भाजपा ने कर्नाटक में भी कांग्रेस के ऊपर धावा बोल दिया है। वहां यदुरप्पा को हटाने की मांग के साथ कांग्रेस ने उसके खिलाफ पहले ही मोर्चा खोल रखा था। राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमे की इजाजत के बाद वहां की राजनीति और भी विस्फोटक रूप लेती जा रही है। भाजपा ने जम्मू कश्मीर पर भी मोर्चा खोल दिया है। वहां लाल चौक पर तिरंगा फहराने को लेकर वह आंदोलित हो रही है। मध्यप्रदेश में भी भाजपा ने आक्रामत रुख अपना रखा है। दिल्ली में कभी भ्रष्टाचार को लेकर तो कभी महंगाई को लेेकर उसका धरना प्रदर्शन होता ही रहता है।

सवाल उठता है कि भाजपा आखिर इतना आक्रामक क्यों हो रही है? और कांग्रेस भी उसकी आक्रामकता का जवाब आक्रामकता से क्यों दे रही है? सच तो यह है कि भाजपा 2009 की अपनी पराजय को पचा नहीं पा रही है। उस साल की हार उसके लिए एक बड़ा हादसा था। उसके बाद से ही वह केन्द्र सरकार के खिलाफ किसी मौके का जाया नहीं करती है। वह जेपीसी के मसले पर सरकार के खिलाफ सक्रिय है, तो महंगाई के मसले पर भी उसने सरकार की नाक में दम कर रखा है। वह कभी मनमोहन सिंह पर प्रहार करती है, तो कभी सोनिया गांधी पर प्रहार करती है। गौहाटी में उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। वहां भी उसने दोनो के खिलाफ आग उगलने में किसी तरह की रियायत नहीं की।

कांग्रेस भी आक्रामकता की नीति अपना रही है। उसे लगता है कि रक्षात्मक होने की अपेक्षा आक्रामक होना ज्यादा ठीक है। इसलिए उसने अपने बुराड़ी अधिवेशन में भी भाजपा को निशाने पर रखा। वह भाजपा ही नहीं, बल्कि आरएसएस और वीएचपी के खिलाफ भी आग उगल रही है। भगवा आतंकवाद के मसले पर भाजपा सहित पूरे संघ परिवार को कांग्रेस घेरने की कोशिश कर रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के मसले पर भी आक्रामक रुख दिखाने से वह बाज नहीं आ रही है।

भ्रष्टाचार के चौतरफा लग रहे आरोपों के बीच कांग्रेस को कहने के लिए कुछ है। वह कह रही है कि उसने आदर्श सोसायटी घोटाला सामने आने पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चौहान का इस्तीफा करवा दिया। वह ए राजा को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से निकालने की भी बात कर रही है और भाजपा की कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से हटाने की विफलता को भुनाने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ भाजपा को लग रहा है कि एक केन्द्रीय मंत्री और एक मुख्यमंत्री को हटवाने के बाद वह कांग्रेस पर और भी दबाव डाल सकती है।

बोफोर्स ही नहीं सीवीसी थामस का मसला भी भाजपा को मिल गया है। दोनों मसले पर कांग्रेस घिरती दिखाई पड़ रही है। सीवीसी के मसले पर तो कांग्रेस के पास भाजपा के आरोपों को जवाब भी नहीं है। सीवीसी की नियुक्ति की प्रक्रिया में लोकसभा मंे विपक्ष की नेता की भी भूमिका होती है। जब नियुक्ति हो रही थी, तो उस समय विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने थामस का विरोध किया था। विरोध नियुक्ति के समय ही नहीं, बल्कि उसके बाद भी किया था और जब सीवीसी का शपथग्रहण हो रहा था, तो सुश्री स्वराज ने उस समारोह का बहिष्कार भी किया था। इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी केन्द्र सरकार अदालत को बता रही है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को नियुक्ति के समय थामस के खिलाफ चल रहे मुकदमे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, जबकि सुषमा स्वराज कह रही है कि उन्होंने दोनों को उस मुकदमे के बारे में बताते हुए ही थामस की नियुक्ति का विरोध किया था। जाहिर है कांग्रेस के ऊपर भाजपा भारी पड़ रही है और कांग्रेस सार्वजनिक रूप से उसके सामने कमजोर पड़ती जा रही है। (संवाद)