बाबा रामदेव को लालू ने क्या क्या नहीं कहा। उन्होंने कहा कि दूध बेचने वाला आदमी अब दवाई बेच रहा है। लालू को पता है कि न तो दूध बेचना कोई आपराधिक अथवा अनैतिक काम है न ही दवा बेचना। एक जमाने में लालू कहते थे कि वे भैस की पीठ पर बैठा करते थे। वे लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता को चुनौती देते थे कि उनकी तरह वे गाय या भैंस का दूध दुहकर दिखा दें। खुद की पहचान दूध बेचने वालों से करवाने मं लालू कभी संकोच नहीं करते थे। तो फिर आज उन्हें बाबा रामदेव के कभी दूध बेचने वाला होने से क्यों एतराज हो रहा है?

अथवा वे इसलिए परेशान हो रहे हैं कि बाबा दूध बेचते बेचते दवा क्यों बेचने लगे? लालू को पता है कि दूध बेचने की तरह दवा बेचना भी कोई गलत काम नहीं है। वे न तो अनैतिक काम है और न ही आपराधिक, फिर भी लालू दुनिया को यह बताना चाह रहे हैं कि दूध बेचने वाला बाबा अब दवा बेच रहे हैं। आखिर क्यों? इसका जवाब जानने के लिए लालू की राजनीति को समझना होगा। वे जाति की राजनीति करते हैं और जाति की राजनीति में कहीं न कहीं बाबा रामदेच को अपना प्रतिद्वंद्वी समझते हैं। आज बिहार मे बाबा रामदेच अपनी सभा में जितनी बड़ी भीड़ जाम कर सकते हैं, उतनी बड़ी समा लालू नहीं कर सकते। वे पिछले 4 आमचुनावों में हार का सामना कर चुके हैं। प्रत्येक चुनाव के बाद उनकी हालत पतली होती जा रही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में एक क्षेत्र से वे खुद अपना चुनाव हार गए थे। दूसरे क्षेत्र से वे चुनाव इसलिए जीते कि भाजपा का उनका मुख्य प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार उस क्षेत्र में बहुत ही अलोकप्रिय था। यदि भाजपा ने किसी और को वहां से अपना उम्मीदवार बना दिया होता, तो लालू वहां से भी हारते।

पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी राबड़ी देवी दोनों विधानसभा क्षेत्रों से हार गई। उनकी हार कोई कम मतों से नहीं हुई थी। एक सीट से 13 हजार मतों से तो दूसरी सीट से 21 हजार मतों से वह हारी थी। लालू की पार्टी को अपने बूते इतनी सीटें भी नहीं मिली थीं कि उनकी पार्टी का विधायक दल नेता विपक्ष के नेता की कुर्सी पा सके। सहयोगी पार्टी के विधायकों के सहयोग से उनकी पार्टी के विधायक दल के नेता को बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद मिल सका है। यानी लालू की बिहार में राजनैतिक हालत बहुत ही बदतर है। एक समय था कि वे अपनी पार्टी से टिकट देकर वे किसी को भी चुनाव जितवा सकते थे, पर अब खुद उनकी अपनी जीत के लाले पड़े हुए हैं। एक समय था, जब वे राज्य के पिछड़े वर्गो के लोगों के मसीहा कहे जाते थे, लेकिन अब उनकी अपील अपनी खुद की जाति तक ही सीमित हो गई है।

और बाबा रामदेव से लालू इसीलिए डरे हुए हैं। वे बिहार की राजनीति में फिर से अपने को प्रासंगिक कर सकें, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें उनकी जाति के लोगों का समर्थन मिलता रहे, लेकिन उनका वह समर्थक आधार भी अब खतरे में पड़ रहा है और उसकी वजह है बाबा रामदेव का देश की राजनीति में आने की घोषणा करना। बाबा कह रहे हैं कि 2014 में होने वाले चुनाव में उनकी पार्टी देश की सभी लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ेगी। यानी बिहार में भी उनकी पार्टी चुनाव लड़ेगी। 2014 के लोकसभा चुनाव में लालू अपनी राजनीति को जिंदा करने की कोशिश करेंगे। लेकिन बाबा रामदेव के उम्मीदवारों के कारण उनका काम कठिन हो जाएगा। एक तो बाबा रामदेव भ्रष्टाचार को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाएंगे, जो लालू को ज्यादा ही खलेगा, क्योकि चारा घोटाला के आरोप उनपर इस तरह से चिपक गया है कि अदालतों से मिली रिहाई के बावजूद वह उससे मुक्त नहीं हो पाएंगे। दूसरा कारण यह है कि लालू के दुर्भाग्य से बाबा रामदेच भी उन्हीं की जाति के हैं। उनका कद उनसे अब बहुत बड़ा हो गया है। रामदेव के सामने लालू खुद को बौना महसूस करते होंगे। इसलिए उन्हें डर लग रहा होगा कि बाबा के कारण बिहार के चुनाव में कहीं उनके पास बचा एक मात्र आधार भी उनसे अलग न हो जाए।

पर सवाल उठता है कि बाबा रामदेव पर इस तरह हमला करने के लिए उन्होंने यही समय क्यों चुना? तो इसका भी एक कारण है। इस समय बाबा रामदेव कांग्रेस से उलझें हुए हैं। रामदेव के खिलाफ बोलकर लालू 2014 के लोकसभा चुनाव की ही चिंता नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे कांग्रेस को भी खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस से वे बिहार के विधानसभा चुनाव में भी समझौता करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस उसके लिए तैयार नहीं हुई। चुनाव में हार के बाद भी वे कांग्रेस से किसी न किसी प्रकार से बेहतर संबंध बनाना चाहते हैं। वे यूपीए सरकार में शामिल होना चाहेंगे। 4 लोकसभा सदस्यों के बल पर वे खुद एक मंत्रालय तो ले ही सकते हैं, पर मंत्रालय से भी बड़ा कारण उनके खिलाफ चल रहा चारा धोटाले का मुकदमा है। न्यायिक प्रक्रिया का इस्तेमाल करके वे अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे की गति को बहुत ही सुस्त करने में सफल रहे हैं, लेकिन अब लगता है कि मुकदमे की गति कुछ तेज होगी। वैसी स्थिति में उन्हे सीबीआई के सहयोग की जरूरत होगी। और उसके लिए उनका कांग्रेस से बेहतर रिश्ता होना जरूरी है। बाबा रामदेव ने उन्हें कांग्रेस से संबंध सुधारने का मौका दिया है और इस मौके का इस्तेमाल वे कर रहे हैं।

बाबा रामदेव के ऊपर लालू ने अपनी शैली में हमला बोल दिया है। उनके इस हमले से भले कांग्रेस के लोग खुश हों, लेकिन उनका पूर्व या वर्तमान जनाधार इससे नाखुश ही होगा। बाबा रामदेव अपने को योग गुरू कहते हैं। वे योग गुरू हें भी। लेकिन योग करने या कराने वाले लोगों को राजनीति में नहीं आना चाहिए, यह किस किताब में लिखा हुआ है? (संवाद)