भाजपा के अध्यक्ष नीतिन गडकरी ने बिना समय गंवाए अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कह डाला कि राहुल का भ्रष्टाचार से संबंधित वह बयान मजाक है। वे विपक्ष के नेता हैं। वे कुछ न कुछ तो कहंेगे ही, पर सवाल उठता है कि क्या महंगाई और भ्रष्टाचार पर इस तरह का बयान देकर राहुल गांधी कांग्रेस को युवाओं की पार्टी बना पाएंगे?
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि राहुल गांधी ने कांग्रेस को फिर से पहले की तरह एक ताकतवर राष्ट्रीय पार्टी बनाने का जिम्मा अपने ऊपर ले रखा है और इसके लिए वे अपनी पार्टी की तरफ युवाओं को आकर्षित करने के अभियान में लगे हुए हैं। उनका अभियान यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल मे तो ठीक तरह से चल रहा था। वे अपने तरीके से राजनीति कर रहे थे। युवाओं ही नहीं, बल्कि दलितों को भी अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे थे और उन कोशिशों की अच्छी मीडिया पब्लिसिटी भी हो रही थी।
पर यूपीए सरकार का दूसरा कार्यकाल राहुल गांधी के लिए अच्छा साबित नहीं हो पा रहा है। इसका एक बड़ा कारण तो यही है कि दूसरे कार्यकाल में सरकार एक के बाद एक समस्याओं मे फंसती दिखाई पड़ रही है। यद्यपि राहुल गांधी सरकार का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं में से एक होने के कारण, वे सरकार के कामकाज के लिए भी देश के लोगों के सामने जवाबदेह हैं। वे कहकर लोगों को चुप नहीं करा सकते कि महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों का जवाब सरकार में बैठे लोगों से ही पूछा जाए।
राहुल गांधी के अभियान की मुख्य रणनीति यही है कि वे देश की ज्वलंत समस्याओं पर बोलने से अपने आपको अलग रखें। जो भी मसले विवादास्पद हों, उनसे बचने की राहुल ने अबतक भरसक कोशिश की है, लेकिन वे ऐसा बहुत समय तक नहीं कर सकते। जब आप सार्वजनिक जीवन में हैं, तो आपको ज्वलंत सार्वजनिक मसलों पर अपनी राय भी सार्वजनिक करनी ही पड़ेगी। यदि आप चुप रहेगे, तो इससे आपकी कमजोरी साबित होगी। इन मसलो पर चुप रहकर आप युवाओं का विश्वास नहीं जीत सकते।
इसी साल कुछ राज्यों मे विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। उनमें कांग्रेस की असम में अपी सरकार है। केरल में वह एक मोर्चे का नेतृत्व करती हुई अपनी सरकार बनाने के लिए चुनाव मैदान में उतरेगी। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में एक मोर्चे के तहत जूनियर पार्टनर के रूप में उसे चुनाव मैदान मंे उतरना है। महंगाई और भ्रष्टाचार इन चुनावों में भी मुख्य मसले होंगे, हालांकि स्थानीय फैक्टर इन विधानसभा चुनावों को मुख्य रूप से प्रभावित करेंगे। बढ़ते राजनैतिक तापमान के बीच राहुल गांधी को भी लोगों के सामने की मुख्य चुनौतियों पर बोलना होगा। और उन्होंने महंगाई और भ्रष्टाचार के मसले पर अपना रुख तय कर लिया है।
सवाल उठता है कि राहुल गांधी ने महंगाई और भ्रष्टाचार के मसले पर जो रुख तय किया है, उससे क्या वे लोगों और खासकर युवाओं को आश्वस्त कर पाएंगे अथवा उनकी नजरों में अपनी विश्वसनीयता ही गंवा देंगे? सबसे पहले महंगाई के मसले को लें। उनका कहना है कि महंगाई गठबंधन की राजनीति की विवशता है। ऐसा कहकर वे गठबंधन की राजनीति का विरोध कर रहे हैं, लेकिन यह बात वे पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में कैसे कहेंगे, जहां उनकी अपनी पार्टी खुद गठबंधन करके चुनाव लड़ रही हो? क्या इसके कारण वे खुद इन राज्यांे में अपने गठबंधन को कमजोर करने का काम नहीं कर रहे होंगे?
महंगाई पर जब उन्होने अपना बयान दिया था, उस समय उनका निशाना शरद पवार थे। उस समय शरद पवार खाद्य आपूर्ति व उपभोक्ता मंत्रालय के प्रमुख थे और खाद्य पदार्थो की महंगाई का ठीकेरा उनके सिर पर ही फोड़ा जा रहा था और कहा जा रहा था कि उनके मामलों में प्रधानमंत्री अथवा वित्त मंत्री हस्तक्षेप नहीं कर सकते, क्योंकि उनके समर्थन से सरकार चल रही है। अब स्थितियां बदल गई हैं। अब शरद पवार खाद्य मंत्री नहीं रहे और कांग्रस का ही एक नेता इस मंत्रालय को संभाल रहा है। इसके कारण अब शायद राहुल गांधी महंगाई को गठबंधन सरकार की विवशता भी नहीं कह सकते। वैसे गठबंधन करके चुनाव लड़ते समय इस तरह बयानबाजी करना कोई राजनैतिक कुशलता का काम भी नहीं होगा। जाहिर है अब राहुल गांधी को महंगाई के मसले पर कुछ और बोलना होगा।
भ्रष्टाचार का मसला राहुल गांधी के लिए महंगाई के मसले से भी बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा है। इसका कारण यह है कि मनमोहन सिंह की सरकार इस मसले पर बुरी तरह घिरती जा रही है। प्रत्येक बीतते दिन के साथ इस मसले पर केन्द्र सरकार की स्थिति थोड़ी और ज्यादा दयनीय हो जाती है। 2 जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेलों में होने वाले भ्रष्टाचार की जेपीसी जांच की मांग से तो सरकार घिरी हुई ही है, सीवीसी थामस की नियुक्ति का मामला भी उसकी स्थिति हास्यास्पद बना रही है। विदेशी बैंको मंे जमा घनराशि के 26 लोगों के नाम की जानकारी केन्द्र सरकार को हो चुकी है। उन लोगों के नाम बताने का दबाव सरकार पर पड़ रहा है और उनका नाम छिपाकर केन्द्र सरकार खुद को संदिग्ध बना रही है। इसके कारण कांग्रेस के प्रमुख नेता गण भी संदेह के घेरे में आ गए हैं।
भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में बोफोर्स का भूत भी पीछा नहीं छोड़ रहा है। क्वात्रोची का मामला फिर तूल पकड़ रहा है। उसके फ्रीज किए गए खातों को मनमोहन सिंह सरकार ने ही चालू करवाया था। अब क्वात्रोची को बोफोर्स सौदे में धन मिलने का मामला सामने आ गया है। बोफोर्स सौदे में संदेह की उंगली राजीव गांधी की ओर भी उठी थी। यदि उन्हें संदेह का लाभ दे भी दिया जाए, तो क्वात्रोची से उनके संबंधों को लेकर तो किसी को किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं रहा है। खुद राहुल गांधी की क्वात्रोची के साथ पारिवारिक नजदीकी रही है और मीडिया में राहुल के उनसे घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों की खबरे मीडिया में आती रहती हैं।
यानी भ्रष्टाचार के मसले पर राहुल गांधी की चुप्पी उनके खिलाफ ही जाएगी। वे इस पर चुप रहकर युवाओं का विश्वास नहीं जीत सकते। लेकिन उन्होंने जो कहा है, उसके द्वारा भी वे युवाओं को अपने बारे में आश्वस्त नहीं कर सकते। भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए उन्हें 10 साल दिया जाए, इस पर शायद ही कोई भरोसा करेगा। आज जब भ्रष्ट लोगों की पहचान कर उन्हें दंडित करने की बात हो रही है, तो फिर वैसा करने के लिए 10 साल की जरूरत क्यों? (संवाद)
भ्रष्टाचार पर राहुल की राय: क्या आश्वस्त हो पाएंगे युवा?
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-01-31 19:57
महंगाई के मसले पर अपना मुह खोलने के बाद अब राहुल गांधी ने भ्रष्टाचार के मसले पर भी अपनी राय जाहिर कर दी है। महंगाई को उन्होंने गठबंधन सरकार की विवशता बताई थी, तो अब भ्रष्टाचार को वर्तमान व्यवस्था की विवशता बता दी है। जाहिर है महंगाई समाप्त करने या उस पर अंकुश रखने के लिए वे कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार की आवश्यकता पर बल दे रहे थे। अब भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए वे व्यवस्था में बदलाव करना चाहते हैं और इसके लिए देश के लोगों से 10 साल का समय मांग रहे हैं।