यही कारण है कि विपक्ष की भूमिका में भाजपा के सहयोगी संगठन ही राज्य में दिखाई पड़ने लगे हैं। पिछले दिनों राज्य की राजधानी भोपाल में कुछ वैसा ही हुआ। राजधानी को 48 घंटों के लिए जाम कर दिया गया। वह अभूतपूर्व नजारा था। वैसा भोपाल के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। हजारों किसान राजधानी में चारों तरफ से आ धमके। पहले उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का घर घेरा और उसके बाद तो फिर सारा शहर उनकी गिरफ्त में आ चुका था।

किसानों की उस घेराबंदी का सबसे दिलचस्प पहलू यह था कि उसे किसी विपक्ष ने अंजाम नहीं दिया था। विधानसभा मे सदस्य संख्या के लिहाज से कांग्रेस राज्य की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, लेकिन मुख्यमंत्री के घर का घेराव कांग्रेस ने नहीं करवाया था, बल्कि भारतीय किसान संघ ने करवाया था, जो भारतीय जनता पार्टी की तरह ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संध से जुड़ी संस्था है। यानी वह भारतीय जनता पार्टी का सहयोगी संगठन है।

किसान भोपाल में प्रदर्शन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करने के लिए कर रहे थे। उनको गुस्सा इस बात का था कि श्री चौहान ने भारतीय किसान संघ के नेताओं को किए गए वायदे पूरे नहीं किए थे।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से लोगों की समस्याओं को सुनने के लिए अपने निवास पर पंचायत का आयोजन किया करते हैं। उसके तहत वे कई बार किसान पंचायत का भी आयोजन कर चुके हैं। उन पंचायतों में मुख्यमंत्री लोगों की समस्याओं को सुनते हैं और उनका हल करने का आश्वासन देते हैं। किसान पंचायतों में भी उन्होंने अनेक प्रकार के आश्वासन दे रखे हैं। लेकिन प्रशासन उनको पूरा नहीं कर पा रहा है। यह आंदोलन मुख्यमंत्री की उसी वादाखिलाफी के खिलाफ था।

भारतीय किसान संघ के एक प्रवक्ता के अनुसार रैली की तैयारी पिछले 6 महीने से चल रही थी और रैली का समय भी बहुत पहले ही तय कर दिया गया था। लेकिन लगता है कि इसकी खबर न तो पुलिय प्रशासन को थी और न ही भारतीय जनता पार्टी को। सच कहा जाए तो मीडिया को भी इसके बारे में पहले से जानकारी नहीं थी। सिर्फ एक हिंदी दैनिक ने उसके बारे में एक खबर प्रकाशित की थी। इसलिए जब एकाएक भोपाल जाम हो गए तो सारे लोग चौंक गए। सबसे पहले प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री के निवास को ही घेरा। वहां स्थाई रूप से धारा 144 लगी रहती है और वहां किसी प्रकार का प्रदर्शन प्रतिबंधित है। फिर भी प्रदर्शनकारियों ने अपने प्रदर्शन का केन्द्र उसी स्थान को बनाया।

उसके बाद तो प्रदर्शनकारियों ने 48 घंटे तक भोपाल का जीवन अस्त व्यस्त कर डाला। कहते हैं कि आरएसएस के नागपुर कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने अपने घरने को उठाया। नागपुर के कहने पर ही उन्होंने मुख्यमंत्री के आश्वासनों पर भरोसा किया और राज्य की राजधानी से प्रस्थान कर गए।

इस तरह आरएसएस का उद्देश्य पूरा हो गया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चेतावनी देने में वे सफल रहे। वे मुख्यमंत्री को अहसास कराना चाहते थे कि सिर्फ आश्वासन देने से लोगों का पेट नहीं भरता, वे आश्वासन पूरे भी किए जाने चाहिए। मुख्यमंत्री ने किसानों की सभी मांगों को मान लेने की घोषणा की और किसानों ने अपना धरना उठा लिया।

राजनैतिक पंडितों का कहना है कि राज्य के ग्रामीण इलाकों में राज्य सरकार की विफलता को लेकर भारी आक्रोश है, लेकिन इस आक्रोश को स्वर देने में राज्य की मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी विफल हो रही है। यही कारण है कि जो उसे करना चाहिए था, उस काम को भारतीय किसान संघ ने किया है।

इस समय कांग्रेस दिशाहीन है। उसकी नाव को खेने वाला कोई नहीं है। यह प्रदेश स्तर पर ही नहीं हो रहा है, बल्कि जिला स्तर पर भी उसका यही हाल है। (संवाद)