बिहार चुनाव में अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए कांग्रेस ने वहां पूरा जोर लगा दिया था। राहुल गांधी ने उस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था। अपने खास आदमी मुकुल वासनिक को उन्होंने चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के कुछ पहले बिहार का प्रभारी बना दिया था। रिकार्ड संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी बना दिए गए और कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष भी एक मुसलमान को ही बना दिया गया। राहुल गांधी खुद प्रचार का नेतृत्व कर रहे थे। चुनावी विज्ञापनों पर कांग्रेस ने सबसे ज्यादा खर्च किए।

इतना सब करने के बाद भी कांग्रेस को मात्र 4 सीटें ही मिलीं थी। बिहार की हार के बहुत दिनों के बाद राहुल गांधी ने यह कहकर उस पर चुप्पी तोड़ी कि वे चुनाव नतीजों से निराश नहीं हैं। सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस को वहां शून्य से शुरुआत करनी होगी। दोनों नेता बिहार के नतीजों पर अपने अपने तरीके से बोलकर चुप हो गए। लेकिन महाधिवेशन के दौरान बिहार ने उनके सामने कुछ सवाल खड़े कर दिए, जिनकी उन्हें उम्मीद भी नहीं रही होगी।

राहुल गांधी भले ही बिहार के नतीजों से निराश नहीं रहे हों, लेकिन बिहार के कांग्रेसी ने तो महाधिवेशन में आकर अपनी निराशा और हताशा का इजहार कर ही दिया। सोनिया गांधी ने भले ही कहा हो कि बिहार में पार्टी को शून्य से शुरू करना होगा, लेकिन बिहार के कांग्रेसी ने उन्हें महाधिवेशन में इस बात की याद दिला दी कि वहां कांग्रेस शून्य नहीं हैं। महाधिवेशन के पहले दिन तो उन्होंने मुकुल वासनिक के भाषण के दौरान ही हंगामा खड़ा कर दिया और टिकट वितरण में उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग ही उठा दी। विपक्ष द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ लगाए जा रहे आरोपों के बीच अपनी ही पार्टी के लोगों द्वारा अपनी सरकार के एक मंत्री के भ्रष्टाचार और वह भी पार्टी के लिए किए गए काम में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठना निश्चय ही कांग्रेस नेताआंे को नागवार गुजरा होगा।

पहले दिन बिहार के जिन लोगों ने मुकुल वासनिक के खिलाफ हंगामा खड़ा किया था, उनको दूसरे दिन अधिवेशन में घुसने ही नहीं दिया गया। लेकिन दूसरा दिन तो पहले दिन से भी कांग्रेस को भारी पड़ा। मुकुल वासनिक सहित 3 अन्य कांग्रेसी पदाधिकारियों के खिलाफ पर्चे बांट दिए गए। उस पर्चे को टीवी स्क्रीन के ऊपर डालकर महाधिवेशन में हिस्सा ले रहे सभी प्रतिनिधियों को दिखा देने में भी बिहार के हताश कांग्रेस सफल हो गए। उससे भी भयंकर बात यह हुई कि प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान ही मुकुल वासनिक के खिलाफ नारे लगाए जाने लगे। जाहिर है कांग्रेसी प्रधानमंत्री से मुकुल वासनिक को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग कर रहे थे। वे प्रधानमंत्री से श्री वासनिक के बैंक खाते की सीबीआई जांच की मांग भी कर रहे थे। बिहार ने एक तरह से कांग्रेस के इस महाधिवेशन का मजा ही किरकिरा कर दिया। प्रधानमंत्री को अपना भाषण बीच में ही रोकना पड़ा और सोनिया गांधी को बिहार के नेताओं की बैठक बुलाने की घोषणा करनी पड़ी। जाहिर है बिहार की हार कांग्रेस महाधिवेशन पर भारी पड़ गई।

अब सवाल उठता है कि कांग्रेस बिहार के उस विद्राह का क्या करेगी? क्या उनकी मांग मानी जाएगी अथवा उनका विद्रोह ही कुचल दिया जाएगा? पहले दिन तों कांग्रेस का वैसा ही तेवर था, लेकिन दूसरे दिन कांग्रेस नेताओं ने जो कुछ देखा और सुना क्या उसके बाद भी कांग्रेस आत्म मंथन के बजाय विद्रोहियों के खिलाफ ही सख्त रुख अपनाएगी?

बिहार चुनाव के बाद राहुल गांधी की छवि भी खतरे में पड़ गई है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बेहतर करने के बाद श्री गांधी ने बिहार पर भी ध्यान देना प्रारंभ कर दिया था। उनके प्रयासों से युवा कांग्रेस में 4 लाख 40 हजार सदस्य बने। उन सदस्यों के बीच चुनाव करवाकर उनके पदाधिकारियों की नियुक्ति हुई राहुल की युवा ब्रिगेड तैयार हो गई। उन्हें कहा गया कि जो लोग युवा कांग्रेसियों के चुनाव में जीतेंगे, उनमें से अनेक लोगांे को विधानसभा मंे प्रत्याशी बना दिया जाएगा। युवाओं को कहा गया कि उन्हें विधानसभा चुनावों में भारी संख्या टिकट दिए जाएंगे। जब राहुल ने मुकुल वासनिक को बिहार का प्रभारी बनाया तो उनके ब्रिगेड को लगा कि उनमें से अनेक का टिकट मिलना तय है।

लेकिन जब टिकट बटे, तो राहुल के युवा ब्रिगेड ने अपने आपको ठगा पाया। उनकी पूरी तरह से उपेक्षा कर दी गईं। अव्वल तो युवाओं को टिकट ही बहुत कम मिले और यदि मिले भी तो उन्हीं को जो कांग्रेस के पुराने नेताओं के रिश्तेदार थे। जाहिर है युवाओं ने अपने आपको ठगा पाया खुद टिकट से वंचित होने के बाद वे अपने आपको संभाल भी सकते थे, लेकिन उन्होंने देखा कि जिन्हें टिकट दिया गया था, वे उसके योग्य ही नहीं थे। उन्हें यह भी पता चला कि टिकट बांटने मे पैसे की लेनदेन हुई। उम्मीदवारों की सूची जारी होने के पहले भी उनको पता था कि दिल्ली से आकर कुछ टिकट के व्यापारियों ने पटना में डेरा डाल दिया है। लेकिन उन्हें राहुल गांधी और उनके खास आददी मुकुल वासनिक पर उस समय पूरा भरोसा था और उन्हें लगा कि टिकट के वे व्यापारी लोगांे को धोखा दे रहे हैं।

बाद में उन्हें पता चला कि धोखा टिकट के व्यापारी नहीं दे रहे थे, बल्कि वे खुद राहुल और मुकुल में अटूट विश्वास करके धोखा खा रहे थे। फिर तो उन्होंने कांग्रेस के कार्यालयों में तोडफोड़ शुरू कर दी। अनेक कार्यालयों में तो आगजनी भी की गई। पटना के कांग्रेस मुख्यालय को भी निशाना बनाया गया। इस तरह राहुल गांधी का 4 लाख से भी ज्यादा सदस्यों वाला युवा ब्रिगेड ने बगावत कर दी और कांग्रेस की शर्मनाक हार का मैदान तैयार हो गया।

युवा ब्रिगेड अभी भी राहुल गांधी में भरोसा रखता है, लेकिन मुकुल वासनिक के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीे होने के कारण उनमें से कुछ को लगने लगा है कि जो कुछ भी श्री वासनिक ने किया वह श्री गांधी की जानकारी में ही किया। जैसे जैसे समय बीत रहा है, यह संदेह बढ़ता जा रहा है। और उसी के साथ राहुल की छवि खराब भी होती जा रही है। इसलिए कांग्रेस नेतृत्व को बिहार के विद्रोही कांग्रेसियों और मुकुल वासनिक की अपेक्षा राहुल की छवि की छवि की चिंता करनी चाहिए। (संवाद)