बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार के लिए निजी रूप से जिम्मेवार नहीं है। उनके इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी के सामने एक धर्मसंकट सा पैदा हो गया है, क्योंकि नीतीश कुमार उसके नंतुत्व वाले राजग के हिस्सा हैं और वही भाजपा जेपीसी के गठन नहीं करने के लिए मनमोहन सिंह पह हमले कर रही है।
पिछले साल लोकसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा के पास कांग्रेस और यूपीए सरकार के खिलाफ कहने के लिए कुछ भी नहीं था। इधर भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद उसके पास एक बड़ा मुद्दा आ गया था और उस पर पार्टी आक्रामक रुख अख्तियार कर रही थी। उसके अपने ही नेता मुरली मनोहर जोशी ने पार्टी से थोड़ा हटकर बोला था और जेपीसी की मांग को कुछ कमजोर कर दिय था। उसके बाद नीतीश कुमार के इस बयान ने तो भाजपा को पसीने पसीने कर दिया है।
यह सच है कि नीतीश कुमार भी जेपीसी के गठन की मांग कर रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के किसी आरोप से मुक्त करने वाला बयान देकर बिहार के मुख्यमंत्री ने अमर्त्यसेन के बयान को ही पुख्ता किया है, जो ठीक उसी तरह सोचते हैं। इसके कारण भाजपा द्वारा प्रधारनमंत्री के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान ठंढा पड़ रहा है। गौरतलब है कि भाजपा अध्यक्ष ने अब तो प्रधारनमंत्री मनमोहन सिंह का इस्तीफा भी मांगना शुरू कर दिया है। भाजपा नेता अरुण जेटली द्वारा प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग के बाद नीतीश का वह बयान आया है। इसलिए वह खास राजनैतिक मायने रखता है।
पूरे प्रकरण ने नीतीश कुमार और भाजपा की राजनीति के अंतर को भी उजागर कर दिया है। एक तरफ भाजपा है जो राजनीति करने के लिए अवसर की तलाश करती रहती है। भ्रष्टाचार का मुद्दा उसे मिला नहीं कि उसने संसद का सत्र ही नहीं चलने दिया। इस तरह उसने साबित कर दिया कि उसे राजनीति करने से मतलब है। दूसरी तरफ नीतीश कुमार हैं, जो बिहार में चुनाव जीतने के बाद भी इस तरह की शालीनता दिखा रहे हैं और राजनीति की मर्यादा का उल्लंधन नहीं कर रहे हैं।
अमर्त्य सेन ने तो और साफ साफ बात की है। उनका कहना है कि गठबंधन की इस राजनीति में प्रधारनमंत्री के परास वह ताकत ही कहां होती है, जिसके बारे में लोग चर्चा कर रहे हैं। इस राजनीति में प्रधानमंत्री की अपनी एक सीमा होती है। उसे किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ कार्रवाई करने के पहले यह देखना होता है कि उस कार्रवाई के राजनैतिक परिणाम क्या होंगे। यदि राजनैतिक परिणाम अराजकता का रूप धारण करने की क्षमता रखता है, तो प्रधानमंत्री के हाथ अपने आप बंध जाते हैं। इसलिए उनका कहना है कि दोष प्रधानमंत्री का नहीं बकि उस व्यवस्था का है जिसके तहत प्रधानमंत्री काम कर रहे हैं।
जहां तक राजनीतिज्ञों की बात है, तो उन्हें नैतिकता की बात करने का नैतिक हक ही नहीं है, क्योंकि उनका अपना रिकार्ड भी बहुत अच्छा नहीं है। राजग की ही बात करें, तो इसने दिल्ली की अपनी रैली में अपने मुख्यमंत्रियों को हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित नहीं किया, क्योंकि उसके कर्नाटक के मुख्यमंत्री पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। (संवाद)
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नीतीश और अमर्त्यसेन प्रधानमंत्री के साथ
भाजपा की परेशानी बढ़ी
अमूल्य गांगुली - 2010-12-30 07:59
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन द्वारा ईमानदार व्यक्ति का प्रमाणपत्र मिलने के बाद कांग्रेस के अंदर और कांग्रेस के बाहर के उनके विरोधियों को परेशानी महसूस हो रही होगी।