फार्मूले का पहला हिस्सा चन्द्रप्पन का वह प्रस्ताव है जिसके तहत कहा गया है कि फ्रंट को उन दलों को फिर से वापस लाने का प्रयास करना चाहिए, जो विराधी फ्रंट में शामिल हो गए हैं। सीपीआई के प्रदेश सचिव का मानना है कि स्थानीय निकायो के पिछले चुनावों में उनके फ्रंट की हार का कारण उन घटकों का पलायन था। 2005 के स्थानीय निकाय चुनाव में उनके फ्रंट को 49 फीसदी मत मिले थे, जो 2010 के चुनाव में घटकर 42 फीसदी हो गए। इसके कारण भारी पराजय का सामना करना पड़ा।
लेकिन सीपीएम के प्रदेश सचिव पी विजयन सीपीआई के इस आकलन को स्वीकार नहीं करते। उनका कहना है कि उनके मोर्चे का अपना आधार मजबूत बना हुआ है। वे कहते हैं कि 2009 के लोकसभा चुनाव में उनके फ्रंट को 41 फीसदी मत मिले थे। कुछ घटकों के फंट छोड़ने के बाद मत प्रतिशत घटकर 40 से भी नीचे चला जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, बल्कि मत प्रतिशत बढ़कर 42 फीसदी हो गया।
सीपीआई का मानना है कि यदि हम मान भी लें कि फ्रंट का अपना जनाधार अपनी जगह पर कायम है, तो फिर भी यह मानना पड़ेगा कि हमारें 40 प्रतिशत के जनाधार से हमें जीत हासिल नहीं होगी। इसलिए इसे और भी बढ़ाने की जरूरत है और इसके लिए बाहर गए घटकों को फिर से वापस लाने की कोशिश करनी चाहिए।
पिछले 5 सालों के दौरान एलडीएफ के तीन घटक उससे बाहर हुए हैं और वे विपक्षी यूडीएफ का हिस्सा बन गया हैं। उसके कारण यूडीएफ का मत प्रतिशत साढ़े तीन फीसदी ज्यादा हो गया है। उन तीन घटकों में एक घटक तो एम पी वीरेन्द्र कुमार की पार्टी है। दूसरी घटक इंडियन नेशनल लीग है और तीसरी घटक करुणाकरन की वह पार्टी थी, जिसका अब कांग्रेस में विलय हो गया है। करुणाकरन के बेटे मुरलीघरन उस पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे। अभी भी कांग्रेस के अंदर मुरली का एक गुट बना हुआ है, जो पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। सीपीआई इन्हीं तीनों घटको को फिर से लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ जोड़ना चाहती है।
सीपीआई सचिव का फार्मूला विजयन के खिलाफ लवलीन भ्रष्टाचार के मामले की न्यायायिक जांच की मांग भी करता है। सचिव का मानना है कि लवलीन भ्रष्टाचार के कारण सीपीएम के प्रदेश सचिव विजयन की प्रतिष्ठा को आघात लगा है और उसके कारण फ्रंट को नुकसान होता है। इसलिए उसकी न्यायिक जांच करवाकर लोगांे के संदेह को दूर कर दिया जाना चाहिए। इस पर माकपा के प्रदेश सचिव की चुप्पी को उनकी मौन नाराजगी का इजहार समझा जा रहा है।
चन्द्रप्पन का यह कहना कि एलडीएफ के सभी घटक बराबर हैं और उनमें से किसी को भी किसी से छोटा नहीं समझा जाना चाहिए, विजयन को नागवार गुजरा है। सीपीएम अपने को फ्रंट का नेता समझती है, क्योंकि सबसे ज्यादा विधायक उसी के जीत कर आते हैं और सरकार का नेतृत्व भी वही करती है। वह अपने को बड़ा भाई मानने के रवैये से बाज आने को कतई तैयार नहीं है। (संवाद)
एलडीएफ को मजबूत करने का सीपीआई फार्मूला
क्या सीपीएम इसे स्वीकार करेगी?
पी श्रीकुमारन - 2010-12-06 10:33
तिरुअनंतपुरमः सीपीआई के नवनियुक्त प्रदेश सचिव सी के चन्दरप्पन के राज्य के लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट को मजबूत करने के लिए एक नया फार्मूला पेश किया है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या फ्रंट की सबसे बड़ी पार्टी सीपीएम उस फार्मूले को स्वीकार करेगी? उसकी शुरुआती प्रतिक्रिया से तो यही लगता है कि सीपीआई का फार्मूला सीपीएम को रास नहीं आ रहा है।