वे कह रहे हैं कि सोनिया गांधी ने बुराड़ी के कांग्रेस महाधिवेशन में कहा था कि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए उनकी पार्टी की सरकार लोकपाल विधेयक संसद में लाएगी। विधेयक का मसौदा भी तैयार था, पर उसके बावजूद उसे संसद में पेश नहीं किया गया। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने उसे संसद में पेश करने मे देर करके अन्ना हजारे के आंदोलन को संभव और सफल बना दिया। अब वे नेता प्रधानमंत्री से इस विलंब के लिए सफाई मांग रहे हैं।

पार्टी के अंदर एजजीओवाद को लेकर भी रोष है। अनेक नेता कह रहे हैं कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व एनजीओ से जुड़े लोगों को ज्यादा तवज्जो देकर अच्छा नहीं कर रहे हैं। उनका इशारा सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ओर है। उनका कहना है कि एनजीओ के लोगों से जुड़े होने का ही परिणाम है कि राष्ट्रीय स्तर पर अन्ना फेनोमेनन को महत्व मिल गया है। अन्ना के इस आंदोलन का कारण ही वे पार्टी नेतृत्व द्वारा एनजीओ को दिए जा रहे महत्व को मान रहे हैं।

वे कह रहे हैं कि सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में एनजीओ से जुड़े अनेक लोग शामिल हैं। उनका पूरे आंदोलन के दौरान अन्ना हजारे और उनके लोगों के साथ संवाद बना रहा। सच तो यह है कि आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की बागडोर संभाल रहे नेताओं का संपर्क सोनिया और राहुल से भी लगातार बना रहा। हजारे के साथ बातचीत करने में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा राय ही नहीं, बल्कि हर्ष मंदेर भी शामिल थे। अब कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि हजारे ने नागरिक समाज की ओर से श्री मांदर अथवा सुश्री राय को विधेयक तैयार करने वाले पेेनल में शामिल क्यों नहीं कराया।

कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि आंदोलनकारियों को सरकार और पार्टी के शीर्ष लोगों से जुड़े लोगों के साथ और संपर्क का तो फायदा मिला ही, आरएसएस का पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर भी हजारे का साथ दे रहा था। (संवाद)