आईसीएमआर ने आश्वस्त किया है कि सीसीएचएफ को अस्पतालों में जहां मरीज भर्ती किए गए हैं, की समुचित सफाई और संक्रमण नियंत्रण उपायों द्वारा आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसी ही सावधानियां समुदायों द्वारा खासकर पशुवध करने के दौरान बरती जानी चाहिए क्योंकि पशुओं के ऊतकों से यह संक्रमण मानव में फैलता है। स्थानीय तौर पर समुचित नियंत्रण उपाय के पश्चात इसके प्रसार को रोका जा सकता है। इस मामले में चिकित्सकों के बीच जागरूकता और एनआईवी में लक्षणों की शीघ्र जानकारी भी हमारी व्यवस्था के सक्षम होने का एक उदाहरण है और इससे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है।
जानकारी के मुताबिक सीसीएचएफ वाइरस चिचड़ी के जरिये जानवरों में फैलता है। यह जानवरों में मर्ज पैदा नहीं करता किंतु इस बीमारी से पीडि़त 20 से 40 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हो जाती है।
आईसीएमआर ने आगे बताया कि खासतौर पर चिचड़ी के काटने (रक्त या ऊतकों में संक्रमण के प्रकटन के 5-6 दिन पश्चात) की संक्रमण अवधि के एक से तीन दिन के पश्चात फ्लू जैसे लक्षण प्रकट होते हैं जो एक सप्ताह पश्चात विघटित हो जाते हैं। तथापि, 75 प्रतिशत मामलों में बीमारी के हमले के 3-5 दिन के भीतर हेमरेज के लक्षण प्रकट होते हैं। लक्षणों के दिखाई देने के 9-10 दिन बाद मरीज को प्राय: आराम होने लगता है किंतु कुछ मामलों में मृत्यु हो सकती है।
राष्ट्रीय संचारी रोग संस्था के विशेषज्ञों का एक दल पहले ही अहमदाबाद के लिए लगाया जा चुका है।
पूर्व में सीसीएचएफ वायरस अफ्रीका, बालकंस, मध्यपुर और पाकिस्तान में पाये जाने की सूचना है। अब भारत में सीसीएचएफ संक्रमण के सेरोलॉजिकल लक्षण जानवरों में पाए गए हैं।
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सीसीएचएफ वाइरस: भयभीत होने की आवश्यकता नहीं-आई सी एम आर
विशेष संवाददाता - 2011-01-19 13:55
नई दिल्ली: क्रीमिया कांगो हेमोरहेजिक फीवर (सीसीएचएफ) वाइरस से संक्रमित मानव के अब तक के पहले मामले के बारे में अहमदाबाद से सूचना प्राप्त हुई है। वाइरोलॉजी राष्ट्रीय संस्थान (आईसीएमआर.पुणे) ने मरीज के रक्त के साथ-साथ पेशाब के नमूनों में सीसीएचएफ वाइरस की मौजूदगी की पुष्टि की है।