सच तो यह है कि असम में तृणमूल कांग्रेस मे दुत्कारे गए लोगों की पार्टी है। जिन्हें कांग्रेस में टिकट नहीं मिला, उसे तृणमूल ने टिकट दे दिया है। अधिकांश उम्मीदवारों को लोग जानते ही नहीं। यदि किसी को लोग जानते भी हैं तो उसकी बुरी छवि के कारण उसे जानते हैं। तृणमूल ने एक पूर्व कांग्रेसी मंत्री को टिकट दे दिया है, क्योंकि उसे इस बार कांग्रेस का टिकट नहीं मिला। वह पूर्व मंत्री एक बार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में भी शामिल हो चुके थे।

हां, कांग्रेस को उस समय झटका लगा, जब पूर्व मुख्यमंत्री अस्सी से अधिक उम्र की सैयदा अनवरा तैमूर ने पार्टी छोड़ दी। सुश्री तैमूर को अधिक उम्र के होने के कारण कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। विरोध में उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी और अब बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की उम्मीदवार बन गई हैं। कांग्रेस को सबसे ज्यादा डर इसी फ्रंट से लग रहा है, क्योंकि यह मुसलमानों में बहुत लोकप्रिय है। कांग्रेस को लगता है कि उसके मुस्लिम जनाधार को खिसकाने में यह सक्षम है। इसलिए उसकेे रणनीतिकारों की पूरी कोशिश अपने मुस्लित आधार को इस फ्रंट से बचाने की है।

असम के विपक्षी दल चुनाव जीतकर अपनी सरकार बनाने को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हैं। उनकी निराशा उनके घोषणा पत्रों में देखी जा सकती है। अपने घोषणा पत्र में उन्होंने ऐसे ऐसे वायदे किए हैं, जिन्हे पूरा करना राज्य सरकार के वश में होता ही नहीं है। केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले काम को राज्य में सरकार बनाकर कर दिखाने का दंभ भरने वाले घोषणापत्रों को देखना बहुत ही दिलचस्प है।

भाजपा का उदाहरण देखिए। यह भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए एक विशेष कानून बनाने की बात करती है। वह राज्य में रह रहे बांग्लादेशी शरणार्थियों को एक साल के अंदर देश से बाहर कर देने का दंभ भरती है, जबकि सबको पता है कि बांग्लादेशी शरणार्थियों की समस्या हल करना केन्द्र सरकार का मामला है। घोषणापत्र में भाजपा कहती है कि बीएसएफ जवानों की संख्या वह 5 गुणा बढ़ा देगी, जबकि बीएसएफ केन्द्र सरकार का अर्द्ध सैनिक बल है। अरुणाचल प्रदेश की सुभांसिरी जल बिजली परियोजना को समाप्त करने का भी यह वायदा कर रही है, जबकि किसी दूसरे राज्य की परियोजना को कोई राज्य कैसे समाप्त कर सकती है? यही नहीं, भाजपा कह रही है कि राज्य में सरकार बनाने के बाद वह कट्टरपंथियों के खिलाफ वह सेना की कार्रवाई को और तेज कर देगी।

असम गण परिषद का चुनाव घोषणा पत्र में भी उसी तरह की खामिया है। वह भी भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एक खास कानून बनाने का वायदा करती है। वह प्रत्येक साल एक लाख रोजगार अवसर पैदा करने का दंभ भी भरती है। गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को वह दो रुपए प्रति किलो की दर से वह चावल उपलब्ध कराने की बात भी कर रही है। वह असम में बिजली से ट्रेन चलाने के लिए केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने की बात भी करती है।

कांग्रेस को न तो भाजपा की चिंता है और न ही असम गण परिषद की। उसे असली चिंता ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट से जो इसके मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी करती दिखाई देगा। इसके साथ साथ चाय बगानों के मजदूरों द्वारा बनाई गई एक पार्टी भी इसकी चिंता की एक और वजह है। (संवाद)