प्रदेशों में शेख अब्दुला से लेकर लालू यादव तक ने अपने सुपुत्रों को राजनीति में खपाने और सत्ता के नजदीक उन्हें पहुंचाने का रास्ता खोजते हुए नज़र आते हैं क्योंकि राजा महाराजाओं वाली परम्परा को अब नेताओं ने अपना लिया है। भाजपा में भी यह बीमारी धीरे-धीरे घर कर ली है। हिमाचल इसका प्रतीक बनकर उभर रहा है।
पं0 मोतीलाल नेहरू से लेकर सोनिया गांधी तक एक विचारधारा के प्रतीक दिखाई दे रहे है। इससे पहले जवाहरलाल नेहरू, श्रीमति इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी के पश्चात प्रियंका और राहुल गांधी के बीच राजनीतिक आंकलन होना बहुत जरूरी है। बिहार और अन्य राज्यों में कांग्रेस की स्थिति यदि मजबूत करनी है तो राहुल गांधी के साथ ही साथ प्रियंका का भी राजनीतिक ग्राफ दे लेना कांग्रेस की डूबती नैया को उत्तर प्रदेश में सबल अवश्य मिल जाएगा।
कांग्रेस के खजाने से लुटने वाला पैसा उसकी पब्लिसिटी पर खर्च हो रहा है लेकिन आम आदमी की बात केवल कागजों तक ही सीमित रह जाती है क्योंकि केन्द्र में बैठे कांग्रेस के मन्त्रियों के बीच तालमेल कम ही हो पा रहा है। कांग्रेस की चिन्ता इस बात की है कि किस तरह से वे अपनी विरासत को कायम रख सके राहुल गांधी औा प्रियंका गांधी का कांग्रेस में किस तरह से इस्तेमाल को सके और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी विरासत को पुनः कायम रख सके और उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार को उखाड़कर कांग्रेस की सरकार कायम कर सके। कई काग्रेसियों को प्रियंका गांधी में स्व0 इन्दिरा गांधी की छवि नज़र आती है और जब वे कांग्रेस के लिए प्रचार करती हैं तो सोनिया गांधी के लिए भी यह आसान हो जाता है कि वे अपनी चुनावी मीटिंग दक्षिण भारत में अधिक से अधिक कर सकें। उत्तर भारत में राहुल और प्रियंका का दबदबा होगा ही। इन्दिरा गांधी और श्री राजीव गांधी की ्यहादत ने कांग्रेस को ना केवल राज्यों में बल्कि केन्द्र में भी सरकार बनावाने में मदद की। कांग्रेस भाजपा और एनडीए की जल्दबाजी और उसके बाद श्री अटलबिहारी वाजपेयी को पदाक्षेप में भेजने की वजह से पुनः सरकार बनाने में सफल हुई।
कंग्रेस को पुनः केन्द्र तक सीमित रखने की एनडीए की नीति इस बार कामयाब रही और राज्यों में पुनः भाजपा एवं एनडीए की सरकारें कायम हो उसकी यह नीति कायम हो रही है। कांग्रेस एवं यूपीए और भाजपा एवं एनडीए की छवि में ये दोनों ही पार्टियां उलझ कर रह गई है। राहुल गांधी के बयान और कांग्रेस फूट डालो राज करो वाली नीति ने अन्य दलों को रू-ब-रू होने के लिए मजबूर कर दिया है। बाबरी मस्जिद और कांग्रेस का बहुत पुराना नाता रहा हैे लेकिन राम मन्दिर की राजनीति अब कांग्रेस को ही उत्तर प्रदे्य विजयश्री दिला सकती है। भाजपा और कांग्रेस एवं श्रेत्रीय दलों के बीच इस तरह का यु़द्ध छिड़ा हुआ है उससे तो दलीय राजनीति ही मतदाताओं पर हावी ही रहेगी। श्रीमति सोनिया गांधी ने इस अधिवे्यन में सभी से आग्रह किया की कांग्रेस नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू किया जाए और खास तौर पर केन्द्र और राज्य सरकारों में बैठे कांग्रेस के मऩ्ित्रयों को ताकीद की कि वे जब भी जनता के बीच में जाएं तो जरूर ही वहां के कांग्रेस के नेताओं से जरूर मिले और उनसे मिलकर वहां की कांग्रेस की नीतियों के अनुरूप कार्यवाही करें। (कलानेत्र परिक्रमा)
भारत - कंग्रेस के 125 वर्ष
कंग्रेस अधिवेशन में राजनीति और विरासत पर जोर
विजयकुमार मधु - 2010-12-20 06:27
नयी दिल्ली: विरासत की राजनीति में ताजपोशी का ही जिक्र होना इस महाधिवेशन की आम बात बन गई है। प्रदेश चाहे कोई भी हो सभी जगह पिता के पश्चात पुत्र को राजनीतिक विरासत का द्योतक माना जाना एक तरह की परम्परा ही दिखाई दे रही है।