भाजपा अपने को कभी अलग किस्म की पार्टी होने का दावा करती थी, लेकिन अब उसका यह दावा कब का समाप्त हो गया है। सत्ता में आने के बाद पार्टी का कांग्रेसीकरण हो गया और उसकी तरह ही पार्टी भ्रष्टाचार का शिकार हो गई। उसका एक नमूना तो उस समय देखा गया, जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को कैमरे ने घूस लेते पकड़ा। 2006-07 में पार्टी के कुछ सांसद सवाल पूछने के लिए पैसे लेते दिखाई दिए। उनमें हिमाचल प्रदेश के सांसद सुरेश चंदेल भी शामिल थे। उनको बाद में पार्टी से निकाल दिया गया।
अभी कर्नाटक के मुख्यमंत्री यदुरप्पा पर अपने पद का दुरुपयोग कर अपने परिजनों के नाम भूखंड आबंटित करने का मामला सामने आया है। उन्हें अपने रिश्तेदारो के नाम आबंटित भूखंडों को रद्द करने के लिए बाध्य किया गया, लेकिन उनके खिलाफ इसके लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने बहुत ही हास्यास्पद बयान दिया और कहा कि मुख्यमंत्री ने जो किया, वह अनैतिक था, लेकिन अवैध नहीं, इसलिए उनको अपने पद से हटने की जरूरत नही है। सवाल उठता है कि क्या भाजपा नेता अपने इसी मानदंड को कांग्रेस के लिए भी स्वीकार करेंगे?
भाजपा अन्य दलों को अवसरवादी कहकर अपने आपको उनसे अलग बताती थी। पार्टी अब इस तरह का दावा नहीं कर सकती, क्योंकि सत्ता में आने के लिए उसने तरह तरह की ताकतो से समझौता किया। पंजाब में वह कभी अकाली दल को फिरकापरस्त और देश विरोधी पार्टी कहा करती थी, लेकिन आज वह उसके साथ सत्ता में है। उसने देश के अन्य अनेक हिस्सों मे सत्ता में आने के लिए उन ताकतों के साथ गठजोड़ किया, जिनकी राजनीति का वह विरोधी रही है। हरियाणा में तो उसने देवीलाल से लेकर बंशीलाल तक के साथ समझौता किया। उत्तर प्रदेश में मायावती को सरकार बनाने में मदद की और उनकी मदद से खुद की सरकार वहां बनाई।
भाजपा को गर्व था कि उसके कार्यकर्त्ता बहुत ही अनुशासित हैं और वह एक कैडर आधारित पार्टी है। लंकिन अभी जम्मू कश्मीर में जो हुआ, वह उसके इस दावे को तार तार कर देते हैं। यहां विधान परिषद के लिए चुनाव हो रहा था। भाजपा के विधानसभा में कुल 11 सदस्य हैं। उनमें से 7 ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर मतदान किया। 7 में से 3 ने नेशनल कान्फ्रेंस और 4 ने कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन किया और उसके कारण सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत हो गई। 6 विजयी पार्षदों में से 5 सत्तारूढ़ गठबंधन के हैं। इस समय नेशनल कान्फ्रंेस राज्य की 1953 से पहले वाली स्थिति बहाल करने की मांग कर रहा है। भाजपा का इस मांग से जबर्दस्त विरोध है। वह तो धारा 370 का समाप्त करने की मांग करती है। वैसी हालत में भाजपा विधायको का नेशनल कान्फ्रेंस के उम्मीदवारों को मत दे देना यह साबित करता है कि पार्टी के सदस्यों में पार्टी की विचारधारा के प्रति कितनी प्रतिबद्धता है।
जम्मू कश्मीर की इस घटना से पार्टी नीचे से ऊपर तक हिल गई है। उसने सभी पार्टी विधायकों से इस्तीफा माग लिया है। उन्होंने इस्तीफा दे भी दिया है। उनका इस्तीफा विधानसभा के अध्यक्ष को संबोधित है, पर उन्होंने उसे पार्टी अध्यक्ष के पास भेजा है। अब कुछ लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जिन विधायकों ने क्रॉसवोटिंग किया, उनका इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिया जाएगा। पर सवाल उठता है कि किस विधायक ने का्रॅसवोटिंग किया, इसके बारे में दावे से कोई कुछ नहीं कह सकता। इसका कारण यह है कि मतदान गुप्त तरीके से हुआ था और सभी कह रहे हैं कि उन्होंने क्रॉसवोटिंग नहीं की।
यदि पार्टी को यह पता हो भी जाए कि किसने का्रॅसवोटिंग किया, तब भी वह अपने 7 विधायकों को विधानसभा से बाहर का रास्ता नहीं दिखाना चाहेगी। इसका कारण यह है कि वर्तमान विधानसभा का 3 साल कार्यकाल अभी भी बाकी है। इस बीच वह नहीं चाहेगी कि सदन मे उसकी विधायक संख्या घट जाए। इसके अलावा वे सभी विधायक जम्मू क्षेत्र के हैं। पार्टी का आधार ही इसी क्षेत्र में है।
हिमाचल प्रदेश में भी पार्टी के अंदर काफी असंतोष है। विधायक प्रेम कुमार धूमल की सरकार से नाराज हैं, लेकिन श्री धूमल को केन्द्रीय नेताओं का समर्थन हासिल है। इसके कारण विधायक चाहकर भी उन्हें नहीं हटा पा रहे हैं। लेकिन इसके कारण आगामी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव प्रभावित होंगे। पंजाब और हरियाणा में भी पार्टी का यही हाल है। (सवाद)
भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा का रुख समझौतावादी
उत्तरी राज्यों में पार्टी के अंदर भारी असंतोष
बी के चम - 2011-04-19 10:29
भाजपा को आखिर हो क्या रहा है? यदि देश भर की बात छोड़ भी दें, तो यह तो कहा ही जा सकता है कि उत्तर भारत के राज्यों में इसका बहुत ही बुरा हाल है। पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पार्टी के अंदर जा कुछ चल रहा है, वह इसके भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। भ्रष्टाचार ने पार्टी को पंगु बना दिया है।