दोनों नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबे चौड़े और चिकने चापड़े बयान दे रहे हैं। सोनिया गांधी कह रही हैं कि भ्रष्टाचार के मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुलटाया जाना चाहिए, तो प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार के कारण सुशासन प्रभावित होता है। वे दोनों नेता भूल रहे हैं कि देश की जनता उनसे इस तरह की बयानबाजी नहीं चाहती।
एक समय था, जब नेता अच्छी अच्छी बातें करके लोगों की तालियां बटोर लेते थे। गंभीर मसलों पर बयानबाजी करके अपने कर्तव्य को पूरा मान लेते थें जनता उनकी बातें सुनकर चुप हो जाती थी। और फिर दोनों ओर से बातें भुला दी जाती थीं। पर अब स्थिति बदल गया है। मीडिया का विस्तार हो गया है। मध्य वर्ग का भी काफी विस्तार हो गया है। मध्य वर्ग अब पहले की अपेक्षा ज्यादा जागरूक है और मीडिया उसकी जागरुकता को और भी बढ़ाने का काम करता है।
भ्रष्टाचार के मसले पर भी यही हो रहा है। लोग कार्रवाई चाहतें हैं। मीडिया में एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार की खबरें आ रही हैं। इस तरह के मामलों का एक समाप्त नहीं होने वाली श्रृंखला बन गई है। और उस श्रृंखला की कड़ियां बढ़ती जा रही हैं। लेकिन प्रधानमंत्री इस मामले को ठीक उसी तरह ले रहे हैं, जजिस तरह से पहले के राजनेता लिया करते थे। वे सोचते हैं कि अपनी तरफ से भी भ्रष्टाचार के खिलाफ भाषणबाजी करके लोगों की नजर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा की छवि बना लेंगे।
पर अब ऐसी बात नहीं है। प्रधानमंत्री खुद भले इमानदार हों, लेकिन उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के इतने सारे मामले आ गए हैं कि उनकी अपनी खुद की छवि उनकी सरकार पर लग रहे कलंक को नहीं धो सकती। उल्टे, अब उनकी अपनी छवि खराब हो रही है। इसलिए अधिकारियों की बैठक को संबोधित करते हुए यह कहने से काम नहीं चलेगा कि भ्रष्टाचार हमारी छवि खराब कर रहा है और अपने ही लोगों की नजरो में हमें नीचे गिरा है। इस तरह की उनकी बयानबाजी को लोग उनके भाषण लेखक का चमत्कारी लेख मानेंगे, न कि इससे उन्हें प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार के खिलाफ किया संकल्पशक्ति का अहसास होगा।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भाषण को ही लीजिए। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या क्या नहीं कहा। भ्रष्टाचार के मामलो के शीघ्र निबटारें के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन की बात भी कर दी, लेकिन उसके लिए अभी तक सरकार ने कुछ किया ही नहीं। जब सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ कर ही नहीं रही है, तो फिर उसके खिलाफ दिए जा रहे लच्छेदार भाषणों पर कोई क्यों विश्वास करेंगा? विश्वास करना तो दूर, उस तरह की बयानबाजी लोगों को चुभने लगती है। और आज यही हो रहा है। प्रधानमंत्री अथवा सोनिया गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ जितना बोलेंगे, लोगों के बीच अपने खिलाफ उतना ही ज्यादा माहौल बना लेंगे। इसका कारण साफ है। लोग उनसे कार्रवाई की उम्मीद करते हैं भाषणबाजी की नहीं।
पर कार्रवाई के मोर्चे पर सरकार फिसड्डी साबित हो रही है। ए राजा की गिर्फतारी भी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण करनी पड़ी है। सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट में बताना है कि उसने 2 जी स्पेक्ट्रम मसले पर क्या कार्रवाई की। लिहाजा उसे कार्रवाई करनी पड़ रही है और कार्रवाई में उसकी तरफ से की जा रही देरी से उसकी और सरकार की विश्वसनीयता का लोप होता जा रहा है। (संवाद)
भारत
भ्रष्टाचार बन गया है सबसे बड़ा मुद्दा
केन्द्र सरकार की कार्रवाई नाकाफी
अमूल्य गांगुली - 2011-02-09 13:11
लगता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार के मसले की गंभीरता का अहसास करने में धोखा खा रहे हैं। यह आज देश के सामने बहुत बड़ा मसला बना हुआ है और देश की जनता भ्रष्टाचार के मामलों पर ऐसी ठोस कार्रवाई चाहती है, जो उन्हें दिखाई भी पड़े। पर प्रधानमंत्री इस मसले पर भाषणबाजी के अलावा और कुछ भी करते दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। यही हाल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का है।