सीबीआई ने जांच सौंपे जाने के बाद पहली प्राथमिकी 21 अक्टूबर 2010 को दर्ज की थी। इस प्रकार गिरतार करने में दो महीना 11 दिन का समय लगा। प्राथमिकी के बाद इतना समय लगना राजा की राजनीतिक हैसियत को प्रमाणित करता है। राजा की गिरतारी के बावजूद संप्रग गठबंधन में द्रमुक बना हुआ है। जाहिर है, इससे संप्रग के अस्थिर होने के जो कयास लगाए जा रहे थे वे गलत साबित हुए हैं। तो क्या राजा की गिरतारी का कोई विशेष राजनीतिक निहितार्थ नहीं है?
सच कहंे तो इसका राजनीतिक निहितार्थ काफी गहरा है। यह घटना इस समय कानूनी से ज्यादा राजनीतिक विवशता की परिणति है। यह केवल प्रधानमंत्री द्वारा कानून अपना काम करेगा के वायदे की स्वाभाविक परिणति नहीं है। सरकार शीतकालीन सत्र की तरह संसद के बजट सत्र को भी ए. राजा और स्पेक्ट्रम घोटाले की भेंट नहीं चढ़ने देना चाहती। विपक्ष एक स्वर में राजा की गिरतारी की मांग कर रहा था। ऐसा करके विपक्ष के हमले की तीक्ष्णता थोड़ी कम की जा सकती थी। दूसरी ओर उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई और प्रर्वतन निदेशालय को 10 फरबरी तक जो जांच हुई उसकी प्रगति का ब्यौरा पेश करने का आदेश दिया था। इसके बाद निश्चय ही प्रधानमंत्री ने जांच मंे तेजी लाने का निर्देश दिया होगा और सीबीआई ने कहा होगा कि बगैर राजा एवं उनके सहयोगियों की गिरतारी के जांच में तीव्र प्रगति कठिन है। सीबीआई बगैर प्रधानमंत्री की हरी झंडी के ऐसा नहीं कर सकती। प्रधानमंत्री के सामने पूरा राजनीतिक परिदृष्य था। उन्हें करुणानिधि का सामना करना था। प्रधानमंत्री ने निश्चय ही इस पर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के साथ कुछ वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों को भी इसकी जानकारी दी होगी। वास्तव में इसके राजनीतिक परिणामों का ठीक आकलन करने के बाद ही ऐसा किया गया। राजा से इस्तीफा लेने के तुरत बाद भी उनकी गिरतारी हो सकती थी, किंतु गठबंधन सरकार के लिए एक बार इतने बड़े झटके का जोखिम मोल लेना संभव नहीं था। इसलिए एक एक कदम बढ़ने का निश्चय किया गया होगा। यानी पहले इस्तीफे के बाद द्रमुक की कैसी राजनीतिक प्रतिक्रिया आती है उसे देखा जाए फिर आगे बढ़ा जाए। राजा का इस्तीफा लेना कितना कठिन था, यह बताने की आवश्यकता नहीं। लेकिन पूरा प्रकरण जिस दिशा में जा रहा था उसमें केवल इस्तीफा पर्याप्त नहीं था। सीबीआई यह दलील दे रही थी कि बगैर उनको गिरतार किए परिणामकारी पूछताछ कठिन है। यह स्पष्ट नहीं है कि करुणानिधि ने सहमति दी या नहीं, पर उन्हें पूर्व जानकारी अवश्य दी गई होगी। प्रधानमंत्री ने इसके लिए ही इतना समय लिया।
लेकिन राजा की गिरतारी के बाद द्रमुक ने जो तेवर दिखाया वह कांग्रेस के लिए चिंता का संकेत हैं। द्रमुका का राजा से पल्ला झाड़ने का समाचार महज एक अफवाह ही साबित हुआ। राजा की गिरतारी के अगले दिन द्रमुक की महा परिषद (जेनरल काउंसिल ) की बैठक हुई। इसमें प्रस्ताव पारित करके राजा का बचाव किया गया। कहा गया कि राजा को बलि का बकरा बनाया गया है। स्वयं करुणानिधि ने कहा कि राजा को गरीबों तक मोबाइल सेवा पहुंचाने की कीमत चुकानी पड़ रही है। परिषद ने साफ कहा कि गिरतारी का मतलब उसका दोषी होना नहीं है और मुद्दे को राजनीतिक स्वार्थों के कारण जरूरत से ज्यादा तूल दिया गया है। करुणानिधि और स्टालिन द्वारा राजा के सार्वजनिक बचाव से बड़ा प्रमाण और क्या होगा। कांग्रेस नेतृत्व एवं सरकार के लिए इस तेवर में एक साफ राजनीतिक संदेश है। यानी कानूनी प्रक्रिया का पालन तो हो, लेकिन राजा को मुजरिम मानकर व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। अगर द्रमुक का यह रुख कायम रहता है तो भविष्य में कांग्रेस के साथ रिश्ते बिगड़ सकते हैं। हालांकि अभी यह देखना होगा कि करुणानिधि राजा के साथ आगे बढ़ने के अपने रवैये पर कब तक कायम रहते हैं और विपरीत राजनीतिक परिस्थिति का जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं या नहीं, आज की स्थिति में तो यह कहा ही जा सकता है कि जब तक राजा के विरुद्ध ऐसा प्रमाण नहीं आ जाता जिससे उनका अपराध बिल्कुल प्रमाणित हो जाए और इसमें रत्ती भर संदेह न रहे कि वाकई 2 जी स्पेक्ट्रम में उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर धन कमाया है तब तक वे राजा का समर्थन करते रहेंगे। तो कुल मिलाकर सारा दारोमदार सीबीआई द्वारा राजा के विरुद्ध लाए गए प्रमाणों पर निर्भर करेगा।
तो क्या वाकई सीबीआई राजा के विरुद्ध ऐसा अकाट्य प्रमाण ला पाएगी? अगर ऐसा नहीं होता है तब तो द्रमुक के साथ कांग्रेस के रिश्तों में तनाव पैदा होना निश्चित है। माना जा सकता है कि गिरतारी के पूर्व प्रधानमंत्री ने सीबीआई की छानबीन का मूल्यांकन किया होगा। जो खबरें हैं उनके अनुसार सीबीआई ने राजा को गिरतार करने के पूर्व उन्हंें अब तक उनके, उनके भाई, व्यवसायी सहयोगी, हवाला व्यापारियों, नीरा राडिया, प्रदीप बैजल आदि के घर छापे में मिले सबूत, उनकी बातचीत के टेप तथा उनसे पूछताछ के रूप में ऐसे सबूत एकत्रित किए थे जिससे राजा घिर गए। ये सबूत क्या हैं इनका पता तो आरोप पत्र दायर किए जाने के बाद ही चलेगा। किंतु विपक्ष के हमले एवं राजा को दोषी मानने का मुख्य आधार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक या कैग की रिपोर्ट ही है। दूरसंचार मामलों के प्रभारी मंत्री कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति पाटिल की जो रिपोर्ट जारी की उसमें भी 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितता का ब्यौरा है। इसमें कहा गया है कि 2001 के बाद से ही लाइसेंस देने मंे पारदर्शिता नहीं बरती गई। इस समिति ने 2001 से 2009 के बीच 17 ऐसे मामले बताये हैं जहां दूरसंचार लाइसेंस देने या स्पेक्ट्रम आवंटन करने में निर्धारित नियम कानून का पालन नहीं हुआ। समिति ने 16 मामलोें में निष्पक्षता एवं पारदर्शिता का साफ अभाव माना है। 25 मामलों में सही आवेदन नहीं होने के बावजूद निर्धारित प्रक्रिया से बाहर जाकर लाइसेंस दिए गए। रिपोर्ट के अनुसार पहले आओ पहले पाओ के नियम का उल्लंघन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में भी हुआ और राजा ने भी 2007-08 में यही किया।
ये सब संदेह तो बढ़ाते हैं, पर कैग या पाटिल समिति की रिपोर्टो का कानूनी सबूत के तौर पर प्रयोग नहीं हो सकता। वैसे भी इनमें ये बातें नहीं हैं कि किसी कंपनी या कपंनियों या निजी व्यक्ति/व्यक्तियों को गलत तरीके से लाभ पहंुचाने के लिए राजा एवं उनके तत्कालीन सहयोगियांे ने ऐसा किया। यह दायित्व सीबीआई का है। सीबीआई ज्यादातर बड़े मामले हारती है। ऐसा हुआ तो कांग्रेस के लिए राजनीतिक समस्या बढ़ सकती है। वैसे भी राजा की गिरतारी के बावजूद भाजपा संयुक्त संसदीय समिति की मांग को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। जाहिर है, सरकार के लिए परेशानियां कम होने वाली नहीं है। यह नहीं भूलना चाहिए कि द्रमुक मूलतः वर्तमान राजनीतिक स्थिति की विवशता में ही विद्रोही तेवर नहीं अपना रहा है। उसके सामने इस समय ज्यादा राजनीतिक विकल्प नहीं है। जे. जयललिता ने घोषणा कर रखी है कि मनमोहन सिंह सरकार राजा को गिरतार करे और यदि द्रमुक समर्थन वापस लेती है तो वह सरकार को समर्थन देने को तैयार है। द्रमुक का समर्थन वापस करना उसकी तमिलनाडु सरकार के पतन का कारण बन सकता है, पर केन्द्र की सरकार तत्काल नहीं जाएगाी। यहां उसने समर्थन वापस लिया तो वहां कांग्रेस ऐसा कर सकती है। इसलिए द्रमुक के लिए मन मसोसकर ही सही अभी राजा की गिरतारी को स्वीकार कर राजनीतिक यथास्थिति बनाए रखने के अलावा कोई चारा नहीं है। लेकिन ऐसा ही वह आगे भी करेगी इसकी गारंटी नहीं है। (संवाद)
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राजा की गिरतारी के राजनीतिक निहितार्थ
कब तक चुप रहेगा डीएमके?
अवधेश कुमार - 2011-02-08 19:46
पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा जेल पहुंच गए। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उनकी भूमिका थी या नहीं, थी तो कितनी थी इसका निर्णय तो अदालत करेगी, लेकिन यह किसी दृष्टि से एक सामान्य घटना नहीं है। एक पूर्व मंत्री को उसकी सरकार द्वारा ही गिरतार करना अपने-आपमें इतिहास है। 2 फरबरी को इतिहास का वह काला अध्याय लिखा ही गया जब राजा, उनके निजी सचिव रहे आर. के. चंदोलिया और पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहरा को गिरतार किया गया।