इससे पता चलता है कि केन्द्र सरकार को अपनी छवि की चिंता ही नहीं है। आज मनमोहन सिंह की सरकार को अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार के रूप में मानने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। बिहार चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति के लिए भी राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े भ्रष्टाचार की खबरों का हाथ रहा है। पिछले दिनों हुए पांच उपचुनावों मे कांग्रेस के उम्मीदवारों की हार हुई। उनकी हार के लिए भी कांग्रेस पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप जिम्मेदार रहे हैं। राहुल गांधी का कांग्रेस को मजबूत करने का अभियान कमजोर पड़ गया है। इसका कारण भी भ्रष्टाचार है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत बनाने की जेहाद राहुल ने छेड़ रखी है। इसके लिए एक चेतना यात्रा वहां निकाली जा रही थी, जिसे राज्य के सभी विधानसभा क्षेत्रों से गुजरना था, पर राष्ट्रमंडल खेलों के शुरू होने के ठीक पहले जब भ्रष्टाचार की खबरें आने लगीं, तो राहुल की चेतना यात्रा भी कमजोर पड़ने लगी। कुछ लोग तो कहते हैं कि राहुल की चेतना यात्रा पूरी हुई ही नहीं। उस यात्रा के समाप्त होने के बाद एक बड़ी रैली का आयोजन दिसंबर के आखिरी सप्ताह में होना था। लेकिन उसका आयोजन भी नहीं हो सका, क्योंकि भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण लोग कांग्रेस से जुड़ना पसंद नहीं कर रहे थे और उत्तर प्रदेश कांग्रेस एक फ्लॉप रैली के लिए तैयार नहीं हो सकी। दिसंबर के तीसरे सप्ताह में ही उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनावों के तहत प्रखंड प्रमुखों और जिला परिषद के अध्यक्षों के चुनाव हुए। उन चुनावों में भी कांग्रेस का सूफड़ा साफ दिखाई पड़ा। बाद के चरणों के चुनावों में तो कांग्रेस ने भाग ही नहीं लिया।
यानी जमीन स्तर पर कांग्रेस की हालत आज इतना ज्यादा बदतर है कि कांग्रेस किसी तरह का कोई राजनैतिक अभियान शुरू करने की हालत में नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार के आ रहे एक से एक बड़ मामले और उन मामलों पर सरकार की प्रतिक्रिया है। महंगाई भ्रष्टाचार की खबरों की जलन को और बढ़ा देती है। पर सरकार और कांग्रेस का जो रवैया है, उससे लोगों के बीच उसकी छवि और भी खराब हो रही है। ऐसी स्थिति में सरकार को वह सबकुछ करना चाहिए, जिससे उसकी खराब हो रही छवि में कुछ सुधार हो।
इसके लिए भ्रष्टाचार की जेपीसी जांच के लिए सहमत होना पहला कदम होना चाहिए था। सरकार ने जेपीसी के लिए हामी भी भर दी है, लेकिन उसकी इस सहमति में भी भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी चिंता नहीं दिखाई पड़ती है, बल्कि विपक्ष का विरोध दिखाई पड़ता है। सरकार ने जेपीसी के गठन पर अपनी सहमति तो दी है, लेकिन वह सिर्फ 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच तक सीमित है। घोटाला सिर्फ 2जी स्पेक्ट्रम तक सीमित नहीं है। जिस घोटाले ने बिहार चुनाव के समय देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खराब कर दी थी, वह घोटाला राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ा हुआ था। बिहार में कांग्रेस के सफाए का एक कारण उस घोटाले की खबरें भी थीं, पर सरकार ने उस घोटाले पर जेपीसी का गठन जरूरी नहीं समझा है, जो उचित नहीं हैं
सच कहा जाए तो जेपीसी जांच के लिए राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटाले को पहले शामिल किया जाना चाहिए था। इन खेलों में हुए घोटाले बहुआयामी हैं और अब तक सीबीआई व अन्य एजेंसियो द्वारा इनकी जो जांच चल रही है, वह अत्यत ही नाकाफी है। घोटाला सिर्फ इसके आयोजन में नहीं हुआ है, बल्कि उसकी तैयारियों से जुड़ी सारी परियोजनाओं में हुआ है। दिल्ली को सुंदर बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपए खर्च हुए। स्टेथ्डयम के निर्माण में भी हजारों करोड़ रुपए खर्च हुए। खेल गांव के निर्माण में भी हजारों करोड़ रुपए खर्च हुए। लेकिन उन परियोजनाओं की जांच होती दिखाई नहीं दे रही है। सीबीआई का जोर सिर्फ आयोजन समिति के कामों तक ही सीमित है।
इसमें कोई शक नहीं कि आयोजन समिति ने भी भारी पैमाने पर भ्रष्टाचार किया, लेकिन भ्रष्टाचार का सारा ठीकरा आयोजन समिति और उसके अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर फोड़कर अन्य सभी अपराधियों की करतूतों पर पर्दा डाले रखना उचित नहीं होगा। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान नीति के स्तर पर भी भ्रष्टाचार हुए। नीतिगत भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई कर भी नहीं सकती। इस तरह की जांच जंेपीसी से ही संभव है, लेकिन केन्द्र सरकार इस पर जेपीसी की जांच के लिए तैयार ही नहीं है। विपक्ष भी 2 जी स्पेक्ट्रम पर जेपीसी के लिए सरकार के तैयार होने के बाद चुप दिखाई पड़ रहा है, लेकिन इस मसले पर यदि संसद में अहस होती है और सीबीआई जांच की सीमाएं सामने आती हैं, तो शायद विपक्ष इस मसले की भी जेपीसी जांच के लिए दबाव बनाए।
राष्ट्रमंडल खेलों से पहले आइपीएल घोटाले ने भी देश के मानस को झिंझोड़ा था। उसमें भी बहुत तरह की अनियमितताओं की बातें सामने आई थी। शुरूआत ललित मोदी और शशि थरूर के झगड़े से हुई थी। उसके कारण शशि थरूर को विदेश मंत्रालय का अपना पद गंवाना पड़ा था और ललित मोदी को आइपीएल के कमिशनर का पद, लेकिन उन दोनों के अलावा और किसी का कुछ नही हुआ। यह माना जा रहा था कि आइपीएल के द्वारा भारतीय विदेशों में जमा अपने काले धन को भारत ला रहे हैं। इस तरह से आइपीएल आर्थिक अपराधियों का खेल नजर आ रहा था। आयकर विभाग और इन्फोर्समंेट डायरेक्टोरेट ने एक के बाद एक छापे मारे थे और लग रहा था कि बड़ी बड़ी मछलियां उनके जाल में फंसने वाली है, लेकिन हुआ कुछ नहीं। किसी को कुछ भी नहीं पता कि उन छापों का क्या हुआ। शरद पवार और प्रफुल पटेल भी आपीएल घोटाले की जद में आते दिखाई पड़े थे, लेकिन उन पर लगे आरोपों का क्या हुआ, इसके बारे में कुछ भी नहीं पता।
कोच्चि टीम के मालिकों में से एक के खाते जर्मनी के एक बैंक में पाए गए हैं। केन्द्र सरकार के पास उसकी सूचना है और उसका नाम भी एक साप्ताहिक अखबार ने प्रकाशित कर दिया है। यानी विदेशों में जमा काले धन और आइपीएल के बीच संबंधों का पता सरकार को भी है, पर उसमें आगे कोई कार्रवाई नहीं किया जाना मनमोहन सरकार की छवि को खराब करने का एक अन्य कारण है। सच तो यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले के अलावा आइपीएल घोटाले पर भी जेपीसी का गठन किया जाना चाहिए। (संवाद)
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जेपीसी का गठन 2 जी घोटाले पर ही क्यों?
राष्ट्रमंडल खेल और आइपीएल की भी हो संसदीय जांच
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-02-24 12:07
केन्द्र सरकार आखिरकार 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए जेपीसी के गठन पर सहमत हो गई है। यह निश्चय ही देरी से लिया गया निर्णय है। यदि सरकार ने इसका निर्णय पहले ही ले लिया होता तो पूरा का पूरा शीतकालीन सत्र बर्बाद नहीं जाता। जेपीसी के गठन पर सहमति के पीछे जो कारण प्रधानमंत्री ने बताए हैं, वह भले ही भाजपा नेता अरूण जेटली को बुरा लगे, लेकिन सच यही है कि मौजूदा बजट सत्र को सुचारु रूप चलाने के लिए ही केन्द्र सरकार जेपीसी के लिए तैयार हुई है।