पर विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान जो दृश्य दिखाई पड़े, वे कांग्रेसी मोर्चे के लिहाज से अच्छे नहीं कहे जा सकते। इस चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ती दिखाई पड़ी, जबकि कांग्रेस नेताओं की सभाएं फीकी फीकी रहीं। कांग्रेस की अघ्यक्ष सोनिया गांधी ही नहीं, बल्कि राहुल गांधी की सभाओं में भी बहुत कम लोगों ने शिरकत की। सोनिया की एक सभा में तो लोग इतने कम थे कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चेनिंथला कांग्रेस जिला अध्यक्ष पर आग बबूला हो गए।
सच कहा जाए तो सभाओं में उमड़ती भीड़ ने मुख्यमंत्री अच्युतानंदन को भी चकित कर दिया है। जिस तरह से उनकी सभाओं में भीड़ उमड़ रही है, उससे तो यही लगता है कि मुकाबला दो मोर्चोंं में नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री के पक्ष और उनके विरोध में हो रहा है।
जाहिर है अपनी जीत सुनिश्चित मान रही कांग्रेस के नेताओं के लिए यह चुनाव आसान नहीं रह गया है। अपनी हार की बारी मान रहे वाम नेताओं को भी अब लगने लगा है कि इस बार वे इतिहास को झुठला देंगे। आखिर यह चमत्कार हो कैसे रहा है?
इसके कोई एक कारण नहीं हैं। अव्वल तो टिकट बंटवारे के दौरान कांग्रेस का अपनी सहयोगी दलों के साथ काफी टकराव हुए। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जीतनी सीटें चाहती थीं, उतनी सीटें उसे नहीं मिली। केरल कांग्रेस मणि गुट को भी उनके मन के मुताबिक 22 सीटें नहीं मिली। एमपी वीरेन्द्र कुमार को भी मनचाही सीटें नहीं मिली। इसके कारण कांग्रेसी मोर्चे के घटक दलों के बीच मनमुटाव पैदा हो गया है।
कांग्रेस के अंदर भी टकराव हो रहे है। प्रदेश में कांग्रेस अनेक गुटों में बंटी हुई है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चेनिंथला और कांग्रेस विधायक दल के नेता उमेन चांडी ने अपने अपने समर्थकों को काफी संख्या में सीटें दिलवा दी हैं। अन्य गुटों मंे इसको लेकर भारी असंतोष है, जिसका असर कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान पर दिखाई दिया।
इसके अलावा कुछ और घटनाएं घटी हैं, जिनका चुनाव पर असर पड़ रहा है। एक घटना तो पाम ओलिन घोटाले के मामले का खुल जाना है। यह वही मामला है जिसके कारण सीवीसी थामस को अपने पद से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद हटना पड़ा। यह घोटाला उस समय हुआ था, जब के करुणाकरण राज्य के मुख्यमंत्री थे। उस मुकदमे के मुख्य अभियुक्त के करुणाकरण ही थे। अब वे इस दुनिया में नहीं रहे, पर श्री चांडी उस सरकार में वित्त मंत्री थे। इस मामले की फिर से जांच शुरू होने के बाद एक संभावना श्री चांडी के अभियुक्त बन जाने की है। वैसी हालत में वे राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। यही कारण है कि श्री चांडी ने चुनाव लड़ने के लिए टिकट लेते वक्त कांग्रेस आलाकमान से वायदा किया कि उनके अभियुक्त बनाए जाने की स्थिति में वे विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे। यानी अब कांग्रेस दो मुख्यमंत्री दावेदारों के साथ चुनाव लड़ रही है और उनमें से एक के पामोलीन घोटाले में अभियुक्त बनने की आशंका पैदा हो गई है। इस आशंका का वहां के चुनाव पर असर पड़ रहा है।
एक अन्य कारण मुख्यमंत्री अच्युतानंदन की साफ सुथरी छवि है। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग करने वाले एक नेता के रूप में लोगों के बीच अपनी पहचान बना चुके हैं। विपक्ष ने उनके बेटे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तो उन्होंने उन सारे आरोपों को लाकायुक्त के हवाले करके अपना हाथ साफ कर लिया। लॉटरी घोटाले के साथ भी उनके बेटे का नाम जोड़ने की कोशिश की गई, तो उन्होंने लॉटरी घोटाले की सीबीआई जांच का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेज दिया है।
इसके अलावा आइसक्रीम पार्लर सेक्स घोटाले में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के प्रमुख के लिप्त होने का असर भी चुनाव पर पड़ रहा है। लीग विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस के बाद दूसरा सबसे बडा दल है। उसके लेता पर सेक्स स्कैंडल का आरोप लग रहा है और उसके कारण लीग ही नहीं, बल्कि कांग्रेस सहित मोर्चे के अन्य दलों के उम्मीदवारों को भी प्रभावित होना पड़ रहा है।
वाम मोर्चा के लिए जमात ए इस्लाम का समर्थन भी इस समय काम आ रहा है। पिछले चुनावों में जमात ने वाम मोर्चा का विरोध किया था, लेकिन इस बार उसका सुर बदला हुआ है। इस बार उसने राज्य स्तर पर किसी मोर्चे के विरोध या समर्थन की नीति नहीं अपनाई है, बल्कि विधानसभा क्षेत्रों की सूची बनाकर अपने समर्थकों को उस सूची के अनुसार उम्मीदवारों का समर्थन करने की अपील कर रहा है। मात्र 15 विधानसभा क्षेत्रों में ही जमात कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे का समर्थन कर रहा है, जबकि ज्यादातर क्षेत्रों में उसने वाम मोर्चा के उम्मीदवारों के समर्थन की अपील है।
दोनों मोर्चे के बीच टक्कर कांटे की है। और इस टक्कर में यदि नया इतिहास बन जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। (संवाद)
भारत
केरल विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर
पी श्रीकुमारन - 2011-04-12 10:17
तिरुअनंतपुरमः 13 अप्रैल को हो रहे मतदान में दक्षिण भारत के इस राज्य में कांटे की टक्कर हो रही है और यह कहना मुश्किल है कि जीत किस मोर्चे की होगी। पिछले अनेक चुनावों में टक्कर सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चे और कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मार्चे के बीच होती रही है। बारी बारी से दोनों जीतते रहे हैं। इस परंपरा के लिहाज से इस बार जीत कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे की होनी चाहिए। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव और 2010 में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव में भी जीत कांग्रेसी मोर्चे की ही हुई थी। इसके कारण भी कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे की जीत पक्की मानी जा रही थी।