पर राहुल की राजनीति पर जो नजर रखे हुए हैं, उनके लिए कांग्रेस का यह रुख आश्चर्यजनक नहीं। दरअसल राहुल की राजनीति कांग्रेस को सभी राज्यों मंे अकेले चलने और चलाने की है। इसी राजनीति के तहत पार्टी ने बिहार में किसी पार्टी के साथ कोई समझौता नहीं किया था।
राहुल ही इस राजनीति पर यदि कांग्रेस पूरी तरह चलनहीं पा रही है तो उसका कारण है केन्द्र की सरकार। केन्द्र की सरकार का नेत््त्व कांग्रेस कर रही है और वह अपने अस्तित्व के लिए कुछ क्षेत्रीय दलों पर निर्भर है। इसी निर्भरता के कारण उसे तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता करना पड़ रहा है।
लेकिन राहुल की राजनीति का यह असर पड़ा है कि कांग्रेस सीटों के बंटवारे के मामले में ज्यादा कठोरता के साथ सौदेबाजी कर सकती है। केन्द्र में भले ही सरकार बचाने की जिम्मेदारी कांग्रेस की है, लेकिन राज्यों मे जहां कांग्रेस को गठबंधन में एक जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाना है वहां अब गठबंधन को बचाने की जिम्मेदारी उस पार्टी की है, जिसे मुख्यमंत्री बने रहना है अथवा जिसे मुख्यमंत्री बनना है।
यही कारण है कि कांग्रेस ने तमिलनाडु में बहुत ही कड़ा रुख अख्तियार कर लिया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि की शिकायत थी कि कांग्रेस सीटों की मांग बढ़ाकर उसे यूपीए से बाहर करना चाहती है। यह उनकी अपनी समझ होगी, लेकिन इतना तो तय है कि यदि कांग्रेस वहां डीएमके के जूनियर पार्टनर के रूप में नहीं लड़ती, तो इससे राहुल गांधी ज्यादा खुश होते।
वैसे भी पीएमके ने कुछ समय पहले कांग्रेस को तमिलनाडु में तीसरा मोर्चा बनाकर उसका नेत्तव करने को कहा था। तीसरे मोर्चे में पीएमके के अलावा विजयकांत की पार्टी डीएमडीके भी आ जाती। राहुल गांधी को यह प्रस्ताव भाया भी था, लेकिन केन्द्र सरकार के चलने की विवशता के कारण इस पर कांग्रेस आगे नहीं बढ़ी।
भ्रष्टाचार के लग रहे आरोपों के बीच करुणानिधि की छवि निश्चय रूप से खराब हुई है और इसका असर चुनावों के दौरान डीएमके के उम्मीदवारों पर निश्चय रूप से पड़ेगा। यदि 5 फीसदी मतदाता भी भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण डीएमके का साथ छोड़कर विरोधी जयललिता के खेमे की ओर चले जाते हैं, तो फिर डीएमके की सरकार का वापस आना असंभव हो जाएगा। राज्य में कांग्रेस के पास करीब 8 फीसदी मत हैं। इन्हीं मतों के द्वारा वह कभी डीएमके और कभी अन्ना डीएमके को जिताती रही है। यदि डीएमके के साथ कांग्रेस का साथ छूट जाता, तो भले ही कांग्रेस की बिहार जैसी करारी हार होती, पर डीएमके का सूफड़ा भी वहा साफ हो जाता। कांग्रेस के पास खोने के लिए वहां कुछ था भी नहीं, पर करुणानिधि को खोने की लिए वहां अपनी सरकार है। यही कारण है कि उन्हें कांग्रेस के आगे झुकना पड़ा और उसकी शर्ते माननी पड़ी।
कांग्रेस पश्चिम बंगाल में भी सीटों के बंटवारे की बातचीत कर रही है। यदि वह तमिलनाडु में कमजोर पड़ जाती, तो फिर पश्चिम बंगाल मे ममता बनर्जी उस पर हावी हो जाती। कांग्रेस के लिए तमिलनाडु से ज्यादा महत्वपूर्ण पश्चिम बंगाल है। वहां उसे सफलता मिलती साफ दिखई पड़ रही है, जबकि तमिलनाडु में अनिश्चय का माहौल है। पश्चिम बंगाल में वह चुनाव के बाद सत्ता में भागीदारी करना चाहेगी और इसके लिए यह जरूरी है कि ममता बनर्जी की पाटी्र अपने बहुमत के लिए कांग्रेस पर निर्भर रहे। और इसके लिए जरूरी है कि कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े। यदि डीएमके को यूपीए से बाहर जाने से रोकने के लिए कांग्रेस 60 सीटों पर ही तैयार हो जाती, तो ममता बनर्जी के सामने भी वह कमजोर हो जाती।
यही कारण है कि सोनिया गांधी ने डीएमके को यूपीए से बाहर जाने से रोकने के लिए किसी समझौते का सहारा नहीं लिया। वैसे भी केन्द्र सरकार के सामने कोई बड़ा संकट नहीं दिखाई दे रहा था, क्योंकि मुलायम सिंह यादव अपने 22 सांसदों के साथ यूपीए में शामिल होने के लिए कब से बेचैन हैं और मुलायम को केन्द्र में सत्ता में आने से रोकने के लिए बसपा अपने 21 सांसदों के साथ यूपीए को बिना शर्त समर्थन देने के लिए तैयार है। उधर जद(यू) के दर्जन भर सांसदों के खिलाफ नीतीश अनुशासनात्मक कार्रवाई करना चाहते हैं। अनुशासन की कार्रवाई का सामना कर रहे सदस्यों की संख्या इतनी है कि यदि वे मिलकर अलग पार्टी बना लें, तो उनपर दल बदल कानून के तहत अयोग्य ठहराने की कार्रवाई भी नहीं हो सकती। वे अलग होकर मनमोहन सिंह सरकार को बचाने का काम भी कर सकते हैं। यानी केन्द्र सरकार को कोई खतरा नहीं महसूस हुआ और करुणानिधि को फजीहत का सामना करना पड़ा। (संवाद)
भारत
करुणानिधि पर कांग्रेस का वार
राहुल की राजनीति की विजय
उपेन्द्र प्रसाद - 2011-03-09 10:35
नई दिल्लीः तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि को सीट बंटवारे के मसले पर कांग्रेस के हाथों भारी फजीहत का सामना करना पड़ा है। बिहार में मिली करारी हार के बाद बहुत कम लोगों को उम्मीद थी कि कांग्रेस तमिलनाडु में इस तरह का कठोर रुख अपनाएगी।