इस धन के नुकसान के लिए जिम्मेदार लोगों की छवि। जाहिर है सरकार को सरकारी पैसे के नुकसान की उतनी चिंता नहीं है, जितनी चिता कुछ लोगों की सार्वजनिक छवि को लेकर है, जो टेप के लीक होने से परेशान हो रहे हैं।
आखिर राडिया टेप है क्या? ये नीरा राडिया कौन हैं? नीरा राडिया भारतीय मूल की एक ब्रिटिश नागरिक हैं, जो पिछले 15 सालों से भारत में रहकर टॉप स्तर की पीआरओ का काम कर रही हैं। अन्य लोगों के अलावा वे टाटा और मुकेश अंबानी की कंपनियों के लिए भी काम करती रही हैं। सिंगापुर एयरलाइंस के लिए भी उन्होंने काम किया था और टाटा व सिंगाुपर एयरलाइंस के संयुक्त उपक्रम के हाथों एअर इंडिया की बिक्री के विफल प्रयासों में भी वे शामिल थीं। कभी पूर्व नागर विमानन मंत्री अनंत कुमार की वह बहुत करीबी थीं। उनसे करीबी का लाभ उठाकर वह अटलबिहारी वाजपेयी के भी संपर्क में आ गई थीं। बाद में बनी मनमोहन सिंह सरकार के अंदर भी उनकी पैठ हो गई थी।
आयकर विभाग के अधिकारियों ने गृहमंत्रालय से अनुरोध कर नीरा राडिया के फोन का टेप करवाना प्रारंभ करवा दिया था। आयकर विभाग के अधिकारी आयकर चोरों को पकड़ने के लिए इस तरह का कार्रवाई करते करवाते रहते हैं। राडिया के फोन टेप किए जाने कारण ही यह पता चला कि उन्होंने 2 जी स्पेक्टम की बिक्री में किस तरह की भूमिका निभाई थी। इसी से यह भी पता चला कि इस घोटाले में वे किसका लाभ करवा रही थीं और कौन लोग उनकी सहायता कर रहे थे। ये टेप केन्द्रीय गृहमंत्रालय के अधिकारियों के अलावा, आयकर विभाग, सीबीआई और आईबी के पास भी उपलब्ध थै। उनमें से कहीं से ये टेप लीक होने लगे। लीक से पता चला कि नीरा राडिया की कोशिश के कारण ए राजा को फिर से संचार मंत्रालय मिला। उसी से यह भी पता चला कि पत्रकार बरखा द़त्त और विजय सिंधवी भी 2 जी स्पेक्ट्रम के घोटाले के काले कारनामे में उनके साथ थे। उन्हीे टेपो में रतन टाटा के साथ उनकी बातचीत भी शामिल है। और भी अनेक लोगों से उनकी हुई बातचीत उनके टेपों में शामिल है।
टेपों को सार्वजनिक किए जाने का मामला केन्द्र सरकार को भ्रष्टाचार और घोटालोे से भी बड़ा नजर आ रहा है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? केन्द्र सरकार संसदीय समिति से इन घोटालों की जांच करवाने से कतरा रही हैं और कह रही हैं कि अन्य एजेंसियों की जांच जारी है। लेकिन जो एजेंसियां जांच कर रही हैं उनके अधिकारियों के खिलाफ ही लीक की जांच करने का फैसला कर केन्द्र सरकार जांच के प्रति अपनी कौन सी प्रतिबद्धता दिखा रही है?
जांच एजेंसियों द्वारा लीक की यह कोई पहली घटना नहीं हैं। बहुत बार तो जांच कार्य को आगे बढ़ाने के लिए जांच एजेंसियों को कुछ सूचनाएं जानबूझकर लीक करनी पड़ती है। कभी कभी एजेंसियां आधी अधूरी सूचनाओं को भी लीक करती हैं, ताकि अपराधी गुमराह होकर कोई और गलती कर दे और कानून के सिकंजे में आ जाए। बड़ी बड़ी जांच एजेंसियों से लेकर थाना तक में जांच कार्य में लगे लोग इस तरह की लीक का इस्तेमाल अपनी जांच कार्य को पूरा करने अथवा अपराधी तक पहुंचने में करते हैं। इसलिए जांच एजेंसियों द्वारा सूचनाएं लीक करना एक पुरानी परंपरा है और इसमें अपने आपमें कुछ बुरा भी नहीं है। इसलिए इस लीक के मामले को इतना तवज्जों देने का मतलब सिर्फ यही हो सकता है कि केन्द्र सरकार घोटाले में शामिल लोगों की निजी प्रतिष्ठा को लेकर ज्यादा सतर्क है।
केन्द्र सरकार ने लीक की जांच के जो आदेश दिए हैं उनका तत्काल असर घोटाले की जांच मं लगे अधिकारियों में हौसलों पर पड़ेगा। उन्हें लगेगा कि जिन लोगों के खिलाफ वे जांच कर रहे हैंख् वे बहुत ही ताकतवर हैं और सरकार उनकी प्रतिष्ठा को लेकर चिंतित भी है। जाहिर है उसके बाद वे उन पर हाथ डालने में हिचकेंगे। इस तरह लीक की जांच का आदेश देकर केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार की जांच कार्य को ही कमजोर करने का काम कर दिया है।
लीक जांच का आदेश देकर केन्द्र सरकार ने एक तरह से संसदीय जांच की मांग को वाजिब ठहरा दिया है। विपक्ष यही तो कह रहा है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ऐसे ताकतवर लोग शामिल हैं, जिन तक सीबीआई के अधिकारियों के हाथ ही नहीं पहुंच सकते। वे सीबीआई को अब एक निष्प्पक्ष एजेंसी भी नहीं मानते, क्योंकि यह जांच एजेंसियो उसी के इशारे पर नाचती दिखाई पड़ती है, केन्द्र में जिसकी सरकार होती है। जाहिर है भ्रष्टाचार में कथित रूप से शामिल कुछ लोगांे की चिंताओं को अपनी चिता बनाकर केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार के मामलों की संसदीय जांच को और भी ज्रूरी बना दिया है। (संवाद)
भारत
राडिया टेप लीक मामला
आखिर सरकार की प्राथमिकता क्या है?
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-11-29 17:05
पूरा विपक्ष केन्द्र सरकार से 2 जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार की संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग कर रहा है। यूपीए के तीन घटक- डीएमके, एनसीपी और तृणमूल कांग्रेस, भी इस जांच के खिलाफ नहीं है। इसके बावजूद केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार के इन मामलों की सीबीआई जांच के लिए तैयार नहीं है। इसका नजीता संसद की कार्यवाहियों के लगातार स्थगन के रूप में सामने आ रहा है।