सीपीएम के अंदर अच्युतानंदन बनाम विजयन के इस संघर्ष के बीच पार्टी दो गुटों के बीच दिखाई पड़ती है। पार्टी के नेता इस बात को समझ रहे हैं कि इसके कारण उनके उम्मीदवारों के मत पाने की संभावना प्रभावित हो सकती है। इसलिए इस तरह की संभावना को समाप्त करने के लिए सीपीएम के दोनों नेता संयुक्त रूप से चुनाव प्रचार कर रहे हैं। पार्टी के लिए एक एक सीट महत्वपूर्ण है। इसलिए अच्युतानंदन उन सीटों पर चुनाव प्रचार करने को विशेष प्राथमिकता दे रहे हैं, जहां के उम्मीदवार जनता की नजरों में उनके आलोचक हैं। उसी तरह पार्टी के प्रदेश सचिव विजयन उन विधानसभा क्षेत्रों पर खास घ्यान दे रहे हैं, जहां के उम्मीदवार उनके आलोचक और मुख्यमंत्री के समर्थक माने जाते हैं। श्री विजयन मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में भी चुनाव प्रचार कर चुके हैं।

इस तरह दोनों नेताओं द्वारा पार्टी के अंदर के अपने आलोचकों के लिए चुनाव प्रचार को वरीयता देने और कहीं कहीं मिलकर चुनावी संभा संबोधित करने से पार्टी के अंदर मतभेद को कम होने की उम्मीदें व्यक्त की जा रही है। केरल में एलडीएफ और यूडीएफ द्वारा बारी बारी से सरकार बनाने के लंबे इतिहास की पृष्ठ भूमि में इस बार एलडीएफ के हारने की बातें की जा रही हैं। पिछले लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए स्थानीय निकायों के चुनाव में भी यूडीएफ का पलड़ा भारी था, इसलिए भी एलडीएफ की जीत को लेकर आशंका बनी हुई है। वैसे माहौल में विजयन और अच्युतानंदन के बीच मतभेद पार्टी और मोर्चे के उम्मीदवारों की जीत की संभावनाओं को प्रभावित करेगा। यही कारण है कि पार्टी के दोनों नेता किसी प्रकार की जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं और सभी उम्मीदवारों की जीत के लिए यथासंभव कोशिश कर रहे हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव के समय एलडीएफ के घटकों ने चुनाव प्रचार के दौरान सिर्फ अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए काम करने में दिलचस्पी दिखाई थी और उस समय संदेश जा रहे था कि सीटों के तालमेल के बावजूद पार्टियां सिर्फ अपने उम्मीदवारों की जीत पर घ्यान दे रही हैं। इस बार घटक पार्टियां एक दूसरे के उम्मीदवारों के लिए भी काम कर रही हैं, ताकि उनके समर्थक मतदाता उसके सहयागी दलों को भी उत्साह के साथ मतदान कर सकें।

इस प्रकार इस बार एलडीएफ अपनी पूरी ताकत लगाकर चुनाव प्रचार में लगा हुआ है, जबकि कांग्रेस के नेत्त्व वाला यूडीएफ चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर मे पिछड़ गया है। (संवाद)