तृणमूल कांग्रेस ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस अथवा किसी और छोटी पार्टी के साथ चुनाव गठबंधन अभी तक पूरा नहीं किया है। सच तो यह है कि इस दिशा मे कोई गंभीर बातचीत भी वह किसी से कर नहीं रही है। यही हाल वाम मोर्चे का है। सीपीएम ने अपने वाम सहयोगियों के साथ सीटों को लेकर अभी तक कोई समझौता नहीं किया है। हालांकि दोनों पार्टियां आने वाले चुनाव में अपनी जीत की संभावना को लेकर जोड़ घटाव में लगी हुई है।
तृणमूल कांग्रेस ने अभी हाल ही में एक चुनाव पूर्व सर्वेक्षण करवाया था। वह सर्वेक्षण गुप्त था, लेकिन जानबूझकर तृणमूल ने उसके नतीजे को मीडिया को लीक कर दिया है। उस सर्वे के अनुसार यदि तृणमूल अपने बूते ही चुनाव मैदान में उतरी तो उसे 160 से लेकर 170 तक सीटें आ सकती हैं। यानी ममता बनर्जी बिना किसी अन्य पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़े ही राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें है।
जो नतीजे लीक किए गए हैं, उसके अनुसार यदि तृणमूल पुरानी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है, तो उसकी सीटों की संख्या 200 तक पहुंच सकती है। यदि सिर्फ तृणमूल को ही 200 सीटें मिलती हों, तो यह मानना पड़ेगा कि कांग्रेस को भी 50 से 60 सीटें आएंगी। इसका मतलब है कि कांग्रेस और तृणमूल के मिलकर चुनाव लड़ने की स्थिति में वाममोर्चा का सफाया हो जाएगा।
सर्वे की रिपोर्ट और उसके नतीजे मीडिया में लीक होने के बाद तृणमूल कांग्रेस की ओर से न ही किसी प्रकार का खंडन आया है और न ही किसी प्रकार का स्पष्टीकरण। इसके कारण इस विश्वास को बल मिलता है कि यह लीक तृणमूल कांग्रेस की ओर से जानबूझकर किया गया।
ऐसा नहीं है कि सीपीएम चुप बैठी हुई है। चर्चा है कि उसने भी शोधकर्ताओं की सहायता ली है और उसने भी सर्वे करवाया है। कहते हैं कि सर्वे की रिपोर्ट और उसके नतीजे सीपीएम के लिए उत्साहवर्धक नहीं हैं।
हालांकि सीपीएम के लिए एक अच्छा संकेत यह है कि उसकी स्थिति पहले जैसी खराब नहीं रही। हाल के सप्ताहों में अब उसकी स्थिति सुधरती दिखाई दे रही है। इसका कारण यह है कि सिंगूर और नंदीग्राम की याद जनमानस में धुधली होती जा रही है। इसके कारण जो उसका झटके लग रहे थे अब कमजोर हो रहे हैं।
अगले 45 दिनों में वाम दलों ने एक बड़ा चुनाव पूर्व अभियान चलाने की योजना बनाई है। इसके तहत राज्य सरकार की उपलब्धियों को तो जनता तक पहुंचाने की कोशिश की ही जाएगी, अल्पसंख्यकों, गरीबों और जनजातियों को पार्टी से जोड़ने के लिए उनसे संबंधित योजनाओं की भी चर्चा की जाएगी। इस तरह से वाम मोर्चा उन लोगों को फिर से अपने साथ लाने की कोशिश कर रहा है, जो पिछले कुछ समय से उसके खिलाफ हो गए हैं।
सीपीएम के एक नेता का कहना है कि पार्टी को इस काम में सफलता भी मिल रही है। उनका कहना है कि अब सभाओं में पहले से ज्यादा लोग जुट रहे हैं और लोगों की भागीदारी उत्साहपूर्ण होती है। उनके अनुसार दक्षिण और उत्तर 24 परगना में, जहां, अधिकांश पंचायतों पर तृणमूल का कब्जा हो गया है, लोग अब सीपीएम की ओर मुखातिब हो रहे हैं। इसका कारण है कि तृणमूल नियंत्रित पंचायतों में भ्रष्टाचार के किस्से आम हैं। उसके कारण लोग फिर से सीपीएम की ओर आ रहे हैं। ऐसा उस नेता का मानना है। (संवाद)
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ममता की बढ़त बरकरार
खोया आधार पाने के लिए बेचैन है सीपीएम
आशीष बिश्वास - 2011-01-04 11:41
कोलकाताः यह पश्चिम बंगाल में ही हो सकता है। अगले 5-6 महीने में यहां विधानसभा के चुनाव होने हैं और अभी तक न तो वाम मोर्चा ने और ही सत्ता की प्रबल दावेदार तृणमूल कांग्रेस ने इस चुनाव के लिए अपने आपको तैयार किया है।