हालांकि इतना होने के बावजूद विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाने में सफल नहीं हुआ और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार पूरे आत्मविश्वास से काम करती रही। सरकार की ओर से ही यह आरोप लगाया गया कि विपक्ष ने जानबूझकर उसकी सरकार को बदनाम करने के लिए अपनी ही नोटों की गड्डियां लोकसभा में लहराई। यह बड़ी विचित्र स्थिति थी, और पता नहीं क्यों विपक्ष ने बाद में इस मामले को तूल नहीं दिया, पर आम नागरिकांे के अंदर यह विश्वास घर कर गया कि सरकार बचाने के लिए करोड़ों का लेन-देन हुआ है। विकिलिक्स के खुलासे से केवल आम नागरिकांे की उस धारणा की पुष्टि हुई है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सरकार बचाने के लिए किसी प्रकार के लेनदेन से इन्कार करने मात्र से आम नागरिकों के अंदर घर कर चुकी इस धारणा का अंत संभव नहीं, सरकार और कांग्रेस पार्टी चाहे जो तर्क दे। विकिलिक्स के तथ्यों में कुछ त्रुटियां भीं हैं। मसलन, अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के लोकसभा में कुल 3 सांसद थे, चार नहीं जैसा विकिलिक्स बता रहा है तथा तीनों सांसदों ने विश्वास मत के विरुद्ध मतदान किया था, पक्ष में नहीं। ऐसी कुछ बातंे और सामने लाई जा सकतीं हैं। इससे यह आम धारणा गलत साबित नहीं होती कि सरकार बचाने के लिए सांसदों की खरीद-फरोख्त से लेकर अन्य प्रकार के लोभ लालच का शर्मनाक कृत्य किया गया। नचीकेता सतीश शर्मा के साथ था या नहीं, उसने अमेरिकी दूतावास के किसी राजनयिक को नोट दिखाए या नहीं, उसे सरकार बचाने के लिए सांसदों को खरीदने की सूचना दी या नहीं, इन सब पर दो राय हो सकती है, किंतु इनके आधार पर कांग्रेस पार्टी एवं सरकार लोगों के गले यह नहीं उतार सकती कि उसके पाले में विपक्ष के जो सांसद आए या जिन्होंने विश्वासमत के दौरान मतदान नहीं किया, उसके पीछे केवल उन सांसदों की अंतरात्मा की आवाज थी। इस समय मसला भारत अमेरिका नाभिकीय समझौते के सही या गलत होने का भी नहीं, सरकार की साख का है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी का यह तर्क वैधानिक रुप से सही है कि 14 वीं लोकसभा में जो कुछ हुआ, उसे 15 वीं लोकसभा मंे लागू नहीं कर सकते। उस समय सरकार विश्वास मत जीत गई और संविधान के अनुसार उसे एक सरकार के सारे अधिकार प्राप्त रहे। प्रणब मुखर्जी से यह प्रश्न किया जाना चाहिए कि क्या कोई अधिकारी अपने कार्यकाल मंे कोई अपराध करे और इसका खुलासा उसके पद से हटने के बाद हो तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती? झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड मंे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव पर पदमुक्त होने के बाद मुकदमा चला। उन पर भी तो 1993 में अपनी सरकार बचाने के लिए सांसदों को घूस देने का ही आरोप था। निचली अदालत ने उन्हें सजा भी सुनाई थी। ऊपर की अदालत ने उन्हें शकर का लाभ देकर दोषमुक्त कर दिया था। संप्रग तब भी शासन में था और मनमोहन सिंह ही तब भी प्रधानमंत्री थे, इस नाते उस दौरान जो कुछ हुआ उसका संबंध सीधे वर्तमान के साथ बनता है। अगर घूस देकर सरकार बचाई गई तो साफ है कि ऐसा नहीं किया जाता तो सरकार गिर जाती और सरकार गिर जाती उसके बाद की राजनीतिक स्थिति क्या होती कोई नहीं जानता। संभव है संप्रग बिखर जाता और वह दोबारा शासन मंे लौटता ही नहीं। अनैतिक और अवैधानिक तरीके से बहुमत हासिल करने वाली सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों की वैधानिकता का प्रश्न भी इससे जुड़ा हुआ है। प्रणब दा का यह तर्क भी उचित नहीं है कि यह किसी संप्रभु देश की सरकार और उसके दूतावास के बीच हुई बातचीत का मसला है और उसके बारे में कुछ नहीं किया जा सकता। यह प्रश्न यहां है ही नहीं। इस समय प्रश्न केवल यह है कि उस दौरान सरकार, मुख्य राजनीतिक पार्टी, उसके अपने नेता तथा सरकार को सहयोग करने आगे आए नेताआंे ने सरकार बचाने के लिए संासदों को घूस दिया या नहीं? सारी बातें घूस देने की ओर इशारा कर रहीं हैं।
हम मानते हैं कि एक पर एक खुलासे के कारण अस्थिरता की संभावना बढ़ रही है और जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दे हाशिए पर जा रहे हैं जो कतई देशहित में नहीं। किंतु किया क्या जा सकता है। वर्तमान खुलासा और उस समय का समूचा घटनाक्रम तथा सामने आए तथ्य घूस दिए जाने के आरोपों को बल प्रदान करते हैं। विश्वास मत का समर्थन करने के लिए धन देने का आरोप लगाने वाले तत्कालीन तीन भाजपा सांसदों मध्यप्रदेश के मुरैना से अशोक अर्गल, मंडला के सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते, एवं सालुंबर राजस्थान से महावीर भगोड़ा ने यह कहा था कि उन्हें जब से धन देने की पेशकश की गई उन्होंने सारी बातों की वीडियो रिकॉर्डिंग करवाई। एक प्रमुख टी. वी. चैनल ने भी लेन-देन के स्टिंग ऑपरेषन की बात स्वीकारते हुए कहा कि पूरा टेप लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दिया गया है। चैनल द्वारा वीडियो नहीं दिखाए जाने पर भाजपा ने यह सार्वजनिक घोषणा की थी कि उसका कोई नेता तब तक चैनल के किसी कार्यक्रम में भाग नहीं लेगा जब तक पूरा ऑपरेशन प्रसारित नहीं किया जाता। अंततः उस चैनल ने स्टिंग ऑपरेषन के कुछ अंश प्रसारित भी किया। अगर आरोप के पीछे तथ्य नहीं होता तो भाजपा इतना सख्त रवैया किसी समाचार चैनल के खिलाफ नहीं अपनाती। वैसे भी विपक्ष के 11 सांसदों द्वारा पाला बदलकर मतदान करना एवं 10 सांसदों का अनुपस्थित रहना यूं ही नहीं हो सकता। भाजपा के सात सांसद टूट गए, कांग्रेस को समाजवादी पार्टी का आश्चर्यजनक साथ मिला, जनता दल यू, अकाली दल यानी राजग एवं वाम खेमे के तेलुगू देशम्, जनता दल सेक्यूलर के सांसदों ने सरकार के पक्ष में मतदान करके या अनुपस्थित रहकर उसकी जीवन रक्षा मंें भूमिका निभाई थी। इतना बड़ा राजनीतिक उलट-फेर बगैर किसी ऑपरेशन के संभव ही नहीं। ये सांसद नाभिकीय समझौते को भारत के हित में मानने के कारण सरकार बचाना चाहते थे इसे कौन स्वीकार कर सकता था।
इसलिए विकिलिक्स के माध्यम से आए खुलासे पर आश्चर्य करने का कोई कारण नहीं है। राजनीतिक तौर पर संप्रग उस दौरान आरोपों को नकारने में सफल रही और इस समय भी उसका स्वर वही है। प्रधानमत्रंी विकिलिक्स की रिपोर्ट को गलत बता रहे हैं। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि अमेरिका के बारे में कई हजार पृष्ठ थे, पर उस देश में ऐसा हंगामा नहीं हुआ जैसा हमारे यहां हो रहा है। अमेरिका संबंधी खुलासे में अपने देश के अंदर सरकार बचाने या समर्थन के लिए घूस देने जैसे शर्मनाक कृत्य का आरोप नहीं था। उसमें विदेश नीति में अमेरिका के राष्ट्रीय हित को साधने के लिए अनैतिक एवं अवैध तरीके अपनाने, उनके राजनयिकांे द्वारा दूसरे देशों के नेताओं द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणियां आदि हैं। वस्तुतः सरकार के लिए आज यह आवश्यक हो गया है कि वह स्वयं के दामन को पाक साफ साबित करे। वह पाक-साफ साबित करने का उपक्रम करने की जगह यदि अपने बचाव में केवल तर्क देने तक सीमित रहती है तो उसके बारे में कायम आम धारणा और मजबूत होगी। (संवाद)
इस खुलासे पर आश्चर्य कैसा
केन्द्र सरकार को अपने दामन पर लगे दाग छुड़ाने चाहिए
अवधेश कुमार - 2011-03-28 11:42
जिन लोगों को लोकसभा में 22 जुलाई 2008 का दृष्य याद होगा उनके लिए विकिलिक्स के खुलासे पर आश्चर्य करने का कोई कारण नहीं है। उस दिन मनमोहन सिंह सरकार ने विश्वास मत जीत लिया था, लेकिन मतदान के पूर्व भाजपा के तीन सांसदों द्वारा लोकसभा की मेज पर एक हजार के नोटों से भरी अटैचियां रखने का शर्मनाक नजारा दुनिया के सामने आ चुका था। भारतीय संसद के इतिहास में वह इस किस्म का पहला कालादिन था। इसके पूर्व कभी ऐसा नहीं हुआ था।