मुरली के कांग्रेस में शामिल किए जाने की घोषणा अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की महासचिव मोहसिना किदवई ने दिल्ली में की। उस घोषणा के पहले प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रमेश चेनिनथला और केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता ओमन चंडी ने सोनिया गांधी से मिलकर मुरली को कांग्रेस में लेने की अपील की थी।

यह मुरलीधरन की कांग्रेस में फिर से वापसी है। 2005 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पार्टी से निकाल दिया गया था। मुरली की फिर से कांग्रेस में वापसी से यूडीएफ की सत्ता में वापसी का दावा और भी मजबूत हो जाएगा। गौरतलब है कि आगामी मई महीने में विधानसभा के आम चुनाव होने हैं।

करुणाकरण के बेटे का मालाबार क्षेत्र में बड़ा जनाधार है। मालाबार के कोझिकोडे और पड़ोसी बयानाद जिले में उन्हें अच्छा जनसमर्थन मिलता है। राज्य की राजधानी तिरुअनंदपुरम में भी उनके समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है।

पिछले अक्टूबर महीने में जब स्थानीय निकायों के चुनाव हो रहे थे, तो उस समय मुरली ने कांग्रेस में नहीं होते हुए भी उसे समर्थन किया था। उस समर्थन से कांग्रेस को फायदा हुआ था। अनेक जगह कांग्रेस के प्रत्याशी जीते थे और कुछ इलाकों में हारने के बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवारांे ने सत्तारूढ़ मोर्चे के उम्मीदवारों को कांटे की टक्कर दी थी।

कांग्रेस में गुटबाजी आम बात है। देखना दिलचस्प होगा कि मुरली के कांग्रेस में वापस आने के बाद यह गुटबाजी कौन सा रंग लेती है। कांग्रेस के अंदर करुणाकरण के समर्थकों का एक गुट पहले से ही सक्रिय है। कहने की जरूरत नहीं कि अब मुरली उस गुट के नेता बन जाएंगे।

लेकिन संकेत है कि कुछ समय के लिए मुरली शांत ही रहेंगे। उन्होंने औपचारिक रूप से घोषणा कर रखी है कि वे कांग्रेस के एक अनुशासित कार्यकर्त्ता के रूप में पार्टी के लिए काम करते रहेंगे और पार्टी उन्हें जो भी काम और जिम्मेदारी देगी, उनका वे ईमानदारी से पालन करेंगे। वे चुनाव लड़ेंगे अथवा नहीं, यह सवाल पूछने पर वे कहते हैं कि इसके बारे में स्थानीय और राष्ट्रीय नेताओं को फैसला करना है।

चूंकि वे कभी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी थे, इसलिए उनका प्रदेश कांग्रेस कमिटी का सदस्य बनना तय है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल शानदार रहा था और उनके विरोधी तक उन्हें इसके लिए प्रशंसा करते हैं।

मुरली कांग्रेस में वापस लौटें, यह करुणाकरण की अंतिम इच्छा थी। पार्टी के लिए यह और भी अच्छा होता, यदि करुणाकरण के जीवन काल में ही मुरली कांग्रेस में ले लिए जाते। पर वैसा नहीं हो सका, क्योंकि कांग्रेस के कुछ प्रदेश स्तरीय नेताओं को डर लग रहा था कि मुरली के कांग्रेस में आने से उनकी अपनी स्थिति प्रभावित हो सकती है। समय के साथ उनकी कांग्रेस में वापसी का विरोध कमजोर होता चला गया और मुरली 20 महीने तक धैर्य के साथ कांग्रेस में वापसी की प्रतीक्षा करते रहे।

अब जब उनकी कांग्रेस में वापसी हो गई है, कांग्रेस के अंदर उत्सव का माहौल बन गया है। (संवाद)