समय से पहले चुनाव की बात राज्य की विपक्षी पार्टियों के नेताओं के दिमाग में भी कौंध रही है। यही कारण है कि वे अभी से चुनावी मूड में आ गए है और अपनी राजनैतिक गतिविधियां तेज कर दी हैं। उन्हें लग रहा है कि मायावती इस साल के अंत में ही चुनाव करवा देंगी।
मायावती लोगों के राजनैतिक मूड का आकलन करने लग गई हैं। विधानसभा चुनावों की तैयारियों के मामले में उन्होंने अन्य राजनैतिक दलों के ऊपर बढ़त भी बना ली है। उन्होंने अपनी पार्टी के सांसदों, विधायकों और पदाधिकारियों की बैठकें आयोजित करनी शुरू कर दी हैं और उन्हें किसी भी समय चुनाव का सामना करने को तैयार रहने के लिए कहा जा रहा है।
विपक्षी सूत्रों का कहना है कि मायावती चुनाव को अपने तय समय पर इसलिए नहीं कराना चाहतीं, क्योकि उन्हें डर लग रहा है कि कहीं उस समय तक विपक्ष में किसी तरह की एकता न हो जाए। उन्हें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच एकता स्थापित होने का डर खास तौर से सता रहा है। विपक्षी दलों मे एकता न होने पाए, इसके लिए भी मायावती लगातार सक्रिय हैं।
समय से पहले चुनाव करवाने की एक और वजह मायावती सरकार द्वारा नगर निकायों के चुनावों से संबंधित कानून बनाने में मिली विफलता भी है। अब तक नगर निगमों के चुनाव पार्टी के चुनाव चिन्हों पर हुआ करते थे। पिछली दफा मायावती की पार्टी ने इस चुनाव में भाग ही नहीं लिया था। इस बार भी मुख्यमंत्री अपनी पार्टी को नगर निकायों के चुनावों से दूर रखना चाह रही हैं, लेकिन यदि पार्टी के आधार पर चुनाव होते हैं और उनकी पार्टी इसमें भाग नहीं लेती है, तो यह उनकी कमजोरी मानी जाएगी। पिछली दफा वे उस समय सत्ता में नहीं थी, इसलिए मामला कुछ अलग था।
अपनी पार्टी को चुनाव में ले जाने से बचाने के लिए मायावती ने एक विधेयक विधानसभा से पररित करवा दिया, जिसके तहत नगर निकायों के चुनावों को पार्टी आधारित चुनाव होने से वंचित कर दिया जाना है। विपक्ष ने सरकार के इस कदम का भारी विरोध किया। यह विरोध विधानसभा के अंदर हुआ और बाहर भी। विधानसभा से विधेयक पारित होने के बाद विपक्षी नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकत की और उन्हें कहा कि वे विधेयक पर अपना दस्तखत न करें और उसे कानून न बनने दें।
इस मसले पर राज्यपाल ने मुख्यमंत्री मायावती से बात भी की है। कहा जा रहा है कि उन्होंने नगर निकायों के चुनावों को पार्टी के आधार से अलग करने के खिलाफ अपना मत जाहिर किया है। फिलहाल वह विधेयक उनके पास पड़ा हुआ है। उन्होंने न तो उस पर अपना दस्तखत किया है और न ही उसे विधानसभा को वापस किया है। यदि यही स्थिति बनी रहती है और नगर निकायो के चुनाव का वक्त आ जाता है, तो फिर पुराने कानूनों के अनुरूप ही पार्टी आधार पर वे चुनाव करवाने पड़ेंगे। बसपा की स्थिति शहरों में बहुत मजबूत नहीं है, इसलिए यदि चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं होता है, तो इसका असर बाद में होने वाले विधानसभा के आमचुनावों के दौरान उनके समर्थक मतदाताओं के ऊपर पड़ेगा। यही कारण है कि मुख्यमंत्री लगर निकायों के चुनाव के पहले ही विधानसभा का चुनाव करवा देना चाहती हैं।
चुनाव की आहट पाते ीि विपक्षी दलों ने अपनी राजनैतिक गतिविधियां तेज कर दी हैं। मुख्य विपक्षी पाटी्र समाजवादी पार्टी ने अभी हाल ही में दो बड़े आंदोलन किए और उनके दौरान उनके कार्यकर्त्ता भारी संख्या में घरों से निकले। खुद मुलायम सिंह यादव को राज्य सरकार ने उनक घर पर ही नजरबंद कर दिया था। अपने सफल आंदोलनों से सपा का मनोबल ऊंचा दिखाई पड़ रहा है।
भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी पार्टी के कार्यकर्त्ताओं की जड़ता को मिटाने के लिए आंदोलन का रुख किया है। कानून व्यवस्था की विफलता और प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उसने आंदोलन किया है। कांग्रेस की और से भी रैलियां आयोजित की जाने वाली हैं, जिन्हें सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी संबोधित करेंगे।
राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह ने 6 छोटे दलों का एक मोर्चा भी बना डाला है जिसमें मुस्लिम अधार वाली पीस पार्टी भी शामिल है। उस मोर्चे के साथ अजित सिंह समाजवादी पार्टी या कांग्रेस के साथ तालमेल की संभावना भी तलाश रहे हैं। (संवाद)
मायावती समय से पहले विधानसभा का चुनाव करा सकती हैं
विपक्षी पार्टियां भी अब चुनाव के लिए तैयार हो रही हैं
प्रदीप कपूर - 2011-03-26 10:16
लखनऊः राजनैतिक पंडित अनुमान लगा रहे हैं कि मुख्यमंत्री मायावती विभाजित विपक्ष का फायदा उठाने के लिए तय समय से पहले ही राज्य विधानसभा का आमचुनाव करवा सकती हैं। गौरतलब है कि तय समय के अनुसार उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव 2012 की पहली छमाही में होना है।