अभी अनेक सारे खुलासे होने बाकी हैं। लेकिन अबतक जो खुलासे सामने आए हैं, उनसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके तीन नेताओं से संबंधित केबल उनके असली चरित्र से लोगों को अवगत कराता है। सबसे पहले तो भाजपा नेता अरुण कुमार जेटली से जुड़ा केबल संदेश लीक हुआ, जिसमें वे अपने आपको अमेरिका प्रेमी होने की डींगे मारते दिखाई देते हैं। वे कहते हैं कि अमेरिका में उनके एक नहीं पांच मकान है और उनके कई भतीजियां और बहनें वहां रहती हैं। भाई भतीजावाद भारतीय राजनीति में एक प्रसिद्ध मुहावरा हैं। महिला सशक्तिकरण के इस दौर मं बहन भतीजीवाद इसकी जगह ले ले तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

अरुण जेटली भाजपा के नेता हैं। उन्हें राज्य सभा में विपक्ष के नेता का दर्जा भी हासिल है और अपनी पार्टी के अंदर अपने को शीर्ष नेता की दौड. में भी उन्होंने बना रखा है। भाजपा अपने आपको एक राष्ट्रवादी पार्टी कहती है। अनेक विदेशी विश्लेषक भी उसे अपने विश्लेषण में राष्टवादी पार्टी मानते हैं। लेकिन एक राष्ट्रवादी पार्टी का एक राष्ट्रवादी नेता अमेरिका के सामने अपनी पार्टी के राष्ट्रवाद पर अपने आपको शर्मिंदा महसूस करते हुए कहता है कि उसकी पार्टी का हिन्दु राष्ट्रवाद महज दिखावा है। उसका हिन्दुत्व मात्र एक अवसरवाद है, जिसके जरिए से उनकी पार्टी हिन्दुओं को अपने पक्ष में गोलबंद करती है। इस तरह की गोलबंदी की सफलता के लिए श्री जेटली भारत के पाकिस्तान के खराब रिश्ते को जरूरी मानते हैं। वे कहते हैं कि चूंकि पाकिस्तान से भारत का रिश्ता सुधर रहा है, इसलिए उनकी पार्टी की हिन्दुत्व की राजनीति कमजोर पड़ रही है। वे यह भी कहते हैं कि यदि संसद पर हमले जैसा कोई और आतंकवादी हमला भारत पर हो जाए, तो फिर उनकी पार्टी की हिन्दुत्व राष्ट्रवाद की राजनीति फिर सफल होने लगेगी।

देश की राजनीति और उसमें अपनी पार्टी की राजनीति की सफलता का एक घिनौना विश्लेषण पेश करते हुए अरुण जेटली के माथे पर शिकन तक नहीं आई। देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी अपनी राजनीति के लिए आतंकवादी हमलों की मुहताज दिखे, इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है? लेकिन यह विडंबना हमारे देश की राजनीति की है। हालांकि जेटली का अमेरिकी राजदूत के सामने अपनी पार्टी की राजनैतिक सफलता या विफलता से संबंधित वह विश्लेषण उस समय गलत साबित हो गया था, जब 2008 के 26 नवंबर को मुंबई मंे आतंकी हमले हो रहे थे। उसी समय दिल्ली समेत कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे। दिल्ली में तो मतदान शुरू होेने तक मुंबई के ताज होटल में आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी हो रही थी। मतदान के तीन दिन पहले से आतंकी हमलों की खबरें मीडिया पर लगातार आ रही थी। भाजपा अपनी पूरी ताकत लगाकर उस हमले का अपने हिन्दुत्व की राजनीति के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही थी। मतदान हुए और भाजपा की भारी हार हुई।

अब कोई यह पूछे अरुण जेटली से कि 2008 के 26 नवंबर को हुए आतंकी हमले का लाभ उनकी पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव मंे क्यों नहीं मिला? उसी समय हुए चुनाव में भाजपा की राजस्थान में भी हार हो गई थी। अरुण जेटली को तो और भी अनेक सवालों का जवाब देना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी की मूल राजनैतिक रणनीति को ही अवसरवादी करार दिया है। पर सवाल उठता है कि जिसके द्वारा उनसे ये सवाल पूछे जाने चाहिए वे खुद ही चुप हैं। पार्टी के अंदर से किसी ने अरुण जेटली पर इस तरह की बातें विदेशी राजनयिकों ये करने के लिए जवाब तलब नहीं किया है। इससे यही पता चलता है कि पार्टी के अंदर भी इस तरह की बातें पहले से ही होती रही हैं कि हिन्दुत्व उनके लिए महज एक अवसरवाद है न कि किसी प्रकार की प्रतिबद्ता। इसका मतलब यह है कि इस तरह का विचार रखने वाले अरुण जेटली अपनी पार्टी के कोई अकेला नेता नहीं हैं, बल्कि अन्य अनेक नेता भी इसी तरह का विचार रखते हैं।

अरुण जेटली अब कह रहे हैं कि उन्होंने अवसरवादी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था। उनके लिए अच्छा यही रहेगा कि वे यह बता दें कि उन्होंने किस शब्द का इस्तेमाल किया था। श्री जेटली हमेशा एक वकील की तरह बात करते हैं। यदि उन्होंने अवसरवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि उस शब्द के लिए उसका कोई अन्य पर्यायवाची शब्द का इस्तेमाल कर लिया, इससे उस केबल संदेश में छिपा संदेश गलत तो नहीं हो जाता।

पी चिदंबरम से संबंधित केबल संदेश भी चौंकाने वाले हैं। वे देश के गृहमंत्री हैं, लेकिन वे देश को तोड़कर देखते हैं। उनका कहना है कि भारत के पिछड़ेपन के लिए देश का पूर्वी और उत्तरी हिस्सा जिम्मेदार है। एक अथशास्त्री के रूप में वह सकारात्क रवैया अपनाते हुए इस तरह की बात करें, तो इसमें शायद किसी को बुरा नहीं लगेगा, लेकिन वे भारत से इन हिस्सों को अलग करके देखते हुए कहते हैं कि यदि देश में सिर्फ दक्षिणी और पश्चिमी राज्य ही शामिल रहें तो भारत का विकास और भी तेजी से होगा।

इस तरह की वाहियात बात करने वाला कोई अर्थशास्त्री हो ही नहीं सकता। यह एक धिनौना दिमाग रखने वाला ही कह सकता है, क्योंकि यह एक तथ्य है कि देश की खनिज संपदा का सबसे बड़ा हिस्सा देश के पूवीं हिस्से में ही हैं और देश की सबसे उपजाऊ जमीन भी देश के पूर्वी और उत्तरी हिस्से में ही है। यदि देश का पूर्वी और उत्तरी हिस्सा पिछड़ा है तो इसके लिए पी चिदंबरम जैसे लोग जिम्मेदार रहे हैं, जिन्होनं गलत आर्थिक नीतियों से देश में कृत्रिम क्षेत्रीय विषमता पैदा कर दी है। भाड़ा समानीकरण की नीति के द्वारा पूर्वी राज्यों को खनिज संपदा होने के लाभ से वंचित कर दिया गया।

गौरतलब है कि कुछ महीने पहले ही पी चिदंबरम देश के पूवी्र राज्यों में माओवादी हिंसा के बहाने सेना का इस्तेमाल करने की वकालत कर रहे थे। वे वायुसेना के द्वारा इन राज्यों के सुदूर ग्रामीण और जंगली इलाको पर बमबारी की पैरवी कर रहे थे। वे उस तरह की देश विराधी मांग क्यों कर रहे थे, उसका खुलासा विकीलीक्स के खुलासों में ढूंढ़ा जा सकता है। पी चिदंबरम ने उस तरह की बातें क्यों कहीं, इसका भी कोई जवाब उनके पास नहीं है। (सवाद)