दोनों के बीच मतभेद उस स्तर तक पहुंचा कि पार्टी की प्रदेश ईकाई ने मुख्यमंत्री को टिकट देने से ही इनकार कर दिया। अंत में पोलित ब्यूरो को हस्तक्षेप करना पड़ा और उसके आदेश पर ही 87 वर्षीय मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव का टिकट पा सके। टिकट से वंचित किए जाने के बाद राज्य भर में पार्टी के कार्यकर्त्ताओं ने हंगामा किया और पोलित ब्यूरो को अहसास हो गया कि यदि मुख्यमंत्री को टिकट नहीं दिया गया, तो पार्टी और मोर्चे की हालत चुनाव में अत्यंत ही दयनीय हो जाएगी। इसलिए इस बार फिर 2006 को वहां दुहराया गया, हालांकि इस बीच 5 साल तक राज्य सचिव पी विजयन और मुख्यमंत्री अच्युतानंदन के बीच टकराव होते रहे हैं। उस टकराव के कारण पार्टी की छवि भी प्रभावित होती रही है।
दोनों मोर्चो के बीच युद्ध की रेखा खिंच चुकी चुकी है। चुनाव में कोई मुद्दा नहीं दिखाई पड़ रहा है। लोगों का मूड सत्तारूढ़ मोर्चा के खिलाफ दिखाई पड़ रहा है, हालांकि कांग्रेसी मोर्चे के पक्ष में भी कोई हवा नहीं है। भ्रष्टाचार एक मुद्दे के रूप में सामने आ सकता है। मुख्यमंत्री अच्युतानंदन की छवि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने वाले एक योद्धा की है। इसका लाभ सीपीएम और उसके साथी दलों को मिल सकता है।
यदि पिछले लोकसभा चुनाव को हम देखें, तो पाते हैं कि कांग्रेस सीपीएम पर भारी है। उस चुनाव में कांग्रेसी मोर्चे को सीपीएम के नेतृत्व वाले मोर्चे से 3 फीसदी ज्यादा मत मिले थे और उनकी सीटों के लिहाज से तो उसने वाममोर्चे को भारी शिकस्त दी थी। बाद में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में भी काग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे ने वाम नेतृत्व वाले मोर्चे के छक्के छुड़ा दिए थे।
यदि हम 2009 के चुनाव का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि कांग्रेसी मोर्चे को निम्न मध्यवर्ग, मध्य वर्ग और उच्च आय वर्ग के लोगों का समर्थन प्राप्त था, जबकि वाम मोर्चे का समर्थन आधार निम्न मध्य वर्ग और निम्न आय वर्ग था। जातियों के लिहाज से देखा जाए, तो इझावा और अनुसूचित जाति के लोगों के वाम नेत्त्व वाले मोर्चे का साथ दिया था, जबकि ईसाइयांें ने कांग्रेसी मोर्चे को समर्थन दिया था। इस बार भी स्थिति कुछ अलग नहीं है।
पिछले चुनावों के बाद विधानसभा सीटों का परिसीमन भी हुआ है। परिसीमन के कारण भी दोनों मोर्चो के गणित जहां तहां बिगड़ सकते हैं। इसके बावजूद कुछ कांग्रेसी नेताओं को लग रहा है कि यदि उनकी पार्टी में सबकुछ ठीकठाक रहे, तो उनके मोर्चे को 100 सीटें तक मिल सकती हैं। लेकिन कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाले मोर्चे में सबकुछ ठीकठाक नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस एक के बाद एक घपले के आरोपों मं कटघरे में घिरती जा रही है और राज्य स्तर पर पार्टी में भारी गुटबाजी है। इसके अलावा बढ़ती महंगाई के कारण भी कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कांग्रेस किसी को अपनी पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश नही ंकर रही है, लेकिन चुनाव के बाद रमेश चेनिंथाला और उमेन चांडी में से कोई मुख्यमंत्री बन सकते हैं। वे दोनों अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में चुनावी टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे हैं और उसमें सफल भी हो रहे हैं। पर उसके कारण अन्य गुटों के नेताओं में असंतोष दिखाई पड़ रहा है। असंतुष्ट दिख रहे नेताओं में एक मुरलीथरण भी हैं, जो 6 साल के लिए पार्टी से निकाले जाने के बाद दुबारा कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस कैथोलिक चर्च को भी खुश करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि उसके अनुयाइयों की संख्या बहुत ज्यादा है। कांग्रेस ने सभी वर्तमान विधायकों को टिकट देने का फैसला कर डाला है। ऐसा कर उसने उनकी तरफ से किसी असंतोष की आशंका को समाप्त कर दिया है।
उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस इस चुनाव में भारी पड़ेगी और यदि कोई अचंभा हो गया, तभी वाम नेतृत्व वाला मोर्चा बाजी मार सकता है। (संवाद)
केरल: कांग्रेस की बढ़त बनी हुई है
अच्युतानंदन की उम्मीदवारी से एलडीएफ का मनोबल बढ़ा
कल्याणी शंकर - 2011-03-26 10:12
केरल का विधानसभा चुनाव इस बार इस मायने में दिलचस्प है कि पहली बार सीपीएम एक विभाजित पार्टी के रूप में चुनाव लड़ रही है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के समय भी अंदरखाने मनमुटाव था, लेकिन इस बार तो मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन और राज्य सचिव पी विजयन के बीच कलह साफ साफ सतह पर आ गया है।