पिछले विधानसभा चुनाव के बाद उसका मतदाता आधार सिकुड़ गया है। उसके बाद हुए लोकसभा और स्थानीय चुनावों में वह कांग्रेस के नेतृत्व वाले युडीएफ से पराजित हो चुका है। जाहिर है विधानसभा चुनाव में उस पर दो चुनावों में मिली हार की मानसिकता के साथ उतर रही है। वैसे भी केरल का चुनावी इतिहास यही कहता है कि बारी बारी से दोनों मोर्चे जीत हासिल करते हैं।

इस ऐतिहासिक तथ्य के आलोक में इस बार एलडीएफ के सामने हार मड़राती दिखाई पड़ रही है। लेकिन एलडीएफ के नेता संभावित हार को जीत में बदलने के लिए कमर कस रहे हैं। उन्होंने अपने मतदाता आघार बनाने की कसरत शुरू कर दी है, जिसके तहत अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को पार्टी के साथ जोड़ने पर बल दिया जा रहा है।

केरल में मुस्लिम और ईसाई दो बड़े अल्पसंख्यक समुदाय हैं। इनमें मुसलमानों के बीच एलडीएफ पिछले कुछ समय से कमजोर हुआ है। मुसलमानों की राजनीति करने वाला इंडियन नेशनल लीग कभी एलडीएफ का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन वह अब उसका साथ छोड़ चुका है। उसके एक विद्रोही नेता को अपनी ओर लाने में एलडीएफ की प्रमुख पार्टी सीपीएम सफल भी हुई है।

सत्तारूढ़ मोर्चे के खिलाफ मुस्लिम समुदाय इस कारण भी हो गया है कि उसने उस समुदाय से आने वाले एक विधायक के साथ अच्छा नहीं किया था। उस विधायक ने पार्टी और विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। फिर अपने विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत भी हासिल कर ली थी।

पिछले स्थानीय निकायों के चुनाव में एलडीएफ के अनेक कार्यकर्त्ता बागी हो गए थे और उन्होंने मोर्चे के उम्मीदवारांें के खिलाफ चुनाव भी लड़ा। उनमें से अनेक चुनाव जीत भी गए थे। अब मोर्चे की पार्टियां अपने उन विक्षुब्ध नेताआंे को मनाने की कोशिश में जुट गई हैं।

पिछले स्थानीय निकायों के चुनावों में एलडीएफ ने 40 विधानसभा क्षेत्रों में अपने निकट विरोधियों की अपेक्षा ज्यादा मत हासिल किए थे। वहां मोर्चा अपनी जीत लगभग तय मान रहा है। उनके अलावा 35 सीटों पर मोर्चे को विरोधी मोर्चे की अपेक्षा 5 हजार अथवा उससे कम मत मिले थे। अब एलडीएफ उन 35 सीटों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहा है और कुछ और मतों का जुगाड़ कर वहां हार को जीत में बदलने की कोशिश कर रहा है। यदि वह अपनी कोशिशों में सफल हो जाता है, तो विधानसभा में साधारण बहुमत तो हासिल कर ही लेगा। लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसा हो पाएगा?

मध्यवर्ग भी अब मोर्चा के खिलाफ हो गया है। सीपीआई के राज्य सचिव न मध्यवर्ग की नाराजगी दूर करने के लिए कुछ सुझाव दिए थे। मोर्चा उन सुझावों पर काम करके मध्यवर्ग के लोगों को भी अपनी ओर करने की कोशिश में जुट गया है। लॉटरी घोटाले की सीबीआई जांच की मांग कर राज्य सरकार ने सत्तारूढ़ मोर्चा के लिए मध्यवर्ग का समर्थन हासिल करने का ही प्रयास किया है।

गौरतलब है कि लॉटरी घोटाला पिछले कई महीनों से राज्य में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कांग्रेस इस मुद्दे को अपनी राजनीति के लिए भुना रही थी। इसका उसे स्थानीय निकायों के चुनावों में फायदा भी हुआ था। अब इस घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग करके राज्य सरकार ने कांग्रेस को करारा जवाब दे दिया है। (संवाद)