देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 9 फीसदी तक पहुच चुकी थी और दहाई अंक को छूने के लिए वह आतुर हो रही थी कि उसी समय दुनिया में आर्थिक संकट छाने लगा। वह संकट अमेरिका में शुरू हुआ था और अपने आगोश में पूरी दुनिया को ले रहा था। भारत भी उससे बच नहीं सकता था, इसके बावजूद भारत उस संकट को किसी तरह बर्दाश्त कर गया और अब तो संकट के पहले वाले आर्थिक हालात हमारे सामने पैदा हो गए हैं। जाहिर है हम अब विकास की दर को और तेज कर सकते हैं।

पिछले एक दशक से भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाला देश बना हुआ है। इस बजट में विकास की गति को और भी तेज करने वाले कदम वित्त मंत्री ने उठाए हैं, जहिर है इससे विकास और भी तेज होगा और आश्चर्य नहीं, यदि भारत आने वाले एक दो वर्षों में ही दुनिया की सबसे तेज गति से विकास करने वाला देश बन जाए। यदि हम कहें कि पिछले दिनों पेश किए गए बजट का पहला प्रभाव हमारे देश के तेज विकास के रूप में सामने आएगा, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

पर विकास का माहौल अपने आप नहीं बनता है। इसके लिए सरकार कोशिश कर रही है, और उसकी कोशिश श्री मुखर्जी द्वारा पेश किए गए ताजा बजट में भी है। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में यह महसूस किया है कि कृषि में विकास दर को तेज करना और उसकी तेजी को बनाए रखना जरूरी है। ताजा वित्तीय वर्ष में कृषि उत्पादन की विकास दर साढ़े 5 फीसदी हुई है, इसके बावजूद अनाजों में महंगाई का माहौल बना रहा। साढ़े 5 फीसदी की कृषि विकास दर अपने आपमें कृषि का एक शानदार प्रदर्शन माना जाता है, लेकिन इसके बावजूद कीमतें बढ़ती हुई दिखाई दी। जाहिर है और भी तेज विकास की जरूरत है और इसके लिए इज बजट में पहली बार पूर्वी राज्यों को दूारी हरित क्रांति के लिए चिन्हित किया गया है। ये राज्य हैं, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और पूर्वी उत्तर प्रदेश। इस साल हरित क्रांति के लिए कोई ज्यादा राशि तो तय नहीं की गई है, लेकिन आने वाले दिनों में ऐसा किए जाने की प्रबल संभावना है। यदि ऐसा होता है, तो देश के पूर्वी राज्यों में कृषि विकास को नए पंख लगेंगे। यह बजट उसकी भूमिका तैयार करता है।

बजट का संबंध केन्द्र सरकार के राजकोष से है। राजकोष में क्या आएगा और कहां से आएगा और फिर कितना खर्च होगा व कैसे खर्च होगा, इसका ही मुख्य रूप से ब्यौरा होता है। हमारे देश ने राजकोष की राजस्व प्राप्ति के लिए जो व्यवस्था तैयार कर रखी थी, उसमें बदलाव की जरूरत लगातार महसूस की जाती रही है। समय समय पर बदलाव होते भी रहे हैं, लेकिन मूलभूत बदलाव के बिना उन दोषों का खात्मा नहीं हो सकता, जिनके कारण हमारी कर व्यवस्था काले धन को बनने से रोक नहीं पाती। इसके लिए केन्द्र सरकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष- दोनों करों के मोर्चे पर सुधार लाने की काशिश कर रही है। उन्हीं कोशिशों के तहत डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) और अप्रत्यक्ष करों के मोर्चे पर (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) की व्यवस्था किया जाना है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा पेश किए गए बजट में अन दोनों प्रावधानों की न केवल चर्चा की गई है, बल्कि उनको लेकर ठोस कार्रवाई आने वाले दिनों में दिखाई देगी। डायरेक्ट टैक्स कोड तो अगले साल 1 अपैल से पूरे देश में लागू भी हो जाएगा। और इसके लिए कानून इसी साल तैयार कर लिए जाएंगे। डीटीसी के कारण ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स के नेट में लाया जा सकेगा और प्रत्य़क्ष करों से की गई राजस्व उगाही में भी वृद्धि होगी। इसके कारण ईमानदार करदाताओं की यह शिकायत दूर होगी कि उनकी ईमानदारी का उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ता है और जो टैक्स अदा करने में ईमानदार नहीं हैं, वे पुरस्कृत होते हैं। इसके कारण काले धन की समस्या पर भी कुछ हद तक लगाम लगाया जा सकता है, क्योंकि काला धन हमारी कर व्यवस्था की खामियों के कारण भी बनता है। कर प्रशासन की विफलता को रोकने में यह डीटीसी कामयाब होगा।

जिस तरह से प्रत्यक्ष कर व्यवस्था मे सुधार के लिए डीटीसी को अमल में लाया जा रहा है, उसी तरह अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में जीएसटी को आजमाया जा रहा है। लेकिन यह थोड़ा जटिल मामला है, क्योकि इसमें केन्द्र के साथ राज्य सरकारो के बीच सहमति बननी चाहिए और राज्य सरकारों को केन्द्र से किसी प्रकार की शिकायत की गुंजायश नहीं छोड़नी चाहिए। जीएसटी का संबंध चूंकि केन्द्र और राज्य दोनों की सरकारों से है, इसलिए इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा। बजट भाषण करते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने साफ किया कि उससे संबंधित संविधान संशोधन का काम इसी साल पूरा कर लिया जाएगा।

इस बजट में वित्त मंत्री ने एक ऐसी घोषणा की है जिसका आने वाले दिनों में हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ने वाला है। केन्द्र सरकार ने सब्सिडी के स्वरूप को बदल कर लक्षित वर्गो तक सीघे कैश के रूप में सब्सिडी को उपलब्ध कराने की योजना बनाई है। इसके तहत रसोई गैस, किरासन तेल और उर्वरक पर दी जाने वाली सब्सिडी को सीधे कैश के रूप में देने के लिए योजना बनाई जा रही है। इस व्यवस्था को अंतिम रूप देने के लिए एक टास्क फोर्स भी गठित कर दिया गया है। सीघे कैश सब्सिडी की इस योजना का जबर्दस्त असर देखने को मिल सकता है। आने वाले दिनों में केन्द्र सरकार सभी प्रकार की अनाज सब्सिडी के बदले गरीबों को सीघे कैश सब्सिडी दे सकती है। इस तरह की मांग कुछ राज्य सरकारे पहले से ही कर रही हैं।

सरकारी कंपनियांे के शेयर बेचकर राजस्व हासिल करना हमारी केन्द्र सरकार की एक महत्वपूर्ण राजकोषीय नीति बन गई है। चालू वित्तीय वर्ष में इस तरह के विनिवेश को अच्छी सफलता मिली है। लोग सरकारी कंपनियों के शेयर खरीदने के लिए बाजार में भारी संख्या में आ रहे हैं। इसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने सरकारी कंपनियों के विनिवेश से 40 हजार करोड़ रुपए के राजस्व प्राप्त करने का लक्ष्य बनाया है। जाहिर है आने वाले दिनों में लोगों के पास सरकारी कंपनियों के शेयर खरीदने का विकल्प ज्यादा होगा। पर इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार इन कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने का मन बना रही है। अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने साफ साफ कहा कि सरकारी कंपनियों के कम से कम 51 फीसदी शेयर केन्द्र सरकार अपने हाथ में ही रखेगी। 51 फीसदी शेयर सरकार के पास होने का मतलब है उन कंपनियों का सरकारी स्वरूप बना रहना।

नई आर्थिक नीतियों के तहत केन्द्र सरकार विदेशी निवेश को ज्यादा से ज्यादा आकर्षित करने की कोशिश करती रही है। विदेशी निवेश बढ़े तो अवश्य हैं, लेकिन अभी भी यह चीन व कुछ अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। इस बार बजठ में कुछ और प्रावधान किए गए हैं जिनके करने विदेशी निवेश और विदेशी मुद्रा की अतिरिक्त प्राप्ति होने की संभावना है। उन प्रावधानों के तहत अब विदेशी संस्थागत निवेशकों को म्यूचुअल फंडों में भी निवेश करने की इजाजत मिल गई है। इसके अलावा अब विदेशी निवेशक भारत में जारी किए गए कुछ बांडों में भी निवेश कर सकते हैं। इन प्रावधानों के कारण देश में विदेशी पूंजी ज्यादा आएगी और ज्यादा पूंजी उपलब्ध रहने से आने वाले दिनों में विकास को और भी तेजी मिल सकती है। इस बजट में इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को मजबूत करने पर भी बल दिया गया है। विकास के लिए तो ज्यादा और मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए ही, विकास के साथ इसकी मांग और इस पर दबाव भी ज्यादा बढ़ जाता है। इसलिए केन्द्र सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने वाले कुछ राजकोषीय प्रावघान भी किए हैं।

इन कोशिशों का असर तो देश पर पड़ना ही है और इसके कारण अर्थव्यवस्था की विकास दर और तेज होगी। लेकिन महंगाई अभी भी समस्या बनी हुई है। कुछ तेल उत्पादक देशों में चल रही गड़बड़ियों के कारण कच्चे तेल की कीमतों का भविष्य अनिश्चित बन गया है। भारत अपनी तेल आवश्यकता को आयात के द्वारा ही पूरा करता है। जाहिर है तेल की कीमतों के बढ़ने के कारण महंगाई का खतरा बना रहेगा। (संवाद)