धनपति सपकोटो को एक गैर सरकारी संगठन ने भी भास्‍कार कृषि सम्‍मान प्रदान किया है । यह सम्‍मान तकसांग स्‍थित सागर प्रकाशन ग्रामीण प्रतिभा संरक्षण समिति द्वारा दिया गया है । इससे पूर्व पक्‍योंग में आयेाजित स्‍वतंत्रता दिवस समारोह में भी राज्‍य के बागवानी विभाग ने उन्‍हें डेढ़ हजार रूपये, प्रशस्‍ति पत्र, कृषि उपकरण और विभिन्‍न बागवानी फसलों के बीजों के पैकेट देकर सम्‍मानित किया था ।

सपकोटा ने घरेलू उपयोग के लिये धान और मकई की पारम्‍परिक फसलों से अलग हटकर अपनी दो एकड़ जमीन में बागवानी फसल लेने की शुरूआत की थी । इसके लिये उन्‍होंने मारचक में तीन दिनों का प्रशिक्षण लिया था । इसके अतिरिक्‍त उन्‍होंने उत्‍तराखंड में आयोजित जैविक कृषि कार्यशैली में भी 11 दिनों का प्रशिक्षण प्राप्‍त किया था । राज्‍य के बागवानी विभा्ग ने इसके लिये सहायता की थी।

इस प्रशिक्षण और आम विश्‍वास के कारण सपकोटा ने आश्‍चर्यजनक परिणाम दिये हैं । उन्‍होंने 1900 बीजों से उसी वर्ष 1 लाख 52 हजार रूपये मूल्‍य की 19 क्‍विंटल लाल मिर्च का उत्‍पादन करने में सफलता प्राप्‍त की । इस सफलता ने बागवानी को अपनाने के लिये उन्‍हें और भी प्रेरित किया । उन्‍होंने फूल गोभी, टमाटर, पत्‍तागोभी और हरी गोभी की भी फसल लेनी शुरू कर दी ।

समकोटा ने अपनी जमीन पर संरक्षित उत्‍पादन के जरिये एक पौधे से 40 किलो टमाटर की पैदावार ली । इस वर्ष इस आदर्श किसान ने तकनीकी मिशन के अंतर्गत राज्‍य के बागवानी विभाग से रोमियो प्रजाति के बीज लेकर बेमौसमी टमाटर की पैदावार ली है । उन्‍होंने 1 लाख 94 हजार रूपये मूल्‍य का 97 क्‍विंटल टमाटर बेचा । उन्‍होंने 64 हजार रूपये मूल्‍य की 8 क्‍विंटल फूलगोभी 96 हजार रूपये मूल्‍य की लाल मिर्च भी बेची है । सपकोटा का कहना है कि मजदूरों की मजदूरी के भुगतान और अन्‍य जरूरी खर्चों को निकालकर मुझे बागवानी से प्रतिवर्ष ढाई लाख रूपय की आय होती है । वे तकनीकी मिशन के तहत सब्‍जियों की मिली जुली फसलें भी ले रहे हैं । राज्‍य का बागवानी विभाग तकनीकी मिशन के तहत सब्‍जियां उगाने के क्षेत्र में विस्‍तार के लिये प्रयासरत है ।

विभाग की ओर से सपकोटा को बीज, जैविक खाद और कीटनाशक दवाओं तथा अन्‍य सहायता दी जाती है ।

सपकोटा का दावा है कि उन्‍होंने सिक्‍किम में जुकुनी फारसी का उत्‍पादन लेना शुरू किया है । यह ककड़ी के आकार का जुकुनी प्रजाति का कद्दू होता है । इस क्षेत्र में जुकुनी फारसी की पैदावार लेने वाले वे पहले किसान हैं, इसलिए असम लिंग्‍जे के लोगों ने उनके कद्दू का नाम सपकोटा फारसी रख दिया है । वे बताते हैं कि उन्‍होंने जुकुनी फारसी का बीज 2004 में काठमांडू से खरीदा था । उन्‍होंने बताया कि सबसे पहले कद्दू की यह प्रजाति उन्‍होंने भक्‍तपुर में राणा के कृषि फार्म में देखी थी । जुकुनी फारसी की पैदावार लेने से सपकोटा को 90 हजार रूपये की आय हुई ।

इस प्रगतिशील किसान की जैविक खेती की कहानी यहीं समाप्‍त नहीं होती । वे पशुपालन और पशुधन प्रबंधन में भी योगदान दे रहे हैं । इसके लिये उन्‍होंने कारफेक्‍टर जोरथांग से प्रशिक्षण भी प्राप्‍त किया है । इस समय उनके पास पाँच गायें हैं, जिनमें से तीन दुधारू हैं । वे प्रतिदिन 20 लीटर दूध 20 रूपये प्रति लीटर की दर से बेच रहे हैं ।

सपकोटा को अपने खेतों के लिये खाद भी इन गायों से मिलता है । बागवानी विभाग के सहयोग से उन्‍होंने केंचुआ कम्‍पोस्‍ट खाद की इकाई भी लगाई हुई है । जहां तक उपज की बिक्री का प्रश्‍न है, सपकोटा का कहना है कि यह सच है कि अधिकांश किसानों को अपना माल बेचने में दिक्‍कतें आती हैं । परन्‍तु यह समस्‍या तब तक हल नहीं होगी जब तक हम पर्याप्‍त मात्रा में उत्‍पादन नहीं करते और बाजार की मांग को पूरा नहीं करते ।

उनके प्रगतिशील कार्य से प्रभावित होकर राज्‍य बागवानी विभाग ने तकनीकी मिशन के अंतर्गत फार्म हैंडलिंग इकाई का निर्माण किया है जो उनके उत्‍पादों की बिक्री में मददगार रही है । अब उन्‍हें अपना माल लेकर बाजार नहीं जाना पड़ता, क्‍योंकि उनके सभी उत्‍पाद इसी इकाई द्वारा बेचे जाते हैं ।

सपकोटा इस समय अपने उत्‍पादों को फरवरी 2011 में सरम्‍सा गार्डेन में होने वाले राज्‍य बागवानी प्रदर्शनी में प्रदर्शित करने की तैयारियों को लेकर व्‍यस्‍त हैं। (पीआईबी)