मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जनसंख्या दर ज्यादा और साक्षरता दर में कमी पायी जाती है। लगभग अनपढ़ और बहुयात में गरीब अनपढ़ मंस्लिम तबका आज भी औलाद को अल्लाह की देन मानता है। उसे समझने की जरूरत है कि अधिक संतान पैदा करके वो अपने बच्चों ओर परिवार के साथ अत्याचार करता है। जीवन की सच्चाई है कि पहला बेटा होता है तो बच्चे को अगर पूरी मिलास दूध मिलता है तो दूसरा होने पर आधी, वहीं तीसरा होने पर तीनों को दूध से महरूम होना पडता है और बहला कर चाय पिलाई जाती है। यदी माँ बाप में एक बच्चे को दसवीं तक पढाने की ताकत है तो दस बच्चे होने पर सभी बच्चे केवल एक ही कक्षा पढ़ पाते है। यही गणितिय भाषा नहीं है मगर सच्चाई है। कुछ ऐसे ही आकलनों को समझ कर इन को समझा जाने की भी जरूरत है। सभी पढे़ लिखे लोगों को ऐसी बेबुनियादी आस्था से इन अज्ञानी लोगों को जागरूक कर लोगांे के लिए एक आदर्श स्थापित करना ही होगा। इसी प्रकार की सलाह इस तबके के प्रभावी लोगों को अपने मित्रों व हम-उम्र रिश्तेदारों को देनी होगी। यह एक सवेदनशील मुद्दा है और पूरा देश इस मुद्दे पर एक बार अपना हाथ जला चुका है। मगर इस सच्चाई से भी मुँह नहीं मोडा जा सकता कि जनसँख्या वृद्धि की समस्या पूरे देश के लिए घातक है। जनसंख्या वृद्वि दर विकास की राह में रोडे है। इस पर सोच को बदलाना होगा और इसके लिए कई तरह से सकारात्मक प्रभाव वाले कार्य करने पडेगें। गाँव की पंचायत व स्थानीय सरकारी अधिकारियों को इस किस्म की आदर्श घटनाओं को पुरस्कार से सम्मानित करना होगा। परिवार, समाज और देश को उन्नति के पथ पर तभी जा सकता है जब जनसँख्या वृद्धि को स्थिर हो। यह भी अच्छी बात नहीं है कि छः वर्ष तक में लिंगानुपात में भारी गिरावट आयी है। मगर गौर करने वाती बात है कि पारसी बहुल क्षेत्रों में लिंगानुपात बढ़ा है और जन्म दर में गिरावट दर्ज की गयी है। अगर ऐसा चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं है कि ये लोग गिने भी न जा सकेगें। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम बहुल क्षेत्र में जन्म दर भारी बढ़ी है और जन्संख्या में भी इजाफा हुआ है। यों तो शिक्षा दर में भी बढ़ोतरी हुई है। मगर वो मदरसी तालीम है। संभावना है कि वर्ष एक से सोलह साल की उम्र में लिंगानुपात कम हुआ है। कुछ आकलन यह भी है कि बच्चों के इस ग्रुप में मुसलमान की संख्या लगभग आधी है और सिक्ख, बौद्ध, हिन्दु, इसाई समेत बाकी सारे धर्मों के बच्चों की संख्या आधी है। कुल संख्या में लिगांनुपात में सुधार का अर्थ महिलाओं की अच्छी उम्र तक जीना भी हो सकता है। इस सच्चाई से सभी को रूबरू होना और करना दोनो ही जरूरी है। सभी को सह भी पता होना चाहिए यदि ये नहीं रूकी तो हमारे जीवनों व आगामी पीढ़ी व अंततः देश के विकास पर इसका बुरा असर पड़ेगा। आगामी छः माह में जनसंख्या से जुड़े सरकारी सही आकड़ों के मिलने की संभावना है। इन आकडों मंे वर्गीकृत स्वरूप भी बताया जाएगा। तभी पता चल सकेगा कि विभाग का काम कितना संतोषजनक है और विभाग के इस मेहनत का क्या लाभ उठाया जा सकता है। मोटे तौर पर यह तो है कि जनसंख्या बढ़ी है। मगर जनसंख्या दर में कमी आयी है। चंद्रम©ली के अनुसार, पहली बार ऐसा हुआ है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड, झारखंड, मध्य्ा प्रदेश, छत्तीसगढ़ अ©र उड़ीसा में आबादी वृद्धि दर में गिरावट आय्ाी है। अगर बारीके से देखा जाए तो देखना होगा किन जगहों पर जन्म दर में गिरावट है। साथ ही समझना होगा किन वर्ग या जाति या धर्म के लोगों में यह गिरावट दर्ज हुई है और किन में नहीं।

अगर अपुष्ट आंकडों की बात करे तो गरीब वर्ग की जन्म दर में और मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती रही है। विडम्बना ही है कि जो बच्चे पाल नहीं सकते वे ही ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं और शिक्षा में या स्वास्थ सेवा में वो आधुनिक सुविधा का समुचित लाभ बच्चों को दिला नहीं सकते।

जनसंख्या संबधित आकडों को एकत्र का लाभ तभी है जब इस आधार पर उचित योजना बनाई जाए और ठोस तरीके से लागू किया जा सके। मानव मात्र और राष्ट्र के निर्माण में इन आंकडों का सदुपयोग हो ना कि छिछली राजनितिक उद्देश्यों के लिए। इन सबसे ऊपर एक बात और है कोई विभाग और कोई मंत्रालय इंसानों की संख्या भी गिन दे। यह भी की इंसान पैदा होने की दर में वृद्धि हो रही है या गिरावट।