हालांकि इसके बारे में पता लगने में कुछ समय लगेगा, लेकिन सीपीएम के अंदर उन्हंे फिर से चुनाव लड़ाने पर भारी विरोध हो रहा है। इसका कारण यह है कि उनके काम करने के तरीके से सीपीएम के अनेक नेता और कार्यकर्त्ता संतुष्ट नहीं हैं।
इसका संकेत सीपीएम के महासचिव प्रकाश करात ने उस दिन दिया, जब वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की उम्मीदवारी की घोषणा कर रहे थे। उस समय उनसे पूछा गया था कि क्या केरल के मुख्यमंत्री भी चुनाव लड़ेंगे, तो उनका कहना था कि इसके बारे में निर्णय केरल सीपीएम को करना है।
सवाल उठता है कि जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने की घोषणा यदि राष्ट्रीय महासचिव कर रहा हो, तो फिर केरल के मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने की घोषणा केरल की राज्य ईकाई क्यों करेगी? राजनैतिक पंडितों का मानना है कि महासचिव ने केरल मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने का फैसला राज्य ईकाई पर छोड़कर राज्य की पार्टी में गुटों की लड़ाई का माहौल बना दिया है।
बात वहीं समाप्त नहीं हो जाती है। जब राज्य ईकाई के पास मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने अथवा न लड़ने का मसला आया, तो उसने जिला ईकाई पर इसका जिम्मा दे डाला। यानी अब जिम्मा अलापुज्झा जिला ईकाई को करना है, जो मुख्यमंत्री का गुह जिला है। यह सभी को पता है कि इस जिले की ईकाई में राज्य सचिव पी विजयन के समर्थक भरे पड़े हैं। गौरतलब है कि उस जिले की ईकाई ने उम्मीदवारों की सूची में मुख्यमंत्री के नाम को शामिल नहीं किया है। हां, कासरगढ़ जिला ईकाई ने अपनी सूची में मुख्यमंत्री का नाम जरूर रखा है। कसरगढ़ जिला समिति द्वारा मुख्यमंत्री को उम्मीदवार बनाने की अनुशंसा करने के बाद अभी संशय बना हुआ है कि उस पर आगे क्या निर्णय होता है।
अधिकांश जिला समितियां मुख्यमंत्री को उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ दिखाई पड़ रही है। जाहिर है जिला ईकाइयों के बाद मामला राज्य ईकाई के पास आएगा ओर राज्य ईकाई में तो मुख्यमंत्री विरोधियों की भरमार है। जाहिर है, यदि अच्युतानंदन को टिकट मिलता भी है, तो वह राज्य ईकाई की कृपा से दिया जाने वाला टिकट होगा।
यदि अच्युतानंदन का टिकट काट दिया गया, तो यह पार्टी की ओर से की गई एक भारी गलती होगी। इसी तरह की गलती 2006 में की गई थी। उस समय पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने हस्तक्षेप किया था और उसके बाद ही वीएस को पार्टी का टिकट मिला था। इस बार केन्द्रीय नेतृत्व ने पहले ही यह मसला राज्य ईकाई के हवाले कर दिया है, इसलिए अब मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी पर संदेह पैदा हो गया है।
राज्य ईकाई इसे पसंद करे या नापसंद, पर सच्चाई यही है कि पिछले दो महीने में घटी कुछ घटनाओं ने मुख्यमंत्री की लोकप्रियता बढ़ा दी है। इस बीच राज्य का विपक्षी मोर्चा कुछ झटके खाने के बाद अपनी पीछ सहला रहा है। एक झटका तो इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के महासचिव पी के कुन्हालिकुट्टी स ताल्लुकात रखता है। उनके खिलाफ 1997 में एक सेक्स स्कैंडल का मसला उभरा था। उस मसले से संबंधित कुछ नए तथ्य सामने आए हैं। उसके कारण कुन्हालिकुट्टी के दोस्त उनसे अलग होने लगे हैं। गौरतलब है कि लीग मोर्चे का दूसरा सबसे बड़ा घटक है। उसको होने वाला नुकसान विपक्षी मोर्चे का नुकसान है।
उसके बाद पूर्व मंत्री पी बालाकृष्णा पिल्लै के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया। उसमें श्री पिल्लै को एक साल की सजा सुनाई गई है। यह सजा भ्रष्टाचार के एक मामले से संबंध रखती है। उनको मिली यह सजा वीएस अच्युतानंदन की निजी जीत मानी जा रही है, क्योंकि पिछले दो दशक से वे इस केस के पीछे पड़े हुए थे। इस फैसले के बाद मुख्यमंत्री की छवि भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध करने वाले एक योद्धा की बनी है।
जाहिर है, ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री को टिकट से वंचित कर देना पार्टी के लिए एक बड़ा झटका होगा। यह एक आत्मघाती कदम होगा, क्योंकि पार्टी पिछले कुझ समय से एक के बाद एक हार का सामना कर रही है। (संवाद)
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अच्युतानंदन का चुनाव लड़ना अनिश्चित
क्या सीपीएम 2006 की गलती को फिर दुहराएगी?
पी श्रीकुमारन - 2011-03-14 11:10
तिरुअनंतपुरमः क्या केरल सीपीएम मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन को विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत देगी? यह एक ऐसा सवाल है, जो न सिर्फ सीपीएम कार्यकर्त्ताओं के दिमाग में घूम रहा है, बल्कि राज्य की जनता भी इस पर अटकलबाजी कर रही है।